आर.डी. सत्येन्द्र कुमार
अन्तत: वैक्सीनसे जुड़ी अटकलोंपर पूर्णविराम लगाते हुए विशेषज्ञ मानी जानेवाली समितिने आक्सफोर्ड वैक्सीनको भारतके लिए सर्वाधिक उपयुक्त पाया। इस निर्णयमें नया और सनसनीखेज कुछ भी नहीं था। वैसे जानकार क्षेत्रोंमें इस निर्णयका पूर्वानुमान लगाया जा रहा था। जैसा कि स्वाभाविक है विशेषज्ञ समितिने व्यापक तुलनात्मक अध्ययन अवश्य किया होगा। हकीकत और वस्तुपरक स्थिति जो भी हो, विशेषज्ञ समितिने संकेत दिया है कि सरकार ब्रिटिश योजनाका इस मायनेमें भी अनुसरण कर सकती है कि वह ज्यादा प्रथम डोजेज दे सकती है। इसी क्रममें भारत सरकार चाहती है ड्रग नियामक विशेषज्ञ समिति कोवीशील्ड, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटीका टीका एवं एस्ट्राजेनेक जैसे जीन टीकोंके आपातकालिक प्रयोगको मान्यता प्रदान करे। सूत्रोंका कहना है कि विषय विशेष वे समितिकी सिफारिश कुछ शर्तोंके साथ आये। वैसे यह देखनेमें सहज, स्वाभाविक एवं नितान्त प्रत्याशित ही प्रतीत होती है बशर्ते दिखने और होनेमें कोई अन्तर विद्यमान न हो, जो प्राय: देखनेमें आता ही रहता है और जब यह विसंगति सामने आती है तो सब कुछ ऊलजलूल दिखने लगता है और वह ऐसा ही दिख भी सकता है। इससे अंतर्विरोधके भीतर एक अन्य अंतर्विरोधकी मौजूदगीका अहसास होता है जिससे सतही किस्मके निष्कर्ष एवं धारणाओंपर विराम लगता प्रतीत होता है।
सूत्रोंका कहना है कि विषय विशेषज्ञ समितिका अनुमोदन कुछ विशेष शर्तोंके साथ आया है। अन्तिम अनुमोदन ड्रग महानियंत्रक द्वारा ही दिया जायगा। पहला शाट स्वास्थ्यकर्मियोंको दिया जायगा। उन्हें कोरोना युद्धका अग्रिम योद्धा, यहांतक कि महारथी भी करार दिया जा सकता है और यदि ऐसा किया जाता है तो इसमें रंचमात्र भी अतिशयोक्तिकी गुंजाइश नहीं होगी। वह महाभारत युद्धके महारथियोंकी तरह है जिनके निर्णायक महत्वसे कोई भी विवेकशील व्यक्ति कतई इनकार नहीं कर सकता। हकीकत जो भी हो, इन कर्मियोंको हर सम्भव सुविधाएं एवं सम्मान मुहैया कराना समयकी मांग है जिसे नजरअन्दाज करना नितान्त आमनवीय व्यवहार कहा जायगा। इस मुद्देपर अतिरिक्त जोर दिया जाना आवयक ही नहीं, अनिवार्य भी है। शिखरसे इजाजतके क्रममें हमें इस तथ्यको पूरे बेबाक अन्दाजमें उठाना चाहिए, क्योंकि जो लोग जनताकी प्राणरक्षाको समर्पित स्वास्थ्यकर्मियोंको उचित महत्व नहीं देते, वह वस्तुत: कोरोनाके विरुद्ध युद्धमें ठोस कोई योगदान नहीं कर सकते। इस मुद्देपर अतिरिक्त जोर देना जरूरी है, क्योंकि जो लोग कथनीमें इसे मानते इतराते फिरते हैं वह भी करनीमें इसकी अवहेलना करते हैं जो कथनी और करनीके बीच मौजूद विसंगतिको उजागर करता एवं सतहपर लाता है और वह भी सहज, स्वाभाविक, प्रत्याशित एवं नितान्त सकारण क्रममें इस विसंगतिके चलते कोई भी योजना सफल नहीं हो पाती। वैसे अब भी प्रथम शाट्स देनेमें समय शेष है। विशेषज्ञोंका कहना है कि पहला शाट शीघ्र दिया जा सकता है। इस अवधिमें सरकार और सम्बन्धित एजेंसियां कई वैचारिक स्तरका पूर्वाभ्यास कर रही है।
इस अभियानकी अतिशय महत्वपूर्ण योजना है। इस योजनाके अन्तर्गत जुलाईतक तीस करोड़ आबादीका टीकाकरण सम्पन्न करना है। ऐसी सम्भावना है कि सरकार सफाई कर्मियों और फार्मासिस्टोंको इस सूचीमें शामिल करेगी। पैनलने चारसे छह सप्ताहके अन्तरालसे दो पूर्ण डोज देनेका सुझाव दिया है जिसे आपातकालिक कदम करार दिया गया है। कम्पनीको यह भी हिदायत दी गयी है कि वह हर प्रतिकूल घटनाकी लिस्ट हर पन्द्रह दिनोंमें पेश करे। दस करोड़ डोजेजके लिए पहला आर्डर पीएम केयरके माध्यमसे फंड किया जायगा। सूत्रोंके अनुसार एसआईआईने प्रति डोज २२५-२५० रुपये देनेका प्रस्ताव किया है। सूत्रके अनुसार भारत बायोटेकने ३५० रुपयेका प्रस्ताव किया है। कोविशील्डको ३-८ डिग्री सेल्सियसपर स्टोर किया। स्पष्टï है कि सूचीको अतिरिक्त विवरणके जरिये और भी लम्बा किया जा सकता है और कुछ लोगोंने ऐसा किया भी है लेकिन ऐसा करना नितान्त अनावश्यक विस्तार प्रतीत होता है।
अब देखना यह है कि उपर्युक्त ब्रितानी माडल जिस अनकही माडलोंके मुकाबले चुना गया है, क्या गुल खिलाता है। इससे कोरोना वायरसे लडऩेमें देशकी जनताको किस हदतक सफलता मिलती है। कहीं ऐसा न हो कि खोदा पहाड़ निकली चुहियावाली कहावत चरितार्थ न हो। वैसी स्थितिको पूरी तरह खारिज भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि समूची योजनामें कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है। कथनी और करनीका अन्तर हमारे देशकी बुनियादी समस्या रही है। यह १९४६ की अन्तरिम सरकारके समयसे लेकर आजतक विद्यमान है। इसी क्रममें कुछ तो है जिसकी परदादारी है, का क्रम भी पुराने समयसे चलता आ रहा है जिसका अन्त आज भी नजर नहीं आ रहा है।