असम और मिजोरमके बीच सोमवारको सीमा विवादको लेकर नागरिकों और पुलिसके बीच हुई हिंसक झड़प अत्यंत ही दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। दो पड़ोसी राज्योंके बीच हुई हिंसाकी घटनामें छह जवान शहीद हो गये और पुलिस अधीक्षक सहित ५० से अधिक लोग घायल हो गये। दोनों राज्योंकी पुलिस और नागरिकोंके बीच कछार जिलेमें लगभग ४० मिनटतक हुई गोलीबारीसे पूरे क्षेत्रमें दहशत फैल गयी। केन्द्र सरकारने मंगलवारको दावा किया है कि स्थिति अब नियंत्रणमें है। अतिरिक्त बलोंकी तैनाती कर दी गयी है और दोनों राज्योंके मुख्य मंत्रियोंने सीमावर्ती क्षेत्रोंका दौरा कर स्थितिका जायजा लिया। असमके मुख्य मन्त्री हिमन्त बिस्व सरमा और मिजोरमके मुख्य मंत्री जोराम थांगाके बीच ट्विटरपर जिस प्रकार आरोप और प्रत्यारोप लगाये गये उसे भी उचित नहीं कहा जा सकता है। इससे पूरे देशमें अच्छा सन्देश नहीं गया। दोनों मुख्य मंत्रियोंसे ऐसे आचरणकी अपेक्षा नहीं की जा सकती। स्वराष्टï्रमंत्री अमित शाहने दोनों मुख्य मंत्रियोंसे वार्ता कर अपने-अपने राज्योंमें शान्ति सुनिश्चित करनेके साथ ही सौहार्दपूर्ण ढंगसे मामलेका समाधान निकालनेके लिए कहा है। वस्तुत: यह प्रकरण अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। दोनों राज्योंके बीच सीमा विवाद ४९ वर्ष पुराना है, जिसका स्वीकार्य समाधान अबतक नहीं हो पाया। दोनों राज्योंके बीच १६४.६ किलोमीटर लम्बी सीमा लगती है। असम और मिजोरमके तीन-तीन जिले अपनी सीमा साझा करते हैं। मिजोरमका दावा है कि उसके लगभग ५०९ वर्गमील क्षेत्रपर असमका कब्जा है। पूर्वोत्तरके सात राज्योंके बीच सीमा विवाद एक प्रमुख मुद्दा है। असम और मिजोरम दोनों एक-दूसरेपर भूमि अतिक्रमणका आरोप लगाते हैं लेकिन वास्तविकता क्या है, यह स्पष्टï नहीं है। असमका केवल मिजोरमसे ही विवाद नहीं है। मेघालय, अरुणाचलप्रदेश और नगालैण्डके साथ भी असमका सीमा विवाद रहा है। हिंसाकी घटनाके एक दिन पूर्व ही स्वराष्टï्रमंत्री अमित शाहने सातों राज्योंके मुख्य मंत्रियोंसे मुलाकात की थी। बादमें मिजोरम और असमके बीच हिंसाकी घटनाएं हुईं। दोनों राज्योंके बीच हिंसाकी घटनाएं अगस्त २०२० और इस वर्ष फरवरीमें भी हुई थीं। पूर्वोत्तर राज्योंमें शान्तिके लिए आवश्यक है कि केन्द्र सरकार इसमें हस्तक्षेप कर सीमा विवादोंका यथाशीघ्र निबटारा करे। इसके लिए सभी राज्योंको विश्वासमें लेते हुए उनके साथ न्यायसंगत निर्णय होना चाहिए।
माल्यापर शिकंजा
भारतमें भगोड़ा घोषित शराब कारोबारी विजय माल्याको ब्रिटिश हाईकोर्टने दिवालिया घोषित कर दिया है। ब्रिटिश कोर्टका यह फैसला माल्याके लिए बड़ा झटका और भारतीय बैंकोंकी बड़ी जीत है। इसके साथ ही भारतीय बैंकोंके लिए दुनियाभरमें फैली उसकी सम्पत्ति बेचकर अपनी बकाया वसूलीका रास्ता साफ हो गया है। माल्याने अब बदं हो चुकी अपनी किंगफिशर एयर लाइंसकी सेवाएं जारी रखनेके लिए भारतीय स्टेट बैंक समेत अन्य बैंकोंसे नौ हजार करोड़ रुपयेसे ज्यादा कर्ज लिया था और जब कम्पनी डूबी तो कर्ज चुकाये बिना लंदन भाग गया। माल्याने बैंकोंसे कर्जके रूपमें मिले पैसेका उपयोग लग्जरी एयरक्राफ्ट और दूसरी प्रापर्टी खरीदनेके लिए भी किया था। माल्यके खिलाफ भारतीय स्टेट बैंकके नेतृत्वमें भारतीय बैंकोंके एक संघने ब्रिटिश हाईकोर्टमें याचिका दायर की थी। भारतमें माल्याकी बैंकोंके साथ धोखाधड़ी और मनीलांड्रिंगके मामलेमें तलाश है। भारतने माल्याके प्रत्यर्पणके लिए लम्बी लड़ाई लड़ी जिससे बचनेके लिए उसने कानूनी दांवपेंचका सहारा लेकर अबतक बचता रहा है। उसके प्रत्यर्पणका पेंच अब भी फंसा हुआ है, लेकिन कर्ज वसूलीका रास्ता आसान होना भारतके लिए राहतकारी और भारतीय बैंकोंकी बड़ी सफलता है। माल्या फिलहाल ब्रिटेनमें शरण आवेदनसे जुड़े एक गोपनीय कानूनी मामलेमें जमानतपर है। ब्रिटिश हाईकोर्टका माल्यापर शिकंजा आर्थिक अपराधियोंके खिलाफ बड़ा फैसला है। साथ ही बैंकोंके साथ धोखाधड़ीके आरोपित हीरा कारोबारी नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल चौकसी जैसे भगोड़े आर्थिक अपराधियोंके लिए कड़ा सन्देश भी है। इन भगौड़ोंके खिलाफ भी ऐसे ही सख्त कदम उठानेकी जरूरत है जो दूसरोंके लिए सबक बने। भारतीय बैंकोंको भी अपने भ्रष्टï कर्मचारियोंके विरुद्ध कड़ी काररवाई करनी चाहिए जो कर्जके नामपर बैंकोंमें हेराफेरीको बढ़ावा देते हैं।