बाबा हरदेव
परमात्मा अद्वितीय है। न इसका कोई आदि है, न अंत है अर्थात यह अनादि और अनंत है, असीम है, अपार है, इसलिए इसे मापा नहीं जा सकता। जब दूसरा कोई नहीं है तो इसे एक भी कैसे कहे, क्योंकि एक कहनेसे दोकी शुरुआत होती है, एक कहो तो संख्याकी गिनती शुरू हो जाती है। अत: केवल परमात्मा ही है इसे यही कहना होगा क्योंकि इसे न तो एक कह सकते हैं और न दो। हमारे ऋषि-मुनियोंने परमात्माके लिए एक अद्भुत शब्द अद्वैतका प्रयोग किया है। अद्वैतका अर्थ यह नहीं है कि एक है, बल्कि अद्वैतका अर्थ यही है कि दो नहीं है। अत: परमात्माके लिए ज्यादासे ज्यादा केवल इतना ही कह सकते हैं कि दो नहीं है, क्योंकि एक कहनेमें भूल हो जायगी, एक कहनेमें दोकी गिनती समाष्टि हो जाती है। फिर एकमें कोई अर्थ ही नहीं रह जाता यदि दो न हों। इसलिए दो नहीं है इतना कह सकते हैं। मानो न तो एक है, न दो है, बस परमात्माकी गिनतीमें नहीं आ सकता, यह गिनतीसे बाहर है, विचारातीत है। अब ऐसे परमात्माको जो न एक है, न दो है, बस है, जिसने भी पूर्ण सद्गुरुकी कृपा द्वारा जान लिया वह बड़ा भाग्यशाली है, इसकी तुलना किसीसे नहीं की जा सकती। जैसे कहा भी गया है। धन्य सो भागी जो हरि भजै, तामस तुल्य न कोई। एक सम्राट भी ऐसे ब्रह्मïज्ञानी व्यक्तिके सामने भिखारीके समान है, धनी भी इसके सामने दरिद्र नजर आता है, क्योंकि इसे परमात्माके रूपमें राज्योंका राज्य मिल गया होता है और यह सर्वश्रेष्ठ पदवियोंको प्राप्त कर चुका होता है। संपूर्ण अवतार वाणीका भी फरमान है: राजी सारी दुनिया दा ए राज ऐहदा जाण लय। जिसने परमात्माको प्राप्त कर लिया तो समझो उसने सब कुछ प्राप्त कर लिया। इसके लिए प्राप्तिके लिए अब शेष कुछ नहीं रह जाता। अब जिन्होंने परमात्माको नहीं पाया उन्होंने कुछ भी नहीं पाया, लेकिन यह बात ध्यानमें रहे कि परमात्मा पाया जाता है गुरु प्रताप साधकी संगतिसे और कोई उपाय नहीं। अद्वैत भाव एक परम गुण है। अद्वैत भाव कुछ ऐसी कला है, जिसमें थकान नहीं है मानो हम जहां भी देखें, चाहे जर्रा हो, चाहे पत्ते हों, चाहे चंदनके पेड़ हों चाहे पत्थर हों, चाहे गंगाका जल हो, सूरजका तेज हो, चांदकी शीतलता हो, कलियोंकी कोमलता हो, फूलोंका सौंदर्य हो, जहां भी नजर डालो सद्गुरुकी कृपासे अपनी आंखोंसे इन सभीसे जल्दीसे पर्दा हटा कर इसको देख लें। फिर धीरे-धीरे हमारी आंखें ही पर्दा उठानेकी कला सीख जायंगी और फिर ऐसा समय भी आयगा जब हमें पर्दा उठाना ही नहीं पड़ेगा, केवल नजर पड़ी और हम पर्देके पार देखने लगे क्योंकि अब हमें ज्ञान हो गया है कि सब जगह बस ईश्वर, परमात्माकी ही छवि विराजमान है।