Post Views: 692 श्रीराम शर्मा प्रत्येक मानवका धर्म, सामान्यसे ऊपर, वह कर्तव्य है, जिसे अपनाकर लौकिक, आत्मिक उत्कर्षके मार्ग प्रशस्त हो जाते हैं। धर्म अर्थात जिसे धारण करनेसे व्यक्ति एवं समाजका सर्वांगीण हित साधन होता है। आस्तिकता और कर्तव्य परायणताको मानव जीवनका धर्म, कर्तव्य माना गया है। इनका प्रभाव सबसे पहले अपने समीपवर्ती स्वजन शरीरपर […]
Post Views: 583 हृदयनारायण दीक्षित प्राचीनताका बड़ा भाग प्रेरक और गर्व करने योग्य होता है। अंग्रेजोंने प्रचारित किया कि भारत एक राष्ट्र नहीं है। अंग्रेजी सभ्यता प्रभावित विद्वानोंने मान लिया कि हम कभी राष्ट्र नहीं थे। अंग्रेजोंने ही भारतको राष्ट्र बनाया। बीसवीं सदीके सबसे बड़े आदमी महात्मा गांधीने अंग्रेजोंको चुनौती दी। उन्होंने १९०९ में हिन्द […]
Post Views: 1,074 संयुक्त राष्ट्रकी पीड़ा कोरोना वैश्विक महामारीसे पूरी दुनिया आक्रान्त है। १८० से अधिक राष्ट्र इसकी चपेटमें हैं। इससे अर्थव्यवस्थाके साथ ही जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इसका सामना करनेके लिए जो दौड़ चली उनमें विकसित राष्ट्र अपनी बढ़त बनानेकी दिशामें काफी सक्रिय रहे। अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओंने भी अपनी भागीदारी की लेकिन इन […]