प्रो. एस. शर्मा
जीवन बचानेके संघर्षमें सामान्य परिस्थितियोंकी प्राथमिकताएं पीछे छूट गयी हैं। लगभग डेढ़ वर्षसे वैश्विक कोरोना महामारीसे जूझते हुए मानवीय जीवन काफी आशंकित, आतंकित तथा भयभीत हो चुका है। दुनियामें असमय तथा अकारण लाखों मौतोंने जीवनकी परिभाषा बदल दी है। अपनोंको खो देनेकी पीड़ा तथा बुरी तरहसे फैले हुए मौतके तांडवने मनुष्यको आतंकित कर दिया है। इस महामारीने जीवनके सभी रंगोंको फीका कर दिया है। जिन्दगी बचानेकी इस जद्दोजहदमें जहां युवा, अधेड़ तथा वृद्ध आयुवर्गको बहुत अधिक नुकसान हुआ है, वहींपर बच्चोंकी मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओंको सुलझानेमें हम नाकाम ही रहे हैं। अनिश्चितताके वातावरणमें इस वर्गको यह पता ही नहीं है कि उनपर प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूपसे क्या प्रयोग हो रहे हैं। कोरोना कालमें यह आयुवर्ग सबसे अधिक उपेक्षित तथा प्रतिबंधित रहा है। वर्तमान परिस्थितियोंमें विद्यार्थीको यह पता ही नहीं कि कब उसकी परीक्षाएं शुरू हो जायं तथा कब स्थगित हो जायं। परीक्षाएं होंगी भी या नहीं। आनलाइन होंगी या फिर आफलाइन परीक्षाएं होंगी। संशय तथा अनिश्चितताका वातावरण है। कोरोना कालकी बंदिशोंसे घरोंकी चारदीवारीतक सीमित यह आयुवर्ग सबसे अधिक अचंभित, आशंकित, भयभीत तथा परेशान है। घर समाज, प्रशासन तथा पाठशालाके आदेशों, प्रतिबंधों तथा मनमानियोंने उसे उलझा दिया है। जहां जमा दो, स्नातक तथा विश्वविद्यालीय स्तरका विद्यार्थी अपनी पढ़ाई, परीक्षाओं, शोधकार्य तथा भविष्य निर्माणके लिए चिंतित है, वहींपर माध्यमिक स्तरतकका विद्यार्थी माता-पिता, अध्यापकों तथा शिक्षा विभागके आये दिन नवीन आदेशोंसे परेशान होता रहता है। मोबाइलपर ह्वïाट्सएप, गूगल मीट तथा जूमसे आनलाइन शिक्षण चल रहा है। विभिन्न स्तरोंसे विभागीय, विद्यालीय आदेशोंका पालन करना उसकी मजबूरी बन चुका है। कई परिवारोंमें एक ही मोबाइल उपलब्ध है। उसे बच्चेके माता-पिता उपयोग करते हैं। अलग-अलग कक्षामें पढऩेवाले बच्चे भी उसी मोबाइलसे पाठशाला तथा अध्यापकोंसे संपर्कमें होते हैं। घरका मुखिया यदि मोबाइलको कहीं बाहर लेकर जाता है तो बच्चोंकी पढ़ाई चौपट हो जाती है।
इसके अतिरिक्त दूरदराज तथा पिछड़े क्षेत्रोंमें मोबाइल नैट कनेक्टिविटीका भी झंझट है। बच्चोंके अभिभावक रोजी-रोटी तथा व्यावसायिक कार्यमें व्यस्त रहते हैं। घरपर बच्चोंका मार्गदर्शन तथा निरीक्षण करनेवाला कोई नहीं है। विद्यार्थी मोबाइलपर अपनी उपस्थिति दर्ज करवानेके बाद मोबाइल गेम्स तथा फिल्मोंमें मस्त हो जाते हैं। शिक्षा विभाग द्वारा विभिन्न माध्यमोंसे चलाये जा रहे कार्यक्रमों हर घर पाठशाला तथा प्रश्नोत्तरीके माध्यमसे बच्चोंको जोडऩेका प्रयास किया जा रहा है। आनलाइन शिक्षण-प्रशिक्षण, बच्चोंकी उपस्थिति तथा शिक्षाकी प्रभावशीलताका दैनिक आकलन हो रहा