सम्पादकीय

अर्थव्यवस्थामें सकारात्मक बदलाव


राजेश माहेश्वरी 

देशकी आबादी लगभग १३५ करोड़ है। ऐसेमें देशमें दिसंबरतक वयस्क आबादीके पूर्ण टीकाकरणके लक्ष्यको हासिल करनेके लिए अभियानमें तेजी लानेकी जरूरतसे भी इनकार नहीं किया जा सकता। वहीं इस तथ्यसे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि अभी उन्नीस करोड़से अधिक लोगोंको ही दोनों डोज लगी हैं। ऐसेमें यह प्रश्न स्वाभाविक है कि पहले और दूसरे टीकेकी संख्यामें इतना अंतर क्यों है? क्या पहला टीका लगाना सरकारकी प्राथमिकतामें शामिल है? विशेषज्ञोंके अनुसार संक्रमणकी एक अन्य लहरको रोकनेके लिए इस सालके अंततक ६० फीसदी आबादीको वैक्सीनकी दोनों खुराकें दी जानी आवश्यक हैं। देशमें १६ जनवरीको टीकाकरण अभियानकी शुरुआतके बाद दस करोड़के आंकड़ेपर पहुंचनेमें ८५ दिन लगे थे, वहीं इस महीनेकी सातसे २१ तारीखके बीच टीकाकरणका आंकड़ा ६० करोड़से ८१ करोड़पर पहुंच गया। आंकड़ोंके अनुसार ९९ प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मियोंने पहली डोज और ८२ प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मियोंने दोनों डोज ले ली है। इसके अलावा सौ प्रतिशत फ्रंटलाइन वर्कर्सको पहली डोज जबकि ७८ प्रतिशतको वैक्सीनको वैक्सीनकी दोनों डोज दे दी गयी है। भारतमें पहले दस करोड़ लोगोंको वैक्सीन डोज देनेमें ८५ दिन लगे थे। दससे बीस करोड़का आंकड़ा पार करनेमें ४५ दिन और २० से ३० करोड़के आंकड़ेतक पहुंचनेमें २९ दिन लगे। ३० करोड़ डोजके आंकड़ेसे ४० करोड़तक पहुंचनेमें २४ दिन लगे और ५० करोड़ डोजका आंकड़ा पार करनेमें २० दिन लगे। निस्संदेह, इक्यासी करोड़ लोगोंको टीका लगाना हमारी बड़ी उपलब्धि है, लेकिन सार्वजनिक स्थलोंमें बढ़ती भीड़ एवं कोरोनासे बचावके उपायोंके प्रति हमारी लापरवाही चिंता बढ़ानेवाली है। हम न भूलें कि केरल एवं महाराष्टï्र अभी दूसरी लहरके कहरसे मुक्त नहीं हो पाये हैं। फिलहाल आनेवाले संक्रमणके आधेसे अधिक मामले इन राज्योंसे आ रहे हैं।

इसमें दो राय नहीं कि भारतको समय रहते देशमें तैयार एवं देशमें विकसित टीका मिल गया। हम इसके लिए विकसित देशोंके मोहताज नहीं रहे। महत्वपूर्ण यह भी कि वयस्कोंको यह टीका मुफ्त लगाया गया। पहले टीकाकरणको लेकर आम लोगोंमें जिस तरहकी उदासीनता और संकोचका भाव दिखता था, वह अब नहीं है और लोग तेजीसे टीका लगवा रहे हैं। दूसरी लहरतक कुछ नेताओंके बरगलाने और तमाम भ्रांतियोंके चलते लोग टीका लगवानेसे संकोच कर रहे थे, परन्तु अब ऐसा नहीं है। वर्तमानमें टीकाकरणका काम तेजीसे जारी है। जो लोग पहले टीका लगवानेसे भागते थे, उन्होंने देखा कि उनके आस-पास रहनेवाले सभी पढ़े-लिखे लोग सपरिवार टीका लगा रहे हैं और किसीकी मृत्यु भी कोविडसे नहीं हो रही है तो उन्होंने समझ लिया कि टीका लगवानेसे कोई खास परेशानी नहीं होगी और वे भी टीका लगवानेके लिए प्रेरित हुए। आज प्रतिदिन लाखोंकी संख्यामें लोग टीके लगवा रहे हैं। वर्तमानमें सरकारके समक्ष टीकेकी आपूर्तिकी समस्या है, न कि टीका लगवानेवालोंको घरसे निकालने की। हालांकि अभी निश्चिंत होनेका समय नहीं है, क्योंकि खतरा अभी टला नहीं है। विभिन्न राज्योंमें कुछ न कुछ नये मामले सामने आ ही रहे हैं। केरल और महाराष्टï्रमें भारी संख्यामें प्रतिदिन नए मामले सामने आ रहे हैं।

