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Gyanvapi Masjid : त्रिशूल स्वास्तिक और देव प्रतिमाएं देखें ज्ञानवापी में मिले हिंदू प्रतीक चिह्नों की फोटो


वाराणसी, । ज्ञानवापी मस्जिद में हुए सर्वे ने कई ऐसे साक्ष्य सामने रखे हैं जो यहां मंदिर होने की पुष्टि करते हैं। ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर सभी की नजरें है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रहे इस मामले में सर्वे हुआ और जो साक्ष्य सामने आए वो कई सवालों के जवाब हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को इस मामले पर चुप्पी तोड़ी और कहा कि ज्ञानवापी में उपस्थित साक्ष्य और हिंदू धर्म के प्रतीक चिह्न सच्चाई बता रहे हैं। वहां त्रिशूल है, नंदी विराजमान हैं, देव प्रतिमाएं हैं। इन भौतिक और पुरातात्विक साक्ष्यों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। मंदिर पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन भी कोर्ट में यही बात कहते रहे हैं। सर्वे के दौरान मिली इन तस्वीरों से यहां मंदिर होने के दावों की पुष्टि होती है…

बता दें कि ज्ञानवापी परिसर में सर्वे के दौरान हिंदू धर्म से जुड़े कई साक्ष्य मिले हैं। रिपोर्ट के अनुसार ज्ञानवापी परिसर में मिलीं कलाकृतियां प्राचीन भारतीय मंदिर शैली की प्रतीत होती हैं।

प्राचीन काल की तस्वीरों को देखें तो यहां मंदिर के ऊपर गुबंद होने के साक्ष्य हैं।

ज्ञानवापी के तीनों गुंबदों को मंदिर की शिखरनुमा आकृति के ऊपर बनाया गया है। मंदिर पक्ष ने शिखरनुमा आकृति को प्राचीन मंदिर का शिखर होने का दावा किया है। उत्तर में गुंबद के साढ़े आठ फीट नीचे 2.5 फीट ऊंची शंकुकार शिखरनुमा आकृति है। इसका व्यास लगभग 18 फीट है। बाहरी गुंबद की दीवार की मोटाई 2.5 फीट है। शिखर के चारों ओर तीन फीट चौड़ा गोलाकार रास्ता है।

मुख्य गुबंद के नीचे एक अन्य शंकुकार शिखरनुमा निर्माण है। उसके ऊपर ही बाहर से दिख रहा मस्जिद का गुबंद बनाया गया है। दक्षिण दिशा में तीसरे गुंबद के नीचे भी 21 फीट व्यास का शिखरनुमा शंकुकार ढांचा है। पत्थर पर फूल, पत्ती, कमल के फूल आदि बने हैं।

सर्वे के दौरान हिंदू धर्म से जुड़ी कई कलाकृतियां मिली हैं। घंटी, कमल की पंखुड़ी व स्वास्तिक के चिह्न मिले।

एडवोकेट कमिश्नर की कार्यवाही के दौरान पाया गया कि ज्ञानवापी परिसर के तहखाने में चार दरवाजों को नई ईंटों से बंद किया गया है।

वहां चार-पांच पुराने खंभे मिले, जिन पर चारों ओर घंटी, कलश, फूल आदि आकृतियां उकेरी हुई हैं। एक खंभे पर प्राचीन भाषा में चार पंक्तियां लिखी हैं, जिन्हें पढ़ा नहीं जा सका।

जिसे व्यास जी का कमरा कहा जाता है, वह नंदी के ठीक सामने हैं। यहां से एक खुला रास्ता जाता है। इसके ऊपरी चौखट पर हिंदू धर्म से जुड़ीं कलाकृतियां खुदी हैं। एक खंभे पर घंटी तो दूसरे खंभे पर त्रिशूल के चिह्न हैं। दीवार पर स्वास्तिक के निशान भी पाए गए।

पश्चिमी दीवार पर हाथी के सूड़ की टूटी हुई कलाकृति और दीवार पर स्वास्तिक और त्रिशूल व पान के चिह्न उकेरे हुए हैं। ये कलाकृतियां स्पष्ट रूप से प्राचीन भारतीय मंदिर शैली की प्रतीत होती हैं। अंदर की दीवार पर बिजली के स्विच बोर्ड के नीचे पत्थर पर भी त्रिशूल की आकृति मिली है।

बगल में आलमारी में जिसे मुस्लिम पक्ष ताखा कहता है, स्वास्तिक की आकृति उकेरी हुई है। तहखाने में एक जगह दरी हटाने पर दो गुणा दो फीट आकार का चुनार के पत्थर रखा मिला। उसे ठोकने पर वहां की जमीन पोली प्रतीत हुई। ऐसा प्रतीत हो रहा कि पत्थर को मलबा आदि के ऊपर रख दिया गया है।

इसके साथ ही मंदिर की दीवारों पर जो नक्काशी हुई है वो भी हिंदू धर्म को ही दर्शाती है।

वहीं ज्ञानवापी मंदिर के ढांचे को भी बनाकर तैयार कर लिया गया है।

आपको बता दें कि यहां सबसे पहले शिवलिंग के साक्ष्य मिले थे। जिसके बाद से यहां मस्जिद की जगह मंदिर होने का दावा किया जा रहा था।