सम्पादकीय

राहतकारी संकेत


यद्यपि देशमें कोरोना संक्रमितोंका आंकड़ा दो करोड़से ऊपर पहुंच गया है लेकिन इसकी रफ्तारमें कमी राहतका संकेत है। एक पखवारेके अन्दर ही संक्रमणके ५० लाखसे अधिक नये मामले सामने आये हैं। मंगलवारको स्वास्थ्य मंत्रालयकी ओरसे जारी आंकड़ोंके अनुसार पिछले २४ घण्टेके दौरान तीन लाख ५७ हजार २२९ नये मामले दर्ज किये गये और इसी अवधिमें ३४४९ लोगोंकी मृत्यु भी हुई। साथ ही तीन लाख २० हजार २८९ मरीज ठीक होकर अपने घरोंको गये। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालयके संयुक्त सचिव लव अग्रवालका यह दावा भी राहतकारी है कि दिल्ली, छत्तीसगढ़, महाराष्टï्र, पंजाब, झारखण्ड और उत्तर प्रदेशमें कोरोना मामलेमें स्थिरताके संकेत मिले हैं। महाराष्टï्र सहित १२ राज्योंमें कोरोनाके मामले घट भी रहे हैं। इनमें दमन और दीव, गुजरात, झारखण्ड, लद्दाख, लक्षद्वीप, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड भी शामिल हैं। महाराष्टï्रके १२ जिलोंमें गिरावटके संकेत मिले हैं। १२ राज्य ऐसे हैं, जहां कोरोना मरीजोंकी संख्या एक लाखसे अधिक है। २२ राज्य ऐसे हैं, जहां संक्रमण दर १५ प्रतिशतसे अधिक है जबकि नौ राज्योंमें संक्रमण दर पांचसे १५ प्रतिशतके बीच और पांच राज्योंमें पांच प्रतिशतसे भी कम है। यह स्थिति अवश्य राहतकारी है लेकिन चिन्ताकी बात यह है कि २३ राज्योंमें संक्रमणके मामले बढ़ रहे हैं। इनमें असम, बिहार, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, राजस्थान, पश्चिम बंगाल भी शामिल हैं। जिन पांच राज्योंमें अभी हालमें ही विधानसभाके चुनाव सम्पन्न हुए हैं, वहां संक्रमणके मामले बढ़ रहे हैं। यह स्वाभाविक भी है, क्यांकि चुनावके दौरान कोरोना प्रोटोकालका वहां अनुपालन नहीं हुआ। स्वास्थ्य मंत्रालयका कहना है कि मृत्यु दर १.१० प्रतिशत है जबकि स्वस्थ होनेवालोंकी दर ८१.९१ प्रतिशत है। पहली मईको कोरोनाकी सुनामी आयी थी, जब एक दिनमें चार लाखसे अधिक नये मामले आये और ३५२३ लोगोंकी मृत्यु हुई। अब संक्रमणकी स्थितिमें अवश्य सुधार हुआ है और सरकार भी सख्त हुई है। इस सख्तीका अवश्य प्रभाव पड़ेगा। इससे संक्रमणकी रफ्तार कम होगी। अनेक राज्योंने स्थितिकी समीक्षा करते हुए जो सख्त कदम उठाये हैं, वह उचित और आवश्यक था अन्यथा हालात और भी बदतर हो जाते। जनताको स्वेच्छासे आत्म अनुशासनमें रहनेकी जरूरत है। ढिलाई और लापरवाहीसे ही संक्रमणकी गति बढ़ती है, इसपर अंकुश लगाना जरूरी है।

बंगालमें हिंसक घटनाएं

पश्चिम बंगालमें विधानसभा चुनावके परिणाम आनेके बाद सोमवारको व्यापक पैमानेपर हुई हिंसामें १२ लोगोंकी मौत अत्यन्त दुखद और जनादेशका घोर अपमान है। मृतकोंमें भाजपाके छह कार्यकर्ताओंमें एक महिला भी शामिल है। वहीं तृणमूल कांग्रेसने भी अपने तीन कार्यकर्ताओंके मारे जानेका दावा किया है जबकि तीनकी एक अन्य हिंसक घटनामें मौत हो गयी। भाजपाका आरोप है कि नतीजोंके बादसे ही उसके कार्यकर्ताओंको निशाना बनाया जा रहा है। उसने एक वीडियो जारी किया है जिसमें चीख-पुकारके बीच जलते अपने कार्यालय, मृतकोंकी तस्वीर और दुकानोंमें लूटको दिखाया गया है। केन्द्र सरकारने हिंसात्मक घटनाओंको गम्भीरतासे लेते हुए पश्चिम बंगाल सरकारसे रिपोर्ट तलब की है जबकि राज्यपाल जगदीप धनखडऩे राज्यके डीजीपीसे इस मामलेकी रिपोर्ट तलब की है, साथ ही गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक एवं कोलकाताके पुलिस आयुक्तको शान्ति बहालीके निर्देश दिये हैं। वैसे पश्चिम बंगालका माहौल चुनावकी अधिसूचना जारी होनेके बादसे ही गर्म रहा। चुनाव प्रचारसे लेकर मतदानके दौरानतक हिंसक घटनाएं होती रहीं, जो चुनाव परिणाम घोषित होनेके बादतक जारी है। यह प्रजातंत्रकी शुचितापर गम्भीर सवाल खड़ा करती है। भारत दुनियाका सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। यहां इस तरहकी घटनाओंसे देश-विदेशमें गलत सन्देश जा रहा है। जनादेशका सम्मान होना चाहिए, क्योंकि यह लोकतन्त्रकी रीढ़ है। पराजित प्रत्याशियोंको अपने पराजयके कारणोंकी समीक्षा करनी चाहिए ताकि उसमें सुधार किया जा सके। देश इस समय बेकाबू होते कोरोना संक्रमणके संकटकालीन दौरसे गुजर रहा है, ऐसेमें राजनीतिसे प्रेरित घटनाएं कोढ़में खाज पैदा करनेवाली है। हिंसक घटनाएं मजबूत लोकतंत्रके लिए शुभ संकेत नहीं है। मुख्य मन्त्री ममता बनर्जीके समक्ष इस समय दो महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां हैं। एक तो राज्यकी खराब होती छविको सुधारनेके लिए शान्ति बनाये रखें और दूसरी कोरोनाके खिलाफ जंगमें सक्रिय भूमिका निभायें। राज्यका लगातार तीसरी बार मुख्य मन्त्री बनना गर्वकी बात है। इसलिए शान्ति व्यवस्था उनकी सरकारकी प्राथमिकता होनी चाहिए।