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Shaheed Diwas : फांसी से एक दिन पहले जब भगत सिंह ने अपने साथियों के नाम लिखा था यह अंतिम पत्र


Shaheed Diwas 2022 भगत सिंह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के ऐसे ज्योतिपुंज हैं जिनका व्यक्तित्व और कर्तृत्व कालजयी है। 27 सितंबर, 1907 को जन्मे भगत सिंह ने मात्र 23 वर्ष की आयु में फांसी के फंदे को चूमकर मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्राण न्योछावर कर दिए थे। 23 मार्च, 1931 को उन्हें लाहौर में फांसी दी गई परंतु उनके विचार बीतते समय के साथ और भी प्रासंगिक होते गए। सच तो यह है कि ऐसे विरले ही व्यक्तित्व विश्व इतिहास में हुए होंगे, जिन्होंने इतनी अल्पायु में ऐसे प्रतिमान स्थापित कर दिए हों कि पीढ़ी दर पीढ़ी सभी जाति, पंथ, वर्ग के लोग उन्हें प्रेरणापुंज मानकर अपने हृदय में धारण कर स्वयं को सम्मानित अनुभव करते हों।

निर्भीक लेखन के स्वामी : भगत सिंह का बहुआयामी व्यक्तित्व क्रांतिकारी गतिविधियों के दौरान उनके लेखन से स्पष्ट होता है। जो उन्हीं की तरह निर्भीक और संवेदनशील है। जिन्हें भगत सिंह के व्यक्तित्व को गहराई से जानना हो, उन्हें उनके लेखन का अध्ययन करना चाहिए। भगत सिंह के विचारों की बात होती है तो अक्सर फांसी से पहले उनकी जेल डायरी को ही केंद्र बिंदु मान लिया जाता है जबकि उनका लेखन कहीं अधिक विस्तार लिए हुए था। शायद ही कोई क्षेत्र हो जिसका आकलन भगत सिंह ने अपनी पैनी दृष्टि से न किया हो। उनके लेख देखकर यह अचंभा भी होता है कि इतनी कम आयु में किसी युवा में विचारों की ऐसी परिपक्वता कैसे आ गई! यह उनके विचारों की शक्ति ही थी जिसने उधम सिंह जैसे असंख्य क्रांतिकारियों को प्रेरित किया। आज भी उनके विचार उसी वैशिष्ट्य के साथ देशसेवा के प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।

प गया दुर्लभ संबंध : यह दुर्भाग्य ही है कि भारत के प्रेरणास्पद क्रांतिकारियों में अग्रणी भगत सिंह को लंबे समय तक वामपंथियों ने माक्र्सवादी खांचे में बांधने का सुनियोजित प्रयास किया, लेकिन सच यह है कि भगत सिंह सनातन धर्म को लेकर आग्रही थे। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है हिंदुत्व के पुरोधा, स्वातंत्र्य वीर के नाम से विख्यात, विनायक दामोदर सावरकर के साथ उनके संबंध। इन संबंधों को तथ्यात्मक संदर्भों में देखने से पता चलता है कि किस प्रकार भगत सिंह को केंद्र में रखकर बड़ी चालाकी से सुनियोजित वामपंथी विमर्श खड़ा किया गया और उनके व्यक्तित्व-विचारों को झूठा माक्र्सवादी जामा पहना दिया गया।

सावरकर को समर्पित लेख : भगत सिंह और सावरकर के बीच गहरा भावनात्मक संबंध था, जिसके बारे में ज्यादा चर्चा नहीं हुई। भगत सिंह, सावरकर को बतौर क्रांतिकारी एक आदर्श के रूप में देखते थे। कोलकाता से निकलने वाले साप्ताहिक ‘मतवाला’ के 15 और 22 नवंबर, 1924 के अंक में भगत सिंह द्वारा लिखित आलेख ‘विश्व प्रेम’में वह कहते हैं, ‘विश्वप्रेमी वह वीर है जिसे भीषण विप्लववादी, कट्टर अराजकतावादी कहने में हम तनिक भी लज्जा नहीं समझते- वही वीर सावरकर। विश्वप्रेम की तरंग में आकर घास पर चलते-चलते रुक जाते कि कोमल घास पैरों तले मसली जाएगी।’ यह लेख बलवंत सिंह के छद्म नाम से लिखा गया था। भगत सिंह ने जब यह लेख लिखा, उन दिनों सावरकर रत्नागिरी में नजरबंद थे।

दर्भ- भगत सिंह और उनके साथियों के संपूर्ण उपलब्ध दस्तावेज, पृष्ठ संख्या 93, पुनर्मुद्रण मई 2019, राहुल फाउंडेशन, लखनऊ)

एक वीर का दूसरे वीर को सलाम : बलिदानी भगत सिंह ने ‘किरती’ नामक प्रकाशन में मार्च 1928 से लेकर अक्टूबर 1928 तक ‘आजादी की भेंट शहादतें’ नाम से लेखमाला लिखी। अगस्त 1928 के अंक में इस लेखमाला का उद्देश्य इस रूप में बताया गया है, ‘हमारा इरादा है कि उन जीवनियों को उसी तरह छापते हुए भी उनके आंदोलनों का क्रमश: हाल लिखें ताकि हमारे पाठक यह समझ सकें कि पंजाब में जागृति कैसे पैदा हुई और फिर काम कैसे होता रहा और किन कामों, विचारों के लिए उन शहीदों ने प्राण अर्पित कर दिए।’ इसी लेखमाला में कर्जन वायली को मौत के घाट उतारकर फांसी पर चढ़ जाने वाले वाले क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा और सावरकर के बारे में लिखते हुए भगत सिंह कहते हैं, ‘स्वदेशी आंदोलन का असर इंग्लैंड तक भी पहुंचा और जाते ही सावरकर ने ‘इंडिया हाउस’ नामक सभा खोल दी। मदनलाल भी उसके सदस्य बने। एक दिन रात को सावरकर और मदनलाल देर तक मशवरा करते रहे। अपनी जान दे देने की हिम्मत दिखाने की परीक्षा में मदनलाल को जमीन पर हाथ रखने के लिए कहकर सावरकर ने हाथ पर सुआ गाड़ दिया, लेकिन पंजाबी वीर ने आह तक न भरी। सुआ निकाल लिया गया। दोनों की आंखों में आंसू भर आए। दोनों एक-दूसरे के गले लग गए। आहा, वह समय कैसा सुंदर था। वह अश्रु कितने अमूल्य और अलभ्य थे! वह मिलाप कितना सुंदर, कितना महिमामय था!’

(संदर्भ- भगत सिंह और उनके साथियों के संपूर्ण उपलब्ध दस्तावेज, पृष्ठ संख्या 166-68, पुनर्मुद्रण मई 2019, राहुल फाउंडेशन, लखनऊ)

यही नहीं मदनलाल ढींगरा द्वारा अदालत में दिए गए वक्तव्य का भगत सिंह ने बड़े गर्व के साथ अपने लेख में पुनस्र्मरण किया। जिसमें ढींगरा कहते हैं, ‘मैं एक हिंदू के रूप में समझता हूं कि मेरे देश के साथ किया गया अन्याय ईश्वर का अपमान है क्योंकि देश की पूजा श्री रामचंद्र जी की पूजा है और देश की सेवा श्रीकृष्ण की सेवा है।’ (संदर्भ- भगत सिंह और उनके साथियों के संपूर्ण उपलब्ध दस्तावेज, पृष्ठ संख्या 169, पुनर्मुद्रण मई 2019, राहुल फाउंडेशन,लखनऊ)