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Hindi Diwas : इस राज्य के 90 प्रतिशत से ज्यादा स्टूडेंट को हिंदी बोलना, लिखना और समझना नहीं आता


रायपुर, । हिंदी दिवस पर यह एक विडंबना हीं है कि हमारे देश में एक ऐसा भी राज्य भी है जहां के अधिकतर विद्यार्थियों को हिंदी नहीं आती है। हम बात कर रहें हैं छत्‍तीसगढ़ की। दरअसल, छत्‍तीसगढ़ में पांच हजार स्कूल ऐसे हैं, जहां 90 प्रतिशत से ज्यादा विद्यार्थियों को हिंदी बोलना, लिखना और समझना नहीं आता है। वे कोई न कोई स्थानीय बोली-भाषा बोलते हैं। प्रदेश में प्रचलित पुस्तकों में हिंदी माध्यम से पढ़ाई करवाई जा रही है। लेकिन इन स्कूलों के विद्यार्थियों की हिंदी प्राथमिक भाषा (मातृभाषा) बिल्कुल नहीं है।

जानकारी हो कि इन स्कूलों में सरकार की ओर से पदस्थ किए गए 1100 शिक्षक ऐसे मिले हैं, जो विद्यार्थियों से उनकी बोली-भाषा में संवाद नहीं कर पाते हैं। मालूम हो कि आठ हजार शिक्षक ऐसे भी हैं, जो विद्यार्थियों की मातृभाषा को कुछ हद तक समझने और बोलने की क्षमता रखते हैं। स्कूलों के 75 प्रतिशत विद्यार्थी किसी अपरिचित भाषा में सीखने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।

यहां है सबसे ज्यादा भाषायी दिक्कत

मालूम हो कि सरकार ने 16 विभिन्न बोलियों में शब्दकोष तैयार करवाकर कक्षा पहली और दूसरी की किताबें लिखी हैं, लेकिन बाकी कक्षाओं में दिक्कत हो रही है। सरगुजा, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, सुकमा और कोंडागांव जैसे जिलों में विद्यार्थियों को पठन-पाठन में सबसे अधिक परेशानी हो रही है। दिलचस्प बात यह भी है कि स्कूल में विद्यार्थी 24 से ज्यादा बोलियां बोलते हैं, जो हिंदी से बहुत अलग हैं।

छत्तीसगढ़ की 16 स्थानीय बोलियों को जगह मिली

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जानकारी हो कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विद्यार्थियों को उनकी ही स्थानीय बोली-भाषा में पढ़ाने का प्राविधान है। सरकार के निर्देश के बाद राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) ने प्रदेश के सभी डाइट्स की मदद लेकर छत्तीसगढ़ी में अनुवाद करके किताबें तैयार की हैं। इनमें छत्तीसगढ़ की 16 स्थानीय बोलियों को जगह मिली है। इनमें छत्तीसगढ़ी (रायपुर, दुर्ग, बस्तर, बिलासपुर एवं सरगुजा संभाग), दोरली, हल्बी, भतरी, धुरवी, गोंडी (कांकेर क्षेत्र ), गोंडी (दंतेवाड़ा क्षेत्र), गोंडी (बस्तर क्षेत्र), सादरी, कमारी, कुडुख, बघेली, सरगुजिहा, बैगानी और माडिया शामिल हैं।

शिक्षकों की पदस्थापना नीति में करें बदलाव

शिक्षाविदों का कहना है कि स्कूलों में जो शिक्षक-शिक्षिकाएं भर्ती हुए हैं, उनमें भी ज्यादातर को हिंदी नहीं आती है। सरकार को पदस्थापना और स्थानांतरण नीति में बदलाव करना चाहिए। स्थानीय बोली-भाषा में शिक्षकों को प्रशिक्षण देकर ऐसे शिक्षकों की वहां नियुक्ति करने की जरूरत है।

16 स्थानीय बोली-भाषा में किताबें निर्मित

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जानकारी के अनुसार अभी 16 स्थानीय बोली-भाषा में किताबें निर्मित की है। समग्र शिक्षा के प्रबंध संचालक के अनुसार भाषायी सर्वेक्षण की अंतरिम रिपोर्ट- 2022 के आधार पर शिक्षकों को प्रशिक्षित करने और किताबों में स्थानीय-बोली-भाषाओं का समावेश करने पर सरकार काम कर रही है।

चार लाख से अधिक विद्यार्थियों में सर्वे

मालूम हो कि सर्वेक्षण सैंपल में चार लाख 12 हजार 973 विद्यार्थी शामिल रहे। वहीं, फरवरी से अप्रैल 2022 के बीच राज्य सरकार के समग्र शिक्षा ने लैंग्वैज लर्निंग फाउंडेशन संस्थान के माध्यम से राज्य के प्राइमरी स्कूलों में यह सर्वेक्षण कराया है। इसमें 146 विकासखंड और दो हजार 451 संकुलों के 29 हजार 755 प्राथमिक स्कूलों से कक्षा-एक में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के मातृभाषा, शिक्षकों की उन भाषाओं को समझने और बोलने की दक्षताओं के आंकड़े एकत्रित किए गए।

ये महत्वपूर्ण तथ्य आए सामने

– 15.5 प्रतिशत कक्षा एक के विद्यार्थी हिंदी बिल्कुल नहीं जानते।

– 60 प्रतिशत विद्यार्थियों में थोड़ी-बहुत हिंदी की समझ है।

– 24 से ज्यादा हिंदी से अलगा बोली-भाषा बोलते हैं विद्यार्थी।