Latest News नयी दिल्ली राष्ट्रीय

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज कुप्रथा पर जताई चिंता, मामलों के ट्रायल के लिए जारी किए दिशानिर्देश


  • नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दहेज जैसी सामाजिक बुराई जारी रहने और इसके लिए बहू को सताने/मारने पर गहरी ¨चता जताई है। कोर्ट ने शुक्रवार को दिए अपने एक अहम फैसले में कहा कि संसद ने दहेज के लिए पति और ससुराल वालों द्वारा विवाहिता को प्रताडि़त किए जाने की कुरीति खत्म करने के लिए आइपीसी में धारा 304बी का प्रविधान जोड़ा। इस सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए कई कदम उठाए गए, लेकिन इसे झुठलाया नहीं जा सकता कि ये बुराई आज भी जारी है। कोर्ट ने दहेज हत्या के मुकदमों के ट्रायल के बारे में दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि आइपीसी की धारा 304बी (दहेज हत्या) की व्याख्या करते वक्त बहू को जलाने और दहेज मांगने की सामाजिक बुराई खत्म करने की विधायी मंशा का ध्यान रखा जाना चाहिए।

दहेज हत्या के मामले में यह महत्वपूर्ण फैसला प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनाया। कोर्ट ने दहेज कानून में आरोपित का ट्रायल करते वक्त किन बातों का ध्यान रखा जाए इसके दिशानिर्देश जारी किए हैं। हरियाणा के सतवीर ¨सह एवं अन्य के मामले में कोर्ट ने यह फैसला सुनाया। इस केस में जुलाई, 1994 में शादी हुई थी और एक साल बाद जुलाई, 1995 में महिला की जलने से मौत हो गई थी जिस पर पति और ससुराल वालों पर हत्या का मुकदमा चला और 1997 में ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को सजा सुना दी। हाई कोर्ट से अपील खारिज होने के बाद अभियुक्त पति व अन्य सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। सुप्रीम कोर्ट ने भी दहेज हत्या की धारा 304बी के तहत अभियुक्तों को दी गई सजा को सही ठहराया। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि वह ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले में दखल नहीं देगा। हालांकि उसने अभियुक्तों को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के आरोपों से बरी कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में संयुक्त राष्ट्र के आफिस आफ ड्रग एंड क्राइम की ग्लोबल स्टडी आफ होमीसाइड-जेंडर रिलेटेड कि¨लग आफ वीमैन एंड ग‌र्ल्स पर आई रिपोर्ट का हवाला दिया जिसके मुताबिक भारत में 2018 में महिलाओं की हुईं कुल हत्याओं में से 40 से 50 फीसद दहेज हत्याएं थीं। कोर्ट ने कहा, इससे भी खराब सच यह है कि 1999 से 2016 तक ये आंकड़े यथावत रहे। यहां तक कि नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजे आकड़े कहते हैं कि सिर्फ 2019 में धारा 304बी के तहत 7,115 मामले दर्ज किए गए।

कोर्ट ने आइपीसी की धारा 304बी के तहत ट्रायल के जारी दिशानिर्देशों में कहा कि अभियोजन को इस धारा के तत्वों की मौजूदगी स्थापित करनी चाहिए। यह साबित होने पर साक्ष्य अधिनियम की धारा 113बी के प्रविधान लागू होंगे। कोर्ट ने कहा कि धारा 304बी में मौत से तुरंत पहले शब्द का मतलब तत्काल पहले नहीं माना जा सकता। अभियोजन को दहेज प्रताड़ना व हत्या के बीच संबंध और लाइव ¨लक को साबित करना चाहिए। ऐसे मुकदमों के ट्रायल में जज, अभियोजन और बचाव पक्ष को सावधान रहना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत कोर्ट में दर्ज किए जाने वाले अभियुक्त के बयान को हल्के और सतही ढंग से दर्ज किए जाने पर ¨चता जताई। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि धारा 313 के बयानों को महज खानापूर्ति नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि यह निष्पक्षता के मौलिक सिद्धांत पर आधारित है। ट्रायल कोर्ट को अन्य पहलुओं पर भी संतुलन कायम रखना चाहिए।