जी. पार्थसारथी
पिछली बार जब मानवताको वैश्विक महामारी भुगतनी पड़ी थी तो यह लगभग एक सदी पूर्व १९१८ की बात है, तब न्यूमोनिक महामारीकी वजहसे दुनियाभरमें अनुमानित ५ से १० करोड़ लोगोंकी जानें गयी थीं। तब प्रथम विश्वयुद्ध लगभग खत्म हो चुका था। भारतमें भी अमूमन १.७ से १.९ करोड़ लोग इस घातक इन्फ्लुएंजाका ग्रास बने थे। मौजूदा वक्तमें कोरोनासे बनी चुनौतीसे निबटनेको दुनियाभरमें संयुक्त वैश्विक सहयोग एवं सहकारितावाले उपाय अप्रैल,२०२० से किये जा रहे हैं। आमतौरपर माना जा रहा है कि कोरोनाकी शुरुआत चीनके वुहान शहर स्थित सीफूड मार्केटसे हुई। पिछले नौ महीनोंमें इस खतरनाक वायरससे बचनेको जागरूकता जगानेमें अभूतपूर्व प्रयास किये गये, जिसके तहत लोगोंको जागरूक किया जा रहा है। साथ ही संक्रमण की पुष्टि के लिए करोड़ों लोगोंका टेस्ट भी किया गया। महामारीसे निबटनेके लिए जिस प्रकार वैक्सीनका उत्पादन हो रहा है, उससे भरोसा बनता है कि महामारीसे बुरी तरह डांवांडोल हुए विश्वमें कोरोनाके खतरेको खत्म करनेकी दिशामें कुछ अच्छी संभावनाएं हैं। यह आशावादी विचार इस तथ्यसे बंधता है कि विश्वभरमें वैज्ञानिक मानवताके लिए जानलेवा बन गये कोरोनाकी वैक्सीन बनानेके अथक प्रयासमें लगे हैं। लेकिन जहां एक ओर यह प्रक्रिया आगे बढ़ रही है वहीं कोरोनाका नया रूप भी उभरा है। यहां दुखद यह है कि अमीर और विकसित देशोंने महामारीसे बनी चुनौतीसे निबटनेमें विकासशील मुल्कोंकी मददपर बहुत कम ध्यान दिया है।
कोरोना अब उस चरणमें है जहां संक्रमणके मामले और मौतोंकी गिनती दुनियाके कुछ विकसित देशोंमें सबसे ज्यादा है। अमेरिकामें कोरोनासे संक्रमित लोगोंकी कुल संख्या २.४ करोड़ और मरनेवालोंका आंकड़ा ४ लाख ३६ हजारको छू गया है। यहां तक कि यूरोपियन देशोंमें भी असाधारण रूपसे मौतोंकी संख्या अधिक रही है। तथापि पूर्वी एशियामें जापान, चीन और वियतनाम बड़े प्रभावशाली ढंगसे कोरोना चुनौतीसे निबटे हैं। नये सालकी शुरुआत राहत और आशान्वित लक्षणोंसे हुई है। भारतमें कोरोनासे प्रभावित होनेवाले नये मामलोंमें लगातार कमी हो रही है। फिलहाल विश्वास है कि बीमारीसे उबरनेकी यह रणनीति बनी रहेगी। इस दौरान देशकी गिरती अर्थव्यवस्था संभालने हेतु कुछ नये तरीके अपनाये गये हैं, उनकी बदौलत मौजूदा वित्तीय वर्षमें भारतकी सकल घरेलू उत्पाद दर अनुमानित ७.४ प्रतिशत रहेगी। यह राहत की बात है। लेकिन आनेवाले सालोंमें उम्मीद है कि उतार-चढ़ावके बावजूद आगामी वित्त वर्षमें अर्थव्यवस्थाकी विकास दर ७.६फीसदी रहेगी। किंतु महामारीने लोगोंके जीवनयापन और कामकाजके तौर-तरीकोंमें बहुतसे बदलाव कर डाले हैं, जो पिछले समयसे काफी अलग हैं, इसके पीछे महामारीके दौरान जुगाड़ लगाकर अपनाये गये नये उपाय हैं। फिलहाल वैश्विक परिदृश्यपर मुख्य केंद्र बिंदु महामारी और उसका निदान है, इसलिए भारतकी ओर दुनियाकी निगाह ज्यादा लगी है। अमीर देश, विशेषकर अमेरिका और यूरोपका सारा ध्यान अपनी समस्याओंसे जूझनेपर