सम्पादकीय

चमत्कारी शब्द

रेनू सैनी पिछले वर्षने हमें बहुत कुछ सिखाया है। २०२० को विदा करनेके साथ ही हर व्यक्तिने दिलसे यही दुआ की कि वर्ष २०२१ में विश्व कोरोना मुक्त हो जाय। लोग नव वर्षके आगमनकी खुशीमें नये-नये संकल्प ले रहे हैं। कोई वजन कम करनेका संकल्प ले रहा है कोई सुबह जल्दी उठनेका, कोई नियमित व्यायाम […]

सम्पादकीय

भारतपर बढ़ा भरोसा

कोरोना कालमें पूरी दुनियाकी अर्थव्यवस्थापर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है लेकिन भारतकी अर्थव्यवस्था जिस प्रकार पुन: पटरीपर आ गयी है उससे विदेशी निवेशकोंका भारतपर भरोसा बढ़ गया है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण शेयर बाजारोंमें जारी तेजीके दौरान विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) का भारी निवेश जारी रखना है। डिपाजिटरी आंकड़ोंके अनुसार एफपीआईने विगत दिसम्बर महीनेमें ६८,५५८ […]

सम्पादकीय

संसदीय व्यवस्थामें सजगता जरूरी

डी. भानू बहुतसे भारतीयोंकी यह गलत धारणा है कि अमेरिकी राष्ट्रपतिके पास असीमित शक्तियां होती हैं और एक भारतीय प्रधान मंत्रीको नियंत्रणों और संतुलनोंके बीच काम करना होता है। सचाई इससे बिलकुल उलट है। अमेरिकाके राष्ट्रपतिको एक वास्तवमें स्वतंत्र विधायिका, ५० स्वतंत्र राज्य सरकारों, संघीय और राज्य न्यायपालिकाओं और अपनी शक्तियोंपर संवैधानिक सीमाओं इन सबसे […]

सम्पादकीय

महामारीसे उबारनेकी पहल

अरुण नैथानी नये वर्षमें महामारीके अंधियारेमें डूबी दुनियाको रोशनीकी किरण तब नजर आयी, जब कारगर वैक्सीन तलाशनेकी मुहिम सिरे चढ़ी। यूं तो वैक्सीन खोजनेके सैकड़ों प्रयास पूरी दुनियामें हुए। उनको लेकर तमाम दावे भी किये गये। लेकिन विश्वसनीयताकी कसौटीपर जिस वैक्सीनको खरा बताया गया, वह थी जर्मनीकी बायोएनटेक द्वारा अमेरिकी फर्म फाइजरके साथ मिलकर बनायी […]

सम्पादकीय

संयुक्त परिवारकी समाप्त होती अवधारणा

बाल मुकुन्द ओझा आज भी दुनिया परिवार और संयुक्त परिवारकी अहमियतको लेकर विवादोंमें उलझी है। भारतमें संयुक्त परिवार प्रणाली बहुत प्राचीन समयसे ही विद्यमान रही है। वह भी एक जमाना था जब भरा पूरा परिवार हंसता खेलता और एक-दूसरेसे जुड़ा रहता था। बच्चोंकी किलकारियोंसे मोहल्ला गूंजता था। पैसे कम होते थे परन्तु उसमे भी बहुत […]

सम्पादकीय

भावनात्मक परिष्कार

श्रीराम शर्मा प्राचीनकालसे तुलना की जाय और मनुष्यके सुख-संतोषको भी दृष्टिगत रखा जाय तो पिछले जमानेकी असुविधाभरी परिस्थितियोंमें रहनेवाले व्यक्ति अधिक सुखी और संतुष्ट जान पड़ेंगे। इन पंक्तियोंमें भौतिक प्रगति तथा साधन-सुविधाओंकी अभिवृद्धिको व्यर्थ नहीं बताया जा रहा है, न उनकी निंदा की जा रही है। कहनेका आशय इतना भर है कि परिस्थितियां कितनी भी […]

सम्पादकीय

पूरा होगा घरका सपना

इस बातसे बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता कि देशमें बढ़ती आर्थिक असमानताको कम करना सरकारोंके लिए सबसे बड़ी आर्थिक-सामाजिक चुनौती होती है। इसीके मद्देनजर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने कई योजनाएं शुरू की जिसका लाभ गरीब तबकेके लोग उठा भी रहे हैं। इसी कड़ीमें आगे जुड़ रहा है गरीबोंको मकान देनेकी योजना। इस महत्वाकांक्षी […]

सम्पादकीय

आयकरमें वृद्धि आवश्यक

बीते कई वर्षोंसे सरकार लगातार आयकर, जीएसटी और आयत करकी दरोंमें कटौती करती आ रही है। यह कटौती सार्थक होती यदि साथ-साथ अर्थव्यवस्थामें गति आती जैसे हल्का भोजन करनेसे शरीरमें तेजी आती है। लेकिन कटौतीके कारण सरकारके राजस्वमें उलट गिरावट आयी है। अर्थव्यवस्थाके मंद पड़े रहनेके कारण राजस्वमें भी गिरावट आयी है। सरकारका घाटा तेजीसे […]

सम्पादकीय

सहज स्वास्थ्यकी अभिलाषा

हृदयनारायण दीक्षित चिकित्सा विज्ञानने विस्मयकारी उन्नति की है। हृदय, गुर्दा जैसे संवेदनशील अंगोंकी शल्यक्रिया आश्चर्यजनक है। लेकिन रोग रहित मानवताका स्वप्न दूर है। प्रश्र है कि क्या कभी रोगोंका होना ही रोका जा सकता है। आधुनिक चिकित्सा जगतमें गम्भीर बीमारियोंके उपचार आसान हुए हैं। रोगोंकी दवाएं हैं। पूर्वज अमृतकी कल्पना करते रहे हैं। रोगोंके आगमनपर […]

सम्पादकीय

कृषि क्षेत्रमें सामाजिक सुरक्षाकी योजना

रत्नेश कुमार गौतम द्वितीय गोल मेज सम्मेलनमें भावी भारतीय संवैधानिक व्यवस्थाके व्यावसायिक पक्षपर चर्चाके दौरान गांधी जीने कहा कि कार्मिक, जो अधिकांशत: निम्न वर्गसे आते थे तथा उस समय कथित उच्च वर्ग एवं राज्यकी कृपापर जीवित रहते थे और इनकी परिस्थितियोंको समान करनेके लिए विधायिकाका प्रथम अधिनियम जो लाया जाय वह इन लोगोंको जमीन प्रदान […]