जम्मू-कश्मीर प्रशासनने ऐसे राष्टï्रद्रोही सरकारी कर्मचारियोंके खिलाफ सख्त कदम उठाकर अत्यन्त उचित और सराहनीय कार्य किया है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आतंकी संघटनोंकी सहायता करते हैं। प्रशासनका देर से उठाया गया यह सही कदम है। ऐसे ११ सरकारी कर्मचारियोंको सेवासे बर्खास्त किया गया है। नौकरीसे बर्खास्त होनेवालोंमें आतंकी संघटन हिजबुल मुजाहिदीन सरगना सैयद सलाहुद्दीनके दो पुत्र भी शामिल हैं। राष्टï्रविरोधी और आतंकी गतिविधियोंमें शामिल ऐसे लोग पुलिस, शिक्षा, कृषि, कौशल विकास, बिजली, स्वास्थ्य विभागोंमें कार्यरत थे। अपै्रल से अब तक कुल १७ सरकारी कर्मचारी और अधिकारी बर्खास्त किये जा चुके हैं। इनमें डीएसपीके अतिरिक्त प्रथम श्रेणीके मजिस्ट्रेट और प्रोफेसर भी हैं। सभी लोग गहन जांच पड़तालके दौरान राष्टï्रविरोधी गतिविधियोंमें सक्रिय रूपसे लिप्त पाये गये हैं। बिजली विभागका एक निरीक्षक हथियारोंकी तस्करी और परिवहनमें लिप्त रहा जबकि पुलिस विभागके दो कांस्टेबल अपने विभागमें ही आतंकवादको बढ़ावा दे रहे थे। इसी प्रकार आईटीआईका एक चपरासी आतंकियोंको सुरक्षित ठिकाना उपलब्ध कराता था। वस्तुत: जम्मू-कश्मीरके प्रशासन तंत्रमें ऐसे लोगोंकी संख्या भी कम नही है, जो राज्यमें आतंकी गतिविधियोंमें लिप्त लोगोंका संरक्षण, सहयोग और प्रोत्साहन देनेका कार्य कर रहे हैं। ऐसे लोग देश द्रोहियोंकी श्रेणीमें आते हैं और इनके खिलाफ सख्त काररवाई भी अत्यन्त आवश्यक है। पिछले कुछ महीनोंसे आतंकियोंके विरुद्ध काररवाईमें तेजी अवश्य आयी है लेकिन इस दिशामें अभी और भी कड़े कदम उठानेकी जरूरत है। प्रशासन तंत्रकी गहन पड़ताल होनी चाहिए जिससे कि राष्टï्रविरोधी तत्वोंकी पहचान की जा सके। इसके लिए बड़ा अभियान चलानेकी भी जरूरत है। इस अभियानको केवल जम्मू-कश्मीर तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए। देशके अन्य हिस्सोंमें भी ऐसे तत्व सक्रिय हैं, जिनकी निष्पक्ष पहचान और पड़ताल होनी चाहिए। जम्मू-कश्मीरमें बड़े पैमानेपर सरकारी विभागोंमें नयी नियुक्तियां होने जा रही है। नियुक्ति से पूर्व चयनित लोगोंसे एक शपथ पत्र लिया जाना चाहिए कि यदि वे किसी प्रकार की आतंकी या राष्टï्रविरोधी गतिविधियोंमें लिप्त पाये जाते हैं तो उन्हें नौकरीसे बर्खास्त करनेके साथ ही उनपर कड़ी कानूनी काररवाई भी की जायगी। इससे नौकरी करने वालोंमें भय उत्पन्न होगा और वे राष्टï्र विरोधी गतिविधियोंसे भी अपनेको दूर रखेंगे।
दो बच्चोंकी नीति
उत्तर प्रदेश सरकार की दो बच्चोंकी नीति बढ़ती आबादीपर नियंत्रण की दिशामें अच्छी पहल है। उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण एवं कल्याण) विधेयक २०२१ के मसौदेमें निषेध और प्रोत्साहन दोनोंका प्रावधान है। राज्य विधि आयोगके नये कानूनके तहत जिन लोगोंके दो से अधिक बच्चे होंगे उन्हें कई सुविधाओंसे वंचित होना पड़ेगा। ऐसे लोग सरकारी नौकरीके लिए अपात्र माने जायंगे और जो लोग नौकरी में हैं तो देय लाभोंसे वंचित हो जायंगे। साथ ही ऐसे लोग न तो स्थानीय चुनाव लड़ पायंगे न ही उन्हें किसी तरह की सब्सिडी मिलेगी। दूसरी ओर दो बच्चोंकी नीति को प्रोत्साहित करनेके लिए कई प्रस्ताव शामिल किये गये हैं। इनमें जो सरकारी कर्मचारी स्वैच्छिक नसबंदी से दो बच्चोंके मानदंड को अपनाते हैं उन्हें सेवाकालमें दो अतिरिक्त वेतन वृद्धि, नि:शुल्क चिकित्सा एवं सस्ती ऋण सुविधाके साथ सरकारी संस्थाओंसे भवन-भूखंड खरीदनेकी छूट देनेका प्रावधान शामिल है। बहुविवाह की स्थितिमें अलग तरह की शर्तें रखी गयी हैं जो आयोग की दूरदर्शिताको दर्शाती है। एक से अधिक शादीपर सभी पत्नियोंके बच्चोंकी संख्या एक साथ जोड़ी जायगी। यदि दो बच्चोंमें एक या दोनों बच्चे दिव्यांग होंगे तो तीसरे बच्चेका होना एक्टका उल्लंघन नहीं माना जायगा। लोक सेवक जिनको केवल एक ही संतान है उनके लिए अतिरिक्त लाभकारी व्यवस्था जनसंख्या नियंत्रणको प्रोत्साहित करने वाली है। ऐसे लोगोंको सेवाकालके दौरान दो और वेतन वृद्धि, बीस वर्ष की आयुतक एक बच्चेके लिए मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, बीमा कवरेज, आईआईटी, एम्समें प्रवेश पर वरीयता एवं स्नातक तक मुफ्त शिक्षाका लाभ मिलेगा। बालिकाओंको जहां उच्च शिक्षाके लिए छात्रवृत्ति मिलेगी वहीं सरकारी नौकरीमें बच्चे को वरीयता दी जायगी। छोटा परिवार, सुखी परिवार की परिकल्पनाकी दिशामें सरकारका प्रयास सराहनीय है। यह हर नागरिकपर लागू होना चाहिए। आर्थिक तंगीसे जूझ रहे परिवारोंको राहत देनेके लिए प्रदेश सरकारका यह कदम अन्य राज्योंके लिए भी अनुकरणीय है।