देशमें वयस्क आबादी ९४ करोड़ है, जिसे पूरी तरह टीकाकृत करनेके लिए १८८ करोड़ खुराककी आवश्यकता होगी। खास बात है कि सीरम इंस्टीट्यूट सालके शुरुआतमें हर महीने ६.५ करोड़ कोविशील्डकी खुराकका उत्पादन कर रहा था, वह जूनमें दस करोड़, अगस्तमें 12 करोड़पर पहुंच गया। उम्मीद है कि सितंबरमें यह २० करोड़को भी पार कर जायेगा। इससे टीकाकरणकी गतिको तीव्र करनेमें सरकारको सहूलियत मिलेगी। साथ ही दो अन्य टीकों- कोवैक्सीन और स्पूतनिकसे भी अभियानको मजबूती मिल रही है। हालांकि कुछ राज्योंमें टीकाकरण अभियान बहुत धीमा है। अभीतक १८ प्रतिशत वयस्कोंको ही दोनों खुराकें और ५८ प्रतिशतको एक खुराक मिल सकी है। सार्थक यह है कि देशमें कई अन्य टीके ट्रायलके अंतिम चरणमें हैं। अच्छी बात यह भी है कि देशने बच्चोंके लिए जायडस-कैडिलाकी जायकोव-डी वैक्सीन विकसित कर ली है। हालांकि कुछ विशेषज्ञोंका मानना है कि जिन बच्चोंको हार्ट, लंग या लीवर जैसी गंभीर बीमारियोंसे जूझना पड़ा है, उन्हें ही पहले वैक्सीन दी जाये। आम तौरपर माना जाता है कि बच्चोंमें वयस्कोंके मुकाबले रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। फिलहाल बारहसे सत्रह सालके बच्चोंको वैक्सीन अक्तूबरसे देनी आरंभ की जायेगी।

विशेषज्ञ अक्तूबरमें कोरोनाकी तीसरी लहरकी आशंका जता रहे हैं। दरअसल यह देशमें त्योहारोंका मौसम होगा और हमारी लापरवाही भारी पड़ सकती है। लोगोंको भीड़में जानेसे बचनेकी भी जरूरत है। ऐसे समयमें जब तमाम तरहकी सामाजिक और औद्योगिक गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं तो कोविड उपयुक्त व्यवहारका पालन जरूरी है। चूंकि अब लगभग सभी स्कूल भी खुल चुके हैं, इसलिए बच्चोंकी सुरक्षापर भी ध्यान देना जरूरी है। उन्हें कोविड उपयुक्त व्यवहारके प्रति जागरूक करना होगा। फिलहाल दूसरी लहरकी भयावहताके बावजूद पूरे देशमें सख्त लॉकडाउन न लगाये जानेके परिणाम अब अर्थव्यवस्थामें सकारात्मक बदलावके रूपमें दिखे हैं। कई सेक्टरोंमें आशाजनक परिणाम सामने आये हैं। विकास दरमें तेजी आयी है। लेकिन कोरोनासे लड़ाई अभी लंबी चलनी है, जिसमें संक्रमणसे बचावके परम्परागत उपायोंपर ध्यान देना होगा। इसके लिए जहां व्यक्तिगत स्तरपर भी सतर्कता जरूरी है, वहीं टीकाकरण अभियानमें तेजी लानेकी जरूरत है। दुनियाभरसे आ रही संक्रमण और टीकाकरणकी वर्तमान तस्वीर चिंताजनक है। इससे संक्रमणमें कभी भी तेजी आ सकती है। ऐसेमें मामलोंकी निरंतर निगरानीके साथ स्वास्थ्य देखभालकी बुनियादी सेवाओंको भी मजबूत करनेकी जरूरत है।