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UP: पुलिस ने कारीगर को डकैत बताकर की हत्या, 16 साल चार महीने तीन दिन में मिला न्याय,


एटा, । एटा के थाना सिढ़पुरा क्षेत्र में 18 अगस्त 2006 को डकैत बताकर कारपेंटर राजाराम को फर्जी एनकाउंटर में मारने वाले पुलिसकर्मियों को सजा 16 साल चार महीने और तीन दिन में मिल पाई। इस मामले में सीबीआइ ने 13 बार एटा का दौरा किया 99 गवाह बनाए। तब यह न्याय मिल पाया। परिवार के लोग इस मामले में सीबीआइ के विवेचक रोहित श्रीवास्तव की भूमिका से प्रसन्न हैं, जिन्होंने न्याय दिलाने के लिए निष्पक्ष विवेचना की। गाजियाबाद में सीबीआइ कोर्ट आज सिढ़परा के तत्कालीन एसओ समेत नौ पुलिस कर्मियों को सजा सुनाएगी।

18 अगस्त वर्ष 2006 में हुई घटना

घटना 18 अगस्त वर्ष 2006 रात आठ बजे की है। कोतवाली देहात क्षेत्र के गांव मिलावली निवासी राजाराम अपनी पत्नी संतोष और छोटे भाई अशोक के साथ सिढपुरा थाना क्षेत्र के गांव पहलोई अपनी रिश्तेदारी में जा रहे थे। तभी सिढपुरा थाने के सिपाही राजेंद्र व अजंट सिंह ने राजाराम को रोक लिया और तब तक पुलिस की एक जीप आ गई, जिसमें पुलिसकर्मी अपने साथ बैठा ले गए। पत्नी ने टोका तो उससे कह दिया कि थानेदार सहाब बुला रहे हैं। इसके बाद उनका कहीं भी पता नहीं चला। परिवार चार दिन तक तलाश करता रहा और थाने भी पहुंचा मगर कह दिया कि लूट के मामले में पूछताछ के बाद छोड़ दिया। यह भी कहा कि उन्हें उसी दिन छोड़ दिया था। लेकिन यह सच नहीं था।

अंत्येष्टि के लिए शव को ले गए भूतेश्वर

राजाराम की पत्नी संतोष बतातीं हैं कि पांचवें दिन उन्हें तब पता चला जब पुलिसकर्मी उनके पति की अंत्येष्टि कराने के लिए शव को भूतेश्वर ले गए। भूतेश्वर पर रहने वाले बंगाली बाबा राजाराम को जानते थे, क्योंकि उन्होंने उनसे फर्नीचर बनवाया था। उन्होंने शव को पहचान लिया। बंगाली बाबा ने शव के साथ परिवार के किसी व्यक्ति को नहीं देखा तो उनका माथा ठनका, तब तक परिवार के लोग पहुंच गए मगर चिता जल चुकी थी। बंगाली बाबा ने पुष्टि कर दी कि राजाराम का शव था। इसके बाद परिवार ने पोस्टमार्टम से डिटेल जुटाई तब पुलिस का पूरा खेल समझ में आया।

अदालत के आदेश के बाद भी नहीं दर्ज की रिपोर्ट

संतोष ने बताया कि इसके बाद हम लोगों ने संघर्ष शुरू कर दिया। अदालत में पुलिस कर्मियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराने के लिए प्रार्थना पत्र भी दिया मगर रिपोर्ट दर्ज नहीं हो सकी। इसके बाद हम लोग हाईकोर्ट गए। जहां पर सीबीआई जांच के लिए आदेश हुआ। सीबीआई के इंस्पेक्टर रोहित श्रीवास्तव ने मामले की विवेचना की। 16 साल 4 महीने और 3 दिन में अब न्याय का दिन आया है। संतोष ने कहा कि हत्यारों को फांसी की सजा होनी चाहिए। संतोष और उनके देवर अशोक बताते हैं कि सीबीआई इंस्पेक्टर नें निष्पक्षता पूर्वक विवेचना की और न्याय दिलवाने में अहम भूमिका निभाई है। इसलिए आज पूरा परिवार खुश है।

न्याय के लिए संघर्ष करते बीता पूरा जीवन

राजाराम का परिवार 16 साल तक संघर्ष करता रहा। इस दौरान तमाम बाधाएं आई। आरोपितों ने परिवार को बार-बार धमकाया, केस वापस लेने के लिए दबाव बनाया, लेकिन परिवार ने हार नहीं मानी। संतोष ने बताया कि उनके 5 बच्चे हैं बड़ी बेटी लता की शादी हो चुकी है। उससे छोटा मोहित एक फर्नीचर की दुकान पर काम करता है, तीसरे नंबर का बेटा रोहित एक प्राइवेट कंपनी में काम करता है। चौथे नंबर की बेटी है घर में ही रहती है। सबसे छोटी पूनम है, जब राजाराम की मौत हुई तब वह गर्भ में थी। संतोष ने बताया कि पांच बच्चों को उसने किस तरह से पाला यह वही जानती है। मजदूरी करके दो वक्त की रोटी जुटाई तब संतान बड़ी हो पाई। उन्होंने कहा कि मेरे पति पूरी तरह से निर्दोष थे उन्होंने कभी कोई लूट नहीं की।

सिपाही राजेंद्र से हुआ था विवाद

राजाराम के भाई अशोक और शिवप्रकाश ने बताया के राजाराम फर्नीचर का काम करते थे, सिढ़पुरा थाने में तैनात सिपाही राजेंद्र सिंह ने उनसे काम कराया था लेकिन पैसे नहीं दिए थे। इस बात को लेकर सिपाही से विवाद भी हुआ था, सिपाही ने सबक सिखाने की धमकी भी दी थी। लेकिन उस समय यह महसूस नहीं हुआ कि पुलिस इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे सकती है। इसी सिपाही ने राजाराम के फर्जी एनकाउंटर में बड़ी भूमिका निभाई।