सम्पादकीय

आध्यात्मिकता अनिवार्य


श्रीश्री रविशंकर

आध्यात्मिकता और राजनीति दोनोंका ही मानवता एवं मानवके साथ गहरा संबंध है। राजनीतिका उद्देश्य सुशासन लाना और भौतिक एवं भावानात्मक सुविधाओंको जनतातक पहुंचाना है। वहीं आध्यात्मिकताका लक्ष्य नैतिकता एवं मानवीय मूल्योंको बढ़ाना है। किसी भी देशकी समृद्धिके लिए राजनीति एवं आध्यात्मिकताका एक साथ चलना अति आवश्यक है। सुशासन एवं अच्छे प्रजातंत्रके लिए आध्यात्मिकताका होना अनिवार्य है। बिना आध्यात्मिकताके राजनीतिमें अनैतिकताका वातावरण बनता है और इस कारण भ्रष्टाचार, अपराध एवं अराजकताको बढ़ावा मिलता है। भारतीय आध्यात्मिकताने पूरे संसारको धर्मनिरपेक्षतासे अवगत कराया है। यदि प्राचीन इतिहासको देखें तो आध्यात्मिकता भारतीय राजनीतिमें बहुत गहरी जड़ोंतक स्थित है। प्राचीन कालमें राजगुरु द्वारा राजाको सलाह दी जाती थी एवं उनका मार्ग प्रशस्त किया जाता था। रामके गुरु वशिष्ठ हैं, श्रीकृष्णके गुरु संदीपनी हैं। शिवाजीने भी समर्थ रामदासको समर्थन दिया था। महात्मा गांधी भी अपनी आध्यात्मिकताके कारण ही लाखों लोगोंतक अपनी बात पहुंचा पाये। जब आध्यामिकता एवं राजनीति एक-दूसरेके साथ नहीं चलते तब हमें राजनीतिमें भ्रष्टाचार एवं भ्रष्ट नेता देखनेको मिलते हैं। आध्यात्मिक लोग मूल्योंपर आधारित जीवन जीते हैं जो कि सुशासनके लिए अति आवश्यक है। एक नेताका समदर्शी होना अति आवश्यक है ताकि प्रत्येक व्यक्तिके साथ समानताका व्यवहार कर सके। एक नेताका दूरदर्शी होना भी अति आवश्यक है, खुले विचारों एवं समाजके हितमें अपने सपनोंको साकार करते हुए मानवताकी भलाई कर सकता है। आजके समयकी आवश्यकता ऐसी राजनीति कार्य प्रणाली है जो कि पूर्वागृहोंसे मुक्त हो। आम सहमति केवल तभी उभर सकती है जब राजनेता धर्म, जाति एवं लिंगके आधारपर पूर्वाग्रहोंको छोड़कर आगे बढ़ें। पूर्वाग्रहकी भावनाका त्याग करनेके लिए राजनेतामें अपनेपनकी भावनाका होना अति आवश्यक है। यह केवल तभी हो सकता है, जब वे स्वयं आध्यात्मिकतासे अभिभूत हों। आध्यात्मिकता लोगोंको ईमानदार बनाती है जो कि किसी भी अपराधरहित समाजके लिए बेहद आवश्यक है। परंतु आधिकारिक संरक्षणके बिना आध्यात्मिकताका विकसित होना बहुत मुश्किल है।