जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस रवींद्र भट की बेंच ने इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत जारी 15 नवंबर, 2019 की अधिसूचना को बरकरार रखा.
अधिसूचना ने उधारदाताओं को कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) का सामना करने वाली कंपनियों के प्रमोटर गारंटरों के खिलाफ व्यक्तिगत दिवाला कार्यवाही शुरू करने की अनुमति दी थी. कोर्ट ने अधिसूचना को चुनौती देने वाली 75 याचिकाओं पर फैसला किया. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कानून में किए गए बदलाव को चुनौती दी गई थी.
अधिसूचना को ठहराया वैध
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कॉरपोरेट कर्जदार से संबंधित समाधान योजना की मंजूरी इस तरह से काम नहीं करती कि निजी गारंटर, कॉरपोरेट कर्जदार की देनदारियों का निर्वहन हो सके. शीर्ष अदालत ने कहा कि अधिसूचना कानूनी और वैध है. अदालत ने कहा कि इस मामले में किए गए संशोधन और कानूनी प्रावधान वैध हैं और संवैधानिक अधिकार का हनन नहीं करता है.