है। उच्च अधिकारियोंके आदेशोंकी अनुपालना आंकड़ोंके प्रेषणसे पूरी हो जाती है। सरकारके आदेश सचिवालय तथा निदेशालयके अधिकारियोंसे होकर जिला स्तरके शिक्षा अधिकारियों तथा प्रधानाचार्योंके माध्यमसे अध्यापकों, अभिभावकों तथा विद्यार्थियोंतक पहुंच जाते हैं। मोबाइल शिक्षण-प्रशिक्षण तथा सूचनाओंके प्रेषणका एकमात्र माध्यम बन चुका है। जिस मोबाइलको कुछ समय पहले शिक्षण संस्थानोंके विद्यार्थियोंके लिए अछूत तथा दंडनीय माना जाता था, वही आज शिक्षामें अध्यापकों, अभिभावकों तथा विद्यार्थियोंके लिए अग्रदूत बनकर सामने आया है। विद्यार्थियोंकी उपस्थिति, उनके द्वारा किये गये कार्यका मूल्यांकन, अनुपालनाके लिए सभी आदेश तथा निर्देश मोबाइलपर ही दिये जा रहे हैं। यह सब होनेके बावजूद अभीतक पाठशालाओंमें सूचना प्रौद्योगिकी तथा मूलभूत भौतिक संसाधनोंको और अधिक विकसित करनेकी आवश्यकता है। कक्षा-कक्षोंको कनेक्टिविटीके साथ स्मार्ट बनाये जानेकी दरकार है ताकि भविष्यमें इस तरहकी संभावित चुनौतियोंसे निबटा जा सके। कोरोना बंदिशोंके कारण विद्यार्थी घरसे बाहर निकल नहीं सकते। वह शिक्षण संस्थानों तथा शिक्षकोंकी व्यावहारिक व्यवस्थासे दूर हो चुके हैं। इस परिस्थितिसे भविष्यमें विद्यार्थियोंकी शारीरिक, मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं।
इन विपरीत परिस्थितियोंमें शिक्षण संस्थाओंके मुखियाओं तथा अध्यापकोंपर सरकारके शैक्षणिक कार्यक्रमोंको घर-घरतक तथा प्रत्येक विद्यार्थीतक पहुंचानेकी जिम्मेदारी है। पाठशालाके प्रधानाचार्य तथा अध्यापक भी पूरी तरहसे प्रयासरत हैं तथा घरमें ही रहकर हर घर पाठशाला, प्रश्नोत्तरी तथा अन्य कार्यक्रमोंको ह्वïाट्सएप तथा अन्य आनलाइन माध्यमोंसे कक्षाएं लेकर विभिन्न सूचनाओंको उच्च अधिकारियोंतक प्रेषित करनेके उद्देश्यसे विभिन्न आंकड़ोंका रिकॉर्ड अपने पास अंकित कर रख रहे हैं। विपरीत परिस्थितियोंमें शिक्षण कार्य करनेके बावजूद उनपर सामाजिक दबाव भी बना रहता है। विपरीत परिस्थितियोंमें सामाजिक, प्रशासनिक, शैक्षणिक कार्य अच्छी तरह निभानेके बावजूद सामाजिक दृष्टिसे उनकी प्रतिष्ठा भी कम हुई है। नि:संदेह पिछले डेढ़ वर्षमें शिक्षामें गुणवत्ता लानेके उद्देश्यके अभियानको बहुत नुकसान पहुंचा है, लेकिन इस समय प्राथमिकता सभीका जीवन बचानेकी है। यह एक प्राकृतिक चुनौती है। इन परिस्थितियोंमें बच्चोंपर विशेष ध्यान देनेकी आवश्यकता है। विद्यार्थियोंको इस नकारात्मक परिवेशमें सहयोग देकर प्रोत्साहित करनेकी आवश्यकता है। अभिभावकोंको इस समय अध्यापकोंकी भूमिकामें आकर बच्चोंका मार्गदर्शन कर विशेष ध्यान देनेकी आवश्यकता है। वर्तमानमें अभिभावकों तथा अध्यापकोंमें सामंजस्य होना अति आवश्यक है। अध्यापकों तथा बच्चोंके माता-पिताके सहयोगके बिना प्रभावशाली शिक्षा संभव नहीं है। इस समय विद्यार्थियोंको मनोवैज्ञानिक सुरक्षाकी आवश्यकता है।