सम्पादकीय

अप्रत्याशित राहत


केन्द्र सरकारने छोटी बचत योजनाओंपर ब्याज दर घटानेका निर्णय एक दिनके अन्दर ही वापस लेकर उन तमाम मध्यम वर्गीय और कम आय वर्गके लोगोंको बड़ी राहत दी है जिनका धन विभिन्न योजनाओंमें जमा है और यह राशि ऐसे लोगोंके लिए बड़ा संबल भी है। केन्द्रीय वित्त मंत्रालयने बुधवारको ब्याज दर घटानेकी घोषणा की थी लेकिन अप्रत्याशित रूपसे वित्तमंत्री निर्मला सीतारमणने गुरुवारको ट्वीट कर जानकारी दी कि ब्याज दर घटानेका निर्णय वापस ले लिया गया है और पुरानी दरें यथावत लागू रहेंगी। पूर्व घोषणाके तहत छोटी जमा योजनाओंपर जून-तिमाहीके लिए ब्याज दर चार प्रतिशतसे घटाकर साढ़े तीन प्रतिशत और पीपीएफकी ब्याज दर ७.१ से कम करके ६.४ प्रतिशत वार्षिक कर दिया गया था। एक वर्षकी अवधिके जमापर ब्याज दर ५.५ प्रतिशतसे कम करके ४.४ प्रतिशत और वरिष्ठï नागरिक बचत योजनाके तहत ब्याज दर ७.४ प्रतिशतसे कम करके ६.५ प्रतिशत कर दिया गया था। बढ़ती महंगीके बीच ब्याज दरोंमें कटौतीसे लोगोंको काफी परेशानी उठानी पड़ती लेकिन कटौतीको वापस लेनेका निर्णय राहतकारी और स्वागतयोग्य माना जायगा। इससे पूर्व सरकारने जनवरी-मार्च २०२१ की तिमाहीके लिए पीपीएफ और एनएससी सहित छोटी बचत योजनाओंपर ब्याज दरोंमें कोई परिवर्तन नहीं किया था। वस्तुत: देशकी अर्थव्यवस्थामें भले ही सुधार हो रहा हो लेकिन महंगीमें वृद्धि होनेसे आम जनताकी आर्थिक दिक्कतें काफी बढ़ गयी हैं। ऐसी स्थितिमें ब्याज दरोंमें कटौतीकी वापसीका निर्णय जनहितका कदम माना जायगा। इसके साथ ही केन्द्र सरकारने एक और राहतकारी निर्णय किया है। श्रम कानूनोंमें बदलावसे जुड़ी चार श्रम संहिताओंको अब एक अप्रैलसे लागू नहीं किया जायगा। कर्मचारियोंके खातेमें जितना वेतन आता था, वह भविष्यमें भी आता रहेगा। नियोक्ताओंपर भविष्य निधि देनदारीमें कोई परिवर्तन नहीं होगा। वेतन और कामके घण्टे यथावत रहेंगे, इसमें बदलावपर अभी विराम लग गया है। पहले ऐसी उम्मीद थी कि एक अप्रैल, २०२१ से श्रम मंत्रालयकी चार संहिताओंको लागू कर दिया जायगा। जो भी हो, मौजूदा स्थितिको ध्यानमें रखते हुए केन्द्र सरकारने अप्रत्याशित निर्णय लेकर राहत देनेकी दिशामें कदम उठाया है। बुनियादी उद्योगोंमें उत्पादनको बढ़ानेके लिए सरकारको शीघ्र मजबूत कदम उठानेकी जरूरत है।

राष्टï्रहितके विरुद्ध

देश एक ओर जहां बढ़ते कोरोना संक्रमणके संकटसे जूझ रहा है वहीं घुसपैठिये और शरणार्थी देशकी शान्ति और सुरक्षाके लिए गम्भीर खतरा बने हुए हैं। ऐसेमें स्वराष्टï्रमंत्री अमित शाहका यह कहना उचित है कि देशको घुसपैठियोंका अड्डïा नहीं बनाया जाना चाहिए। इसके लिए सरकारोंका दायित्व है कि वह घुसपैठियोंको अपने यहां पनाह न दें और इसपर किसी प्रकारकी राजनीति न की जाय, क्योंकि इसका खामियाजा टैक्सके रूपमें देशकी जनताको भुगतना पड़ेगा। घुसपैठियों और बढ़ती शरणार्थियोंकी संख्यासे अर्थव्यवस्था प्रभावित तो होगी ही साथमें बेरोजगारी और अपराध भी बढ़ेगा, जो देशकी सुरक्षा और शान्तिपर सवालिया निशान लगायेगा। इसलिए जरूरी है कि इनकी पहचान कर स्वदेश वापसी सुनिश्चित की जाय। म्यांमारमें तख्तापलटके बाद वहां जारी खूनी संघर्षके कारण हजारोंकी संख्यामें म्यांमारके नागरिक भारतके पूर्वोत्तर राज्योंमें शरण ले रहे हैं। मणिपुर सरकारने पहले तय किया था कि शरणार्थियोंको रहनेकी जगह नहीं दी जायगी लेकिन बादमें किन्हीं कारणोंसे वह आदेश वापस ले लिया जिसके कारण मणिपुर, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेशमें बड़ी संख्यामें म्यांमारके नागरिकोंने अवैध कब्जा जमा लिया है। बंगलादेशी घुसपैठिये और रोहिंग्या शरणार्थी पहले ही देशके लिए बड़ी समस्या बने हुए हैं, वहीं म्यांमार शरणार्थियोंकी बढ़ती संख्या अब देशका संकट बढ़ानेवाली है। भारतकी जनसंख्या देशके लिए विस्फोटक होती जा रही है, यह सबसे बड़ी चिन्ताका विषय है। ऐसा नहीं कि भारतने इसके पहले किसीको शरण नहीं दी है। द्वितीय विश्वयुद्धके समय यहूदियोंको शरण देनेवाला भारत पहला देश था। किसीकी मदद तो करना अच्छी बात है परन्तु यह देशके लिए समस्या न बन जाय इसपर विशेष ध्यान देनेकी जरूरत है। देशकी सुरक्षाके लिए घुसपैठियोंको तो निकाला जाना जरूरी है और इसके साथ जो शरणार्थी पहलेसे हैं उनकी भी सकुशल वापसी सुनिश्चित करनेकी योजना सरकारोंको बनानी चाहिए।