पटना

दुलारी बोल रही हैं, आपको मिला पद्मश्री


-डॉ. लक्ष्मीकान्त सजल-

पटना। ‘…आप दुलारी देवी बोल रही हैं न… मैं मंत्रालय से बोल रहा हूं … आपका चयन पद्मश्री के लिए हुआ है …’

यह जब फोन पर दुलारी देवी ने सुना, तो खुशी से उनके मुंह से बोल नहीं निकल रहे थे। वह दूसरों के मुंह से तो यह पहले से सुन रहीं थीं कि एक दिन उन्हें पद्श्री जरूर मिलेगा। लेकिन, सोमवार को जब भारत सरकार से फोन आया, तब जाकर उन्हें यकीन हुआ कि उनका चयन पद्मश्री के लिए हुआ है। चूंकि, फोन करने वाले हिंदी में बोल रहे थे। सो, दुलारी देवी ने भी फोन पर टूटी-फूटी हिंदी में ही कहा कि ‘हां, मैं दुलारी देवी ही बोल रही हूं।’ उधर से बधाई देते हुए कहा गया कि ‘मार्च में आपको पद्मश्री प्रदान किया जायेगा।’

दुलारी देवी को ‘आज’ ने फोन पर बधाई देते हुए पूछा कि केहेन लगै-ए? तो, दुलारी देवी ने आह्लïादित होते हुए कहा कि ‘बड़ नीक लागि रहल अछि। एतेक नीक लागि रहल अछि, जे कहल ने जाय। सब अहीं सबहक आशीर्वाद छैक। एहि सँ आब बच्चो सब केँ प्रोत्साहन भेटतैक।’ कहते-कहते खुशी से दुलारी देवी का गला भर आया।

दुलारी देवी मिथिला की बेटी हैं। मधुबनी जिले के रांटी की दुलारी देवी के पद्मश्री पुरस्कार तक पहुंचने की कहानी कम रोमांचक नहीं है। कला की दुनिया में संघर्ष से सफलता की बुलंदी तक पहुंचीं दुलारी देवी का जन्म 27 दिसंबर, 1965 को मल्लाह परिवार में हुआ। वह स्वर्गीय मुसहर मुखिया की बेटी हैं। बचपन अभावों में गुजरा। खाने पकाने से लेकर भाई-बहनों तक की देखभाल में मां का हाथ बंटातीं। पिता जब मछली मार कर लाते, तो वह उसे बेचने बाजार जातीं। जो पैसे आते, उससे घर का सामान लातीं।

ऐसे दिन भी देखने पड़ते, जब घर में चूल्हा नहीं जलता। घर को आर्थिक संकट से उबारने के लिए दूसरों के घर चौका-बर्तन और झाड़ू-पोछा का काम भी किया। कभी स्कूल नहीं गयीं।  खेल खेलते बच्चों के झुंड जेहन में तस्वीर की तरह कैद होने लगे। मन तो कलाकार का था, पर साधन कुछ था ही नहीं। सडक़ पर जमा कीचड़  को सुखा कर उससे माटी का चिडिय़ा बनाने लगीं। एक बार की बात है। उन्हें एक महिला के घर बर्तन मांजने का काम मिला। वह महिला थीं महासुंदरी देवी।   मिथिला चित्रकला की बड़ी हस्ती। दुलारी जब भी महासुंदरी देवी को चित्र बनाते देखतीं, तो सब काम भूल कर उन्हें निहारने लगतीं।

एक दिन दुलारी ने डरते-डरते कह ही दिया कि हमरो सिखा देबै-ए? महासुंदरी ने कहा कि किएक नहिं। उसके बाद दुलारी देवी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। वह कर्पूरी  देवी से भी सीखीं। और, फिर देखते-देखते मिथिला चित्रकला में बड़ा नाम बन गयीं। राज्य पुरस्कार के अलावा दर्जनों पुरस्कार से सम्मानित दुलारी देवी के बनाये चित्र मधुबनी टावर एवं सदर अस्पताल सहित बेंगलुरु, केरल, हरियाणा, चेन्नई, कोलकाता सहित देश के और भी कई शहरों में दीवालों पर आकर्षण के केंद्र बने हैं।