टिका है। जाहिर है विकासशील देशोंकी मदद करनेमें उनकी रुचि कम ही है। वैसे भी उनके द्वारा बनायी गयी महंगी वैक्सीन गरीब मुल्कोंकी पहुंचसे बाहर होगी। जल्द ही भारत, जो कि विश्वभरमें सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता है, की ओर विकासशील देश अपनी फौरी जरूरतोंके लिए ताकेंगे। भारतने एस्ट्राजेनेका और भारत बायोटेक उद्योग निर्मित वैक्सीन पहले चरणमें तीस करोड़ नागरिकोंको देनेका लक्ष्य रखा है, जिसे जुलाई माहतक पूरा किया जाना है। वैक्सीन निर्यातमें बंगलादेश, सऊदी अरब और मोरोक्कोका नंबर सबसे ऊपर है। साथ ही पड़ोसके दक्षेस देशों जैसे कि मालदीव, श्रीलंका, म्यांमार, भूटान और नेपालको बड़ी खेप दी जायगी। यह मौका भारतके लिए अपने पड़ोसियोंसे दीर्घकालीन अच्छे संबंध बनानेका है। उम्मीद करें कि कल्पनाशीलतासे काम लेते हुए एकदम साथ लगते और हिंद महासागरीय क्षेत्रके पड़ोसियोंसे संबंधोंको और प्रगाढ़ किया जायगा। जिन मुल्कोंके पास वैक्सीन खरीदनेको पर्याप्त रोकड़ा नहीं है किंतु दवाकी सख्त जरूरत है, उनके लिए उधार वैक्सीन उपलब्ध करवायी जाये।
पिछले वर्षका एक और पहलू जो काबिलेजिक्र है, वह यह कि महामारीके दौरान देशने लद्दाखमें किये गये चीनी दुस्साहसका मुकाबला एकजुटता और दृढ़तासे कर दिखाया। वुहानमें फैले वायरसको बहुत हदतक काबू करनेके लगभग तुरंत बाद चीनने अपने सैनिकोंको वास्तविक सीमा नियंत्रण रेखाके पार भेजा था। उस वक्त भारत कोरोनासे उत्पन्न भावी स्थितिके उपाय करनेमें व्यस्त था। चीनी घुसपैठका मंतव्य सामरिक उद्देश्य था, यह एकदम साफ है। इससे भारतके लिए सामरिक महत्ववाले दौलतबेग ओल्डी हवाई अड्डे और आगे चलकर काराकोरम दर्रेके पहुंच मार्गको खतरा बन जाता। यह भारतका दृढ़ निश्चयी प्रतिरोध ही था, जिसने इस प्रयासको विफल कर डाला। इतना ही नहीं, शांति स्थापनासे पहले भारतने पैंगोंग झीलके दक्षिणी तटसे सटी कुछ सामरिक चोटियोंको अपने नियंत्रणमें ले लिया था। उम्मीद की जाये कि वर्ष २०२१ में सेनाध्यक्ष जनरल नरवाणेके शब्दोंवाली परस्पर एवं बराबरी वाली सुरक्षा बननेसे हमें अपनी सीमाओंपर तनावमें कमी दिखेगी।
भारतमें महामारीसे हुई मौतोंकी त्रासदीके बावजूद हम पिछले सालकी अपनी उपलब्धियों और सफलताकी ओर देखें तो संतोष होता है। विगतकी तरह भारतके लोगोंने जिस तरह महामारीपर प्रतिक्रिया दिखाई है, वह श्लाघानीय है। हालांकि बड़े शहरोंसे भारी संख्यामें अपने गांवोंकी ओर पलायन करनेवाले मजदूरोंको सबसे ज्यादा सहना पड़ा था। अच्छा होता यदि इसका अनुमान पहलेसे लगाकर कल्पनाशीलतासे निबटा जाता। अब बड़ी संख्यामें इन मजदूरोंकी वापसी पुन: अपने कार्यस्थलपर हो रही है। पलायन करते वक्त जिस तरहका दृढ़ संकल्प और सहनशक्ति मजदूरों और उनके परिवारोंने दिखाया, उसकी दस्तावेजी संभाल की जाये ताकि आनेवाली नस्लोंको प्रेरणा मिल सके। भारतके लिए यह गर्व की बात है कि ब्राजीलसे लेकर बंगलादेशतकके मुल्क वैक्सीन पानेके लिए अनुरोध कर रहे हैं।