कोरोना कालमें महंगी तेज रफ्तारके साथ रिकार्ड स्तरपर पहुंच गयी है, जो सरकार और जनता दोनोंके लिए गम्भीर चिन्ताका विषय होनेके साथ ही देशकी अर्थव्यवस्थाके लिए भी सुखद संकेत नहीं है। केन्द्र सरकारकी ओरसे जारी आंकड़ोंके अनुसार मई माहमें थोक महंगी दर १२.९४ प्रतिशतके स्तरपर पहुंच गयी, जो २५ वर्षोंमें सर्वाधिक है। अप्रैल माहमें यह १०.४९ प्रतिशत थी। इसी प्रकार खुदरा महंगी दर भी दो प्रतिशतकी वृद्धिके साथ ६.३० प्रतिशत हो गयी। पिछले छह माहके दौरान यह उच्च स्तरपर है। थोक महंगी दर पिछले पांच माहसे लगातार बढ़ रही है। महंगी दरमें हुई भारी वृद्धिके लिए कई कारण बताये जा रहे हैं। महामारीके कारण उत्पादन और आपूर्तिमें अवरोध, महंगा कच्चा माल, श्रमकी लागतमें वृद्धि, पेट्रोल और डीजलकी बढ़ती कीमतें और विश्व बाजारमें कमोडिटीके मूल्य बढऩेसे देशमें महंगी रिकार्ड स्तरपर पहुंच गयी है। जहांतक खुदरा महंगीका प्रश्न है, वह भारतीय रिजर्व बैंककी तय सीमासे भी अधिक है। चिन्ताकी बात यह भी है कि शहरोंके मुकाबले गांवोंमें महंगी अधिक है, जिससे ग्रामीण मांगमें कमी आना स्वाभाविक है। थोक महंगी दरमें वृद्धिका एक प्रमुख कारण पेट्रोल और डीजलकी कीमतोंमें लगातार वृद्धि माना जा रहा है। छह सप्ताहके दौरान पेट्रोल और डीजलके दाम २५ बार बढ़ाये गये। इन दोनों पेट्रोलियम पदार्थोंकी कीमतोंमें वृद्धिका क्रम बना हुआ है। बंगाल सहित पांच राज्योंमें विधानसभा चुनावोंके दौरान तेल कम्पनियोंने १८ दिनोंतक मूल्यवृद्धि नहीं की। मई माहमें ईंधन और ऊर्जाकी थोक महंगीमें ३७.६१ प्रतिशतकी असाधारण वृद्धि हुई। यह अप्रैलमें २०.९४ प्रतिशत थी। मईमें खाद्य महंगी दर ५.०१ प्रतिशतपर पहुंच गयी, जो अप्रैलमें १.९६ प्रतिशत थी। प्राय: सभी खाद्य वस्तुओंके दाम बढऩेसे आम आदमीकी दिक्कतें बढ़ गयी हैं। परिवारका भरण-पोषण काफी महंगा हो गया है। विशेषज्ञोंका मानना है कि कोरोना कालके दौरान राज्योंमें पाबन्दियोंके कारण महंगीमें वृद्धि हुई है, क्योंकि आपूर्तिकी व्यवस्थामें कई अवरोध आ गये तथा बेरोजगारी दरमें वृद्धिसे लागत बढ़ गयी। श्रमिकोंकी किल्लतसे उत्पादन लागतमें वृद्धि हुई है। अब सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि महंगीपर कैसे काबू पाया जाय। इसके लिए सरकारको शीघ्र ही राहतकारी कदम उठाने होंगे। पेट्रोल और डीजलकी कीमतोंको करोंमें कटौती करके कम किया जाय। आपूर्ति व्यवस्थामें सुधारके साथ मांगमें वृद्धिके लिए भी प्रयास करने होंगे और इसके लिए बढ़ती बेरोजगारीपर अंकुश लगाना होगा। बढ़ती महंगीका असर जनताके साथ ही अर्थव्यवस्थापर भी पड़ेगा। इसलिए महंगीको चुनौतीके रूपमें लेते हुए तत्काल कदम उठाने होंगे।
बुजुर्गोंका उत्पीडऩ
कोरोना संक्रमणकी दूसरी लहरके बीच परिवारमें बुजुर्गोंकी बढ़ती उपेक्षा और दुव्र्यवहारकी घटनाएं भारतीय समाजके लिए अत्यन्त दुखद है। इस सम्बन्धमें एजवेल फाउण्डेशनकी विश्व बुजुर्ग उत्पीडऩ जागरूकता दिवसके पहले जारी रिपोर्ट व्यथित करनेवाली है। रिपोर्टमें कहा गया है कि मौजूदा कोरोना कालमें ८२ प्रतिशत बुजुर्गोंने दावा किया कि उनका जीवन प्रभावित हुआ है। इनमें ७३ प्रतिशत बुजुर्गोंने दावा किया कि उनके साथ दुव्र्यवहार हुआ। इसके लिए उन्होंने पारस्परिक सम्बन्धोंको मुख्य कारक बताया। रिपोर्टके अनुसार हर तीसरे बुजुर्गने स्वीकार किया कि वे शारीरिक अथवा मानसिक रूपसे घरेलू हिंसाका सामना करते हैं। वैसे तो कोरोना संकटकालमें लाकडाउन और सख्त पाबन्दियोंने समाजके लगभग सभी लोगोंको प्रभावित किया है, लेकिन बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित रहे हैं। महामारीने ५२.२ प्रतिशत बुजुर्गोंकी आयको प्रभावित किया है। नौकरीका छूटना और परिवारके सदस्योंके वेतनमें कटौतीसे लडख़ड़ायी आर्थिक स्थिति पारिवारिक अशान्तिका प्रमुख कारण है जिसका खामियाजा बुजुर्गोंको भोगना पड़ रहा है। परिवारमें वरिष्ठï सदस्यकी अपमानजनक दयनीय स्थिति गम्भीर चिन्ताका विषय है। दशकों पूर्व संयुक्त परिवार था जिसमें बुजुर्गोंकी अलग भूमिका थी और वे सम्मानकी दृष्टिïसे देखे जाते थे। मर्यादाकी यह स्थिति थी कि बिना उनकी अनुमतिके घरका पत्तातक नहीं हिलता था। यह परम्परा युगोंसे चली आ रही थी लेकिन कालान्तरमें परिस्थितियां बदलीं जिससे सामाजिक और पारिवारिक विघटनने पुराने रीति-रिवाजोंको तार-तार कर दिया। अब एकाकी परिवार है जिसमें बुजुर्गोंकी कोई भूमिका नहीं है। परिवारसे प्रताडि़त होना उनके जीवन हिस्सा बन चुका है, जो उचित नहीं है। वरिष्ठï नागरिक सम्मानके पात्र होते हैं, इनके साथ दुव्र्यवहार भारतकी सभ्यतापर कलंक है। परिस्थितियोंसे घबड़ाकर अपनी सभ्यता-संस्कृतिको तिलांजलि नहीं दी जा सकती है। पूर्वजोंके आदर्शको ध्यानमें रखते हुए बुजुर्गोंके प्रति सम्मानकी भावना होनी चाहिए।