पटना

छात्र-छात्राओं के रुके पांव, एजुकेशन हब वाले शहर होंगे वीरान


(आज शिक्षा प्रतिनिधि)

पटना। कोरोना की दूसरी लहर ने बिहारी छात्र-छात्राओं के पांव रोके, तो देश में एजुकेशन हब माने जाने वाले शहरों में वीरानगी छा जायेगी। सर्वाधिक असर कोटा, पुणे  एवं बेंगलुरु पर पड़ेगा। दिल्ली, देहरादून, भोपाल एवं चंडीगढ़ सहित देश के और भी कई शहरों के शिक्षण संस्थानों पर भी संकट के बादल मंडराने शुरू हो जायेंगे।

बिहारी छात्र-छात्राओं से ही देश में एजुकेशन हब माने जाने वाले शहरों में शिक्षा के कारोबार चल रहे हैं। इसमें कोचिंग से लेकर मेडिकल, इंजीनियरिंग, पारा मेडिकल, पॉलिटेक्निक, टीचर्स ट्रेनिंग सहित प्रोफेशनल एवं वोकेशनल कोर्स तक की पढ़ाई के कारोबार हैं। स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शिक्षा के नाम पर बिहार से हर साल तकरीबन दस से पंद्रह हजार करोड़ रुपये दूसरे राज्यों में जाता है।

बिहार में हर साल 10वीं एवं 12वीं का रिजल्ट आने के बाद हर साल हजारों की संख्या में छात्र-छात्रा इंजीनियरिंग एवं मेडिकल कोचिंग के लिए राजस्थान के कोटा जाते हैं। कोटा की पहचान देश में इंजीनियरिंग और मेडिकल के कोचिंग हब के रूप में है। वहां के कोचिंग संस्थानों में इंजीनियरिंग एवं मेडिकल के दो तरह के कोर्स की पढ़ाई होती है। एक है फाउंडेशन कोर्स और दूसरा टार्गेट कोर्स। फाउंडेशन कोर्स दो साल का होता है। इसमें 10वीं पास करने के बाद छात्र-छत्राओं के दाखिले लिए जाते है। दो साल के फीस लाखों में होते हैं। ऊपर से रहने और खाने के साथ बाकी खर्च अलग से। दाखिला लेने वाले छात्र-छात्रा पढ़ाई तो करते हैं कोचिंग में, लेकिन प्लस-टू में उनका दाखिला कहीं और होता है। यानी, उन्हें प्लस-टू के फीस अलग से भरने होते हैं। रही बात टार्गेट कोर्स की, तो यह आठ माह का होता है। इसकी फीस की राशि फाउंडेशन कोर्स की तुलना में आधी होती है। रहने, खाने-पीने के साथ बाकी खर्च अलग से।

आइये, कोचिंग से इतर इंजीनियरिंग, मेडिकल, पारा मेडिकल, पॉलिटेक्निक, टीचर्स ट्रेनिंग एवं प्रोफेशनल-वोकेशनल कोर्स की पढ़ाई के देश भर में आकर्षण का केन्द्र बने कर्नाटक के बेंगलुरु शहर की ओर रुख करें। पिछले दस वर्षों के आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि बिहार से हर साल औसतन तकरीबन चालीस हजार छात्र-छात्रा वहां इंजीनियरिंग में दाखिला लेते हैं। इसके अलावे हर साल हजारों छात्र-छात्रा मेडिकल, पारा मेडिकल, प्रोफेशनल, वोकेशनल एवं टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेजों दाखिला लेते हैं, सो अलग।

बेंगलुरु के बाद मेडिकल, इंजीनियरिंग, पारा मेडिकल एवं प्रोफेशनल-वोकेशनल कोर्स की पढ़ाई का बिहारी छात्र-छात्राओं के आकर्षण का केंद्र पुणे है। हाल के वर्षों में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ एवं भोपाल, तो मेडिकल की पढ़ाई के लिए मुम्बई ने भी बिहारी छात्र-छात्राओं को आकर्षित किया है।

हालांकि, बिहारी छात्र-छात्राओं के लिए देश की राजधानी दिल्ली की पहचान शुरू से ही यूपीएससी की तैयारियों की कोचिंग को लेकर है। हर साल हजारों बिहारी छात्र-छात्रा यूपीएससी की कोचिंग करने दिल्ली पहुंचते हैं। ऐसे बिहारी छात्र-छात्राओं की तादाद भी हर साल कम नहीं होती है, जो प्लस-टू करने के बाद स्नातक की पढ़ाई के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी पहुंचते हैं। जेएनयू में भी बिहार का दबदबा रहा है। पिछले वर्षों में तो देहरादून के साथ ही दिल्ली में हॉस्टल वाले स्कूलों में बिहारी बच्चों के दाखिले का प्रचलन बढ़ा है। बात यहीं खत्म नहीं होती, बिहार के अभिभावक स्कूली शिक्षा के लिए तमिलनाडु के शहरों तक भेजने लगे हैं।

पिछले साल कोरोना की पहली लहर से बचाव को लेकर लगे लॉकडाउन में बिहार के लाखों छात्र-छात्रा कोटा, बेंगलुरु, पुणे, देहरादून, दिल्ली और तमिलनाडु के शहरों में फंस गये। कोटा में फंसे हजारों बच्चे तो रो पड़े। ऐसा ही हाल तमिलनाडु में फंसे स्कूली बच्चों का भी हुआ। छात्र-छात्रा इस कदर आतंकित थे कि कोटा का नाम सुनते ही सिहर उठते। ऐसी ही स्थिति में कमोबेश बेंगलुरु, पुणे, देहरादून, दिल्ली और मुंबई से लौटे छात्र-छात्रा भी रहे।

बहरहाल, कोरोना की दूसरी लहर में तो हालात ज्यादा बिगड़े हुए हैं। यही वजह है कि बिहार बोर्ड की मैट्रिक एवं इंटरमीडिएट का रिजल्ट आने के बावजूद इसमें उत्तीर्ण वैसे छात्र-छत्राओं के मम्मी-पापा, जो दूसरी लहर के पहले तक आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें बाहर भेजने की सोच रहे थे, खामोश हैं।