सम्पादकीय

विज्ञानसे उपजता स्वास्थ्य संकट


तिलक

मानव जातिने प्रगतिके अनेक सोपानोंपर विजय प्राप्त की है। जो कार्य एक समय असंभव माने जाते थे, आज हमने उनको भी कर दिखाया है। हमने ऐसी भी उपलब्धियां हासिल की हैं जिनकी कल्पना हमारे पूर्वजोंने स्वप्नमें भी नहीं की होगी। सुईसे लेकर जहाजतकका निर्माण करना, मनुष्यका चांदपर पहुंचना, असाध्य रोगोंपर विजय प्राप्त करना, यह सब मनुष्यके प्रयासोंके साथ विज्ञानकी ही देन है। यद्यपि जबसे मनुष्य इस धरतीपर आया है, तभीसे ही नये-नये आविष्कारोंके साथ समय और परिस्थितियोंके अनुसार मनुष्य आगे बढ़ता आया है, परंतु आधुनिकताकी चकाचौंधको देखकर मनुष्यका कायाकल्प ही कर डाला है। तमाम वैज्ञानिक उपलब्धियोंके बावजूद प्रदूषित मन, प्रदूषित शरीर, प्रदूषित जलवायु और कोरोना जैसे असाध्य रोग भी विज्ञानकी ही देन हैं। मानव जातिने प्रकृतिके साथ जब-जब भी छेडख़ानी की है, उसको उसका नतीजा समय-समयपर मिलता रहा है। आज जब इसकी सीमा हदसे ऊपर हो गयी है तो इसका दुष्प्रभाव पूरी मानव जातिपर पड़ता हुआ स्वयं दिखाई दे रहा है। वर्तमानमें जहां कोरोना संक्रमणकी चपेटमें पूरा विश्व है, वहीं इसके इलाज एवं कारणोंको ढूंढऩेमें बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी असमर्थ होते दिखाई देते हैं। हालांकि इसपर शोध कार्य जारी है, फिर भी इसका उपचारात्मक हल न निकलनेसे मानव जातिको भयावह स्थितिसे गुजरना पड़ रहा है। आज जहां विज्ञानकी वजहसे मनुष्यका जीवनयापन सुलभ हुआ है, वहीं दूसरी ओर मानवका विकास सूचकांक नीचे गिरता हुआ दिखाई देता है। आज इतने अत्यधिक रेडिएशन हवामें रिफ्लेक्ट हो रहे हैं जिसका सीधा दुष्प्रभाव पशु-पक्षी और इस धरतीमें रह रहे तमाम जीवित प्राणीपर पड़ता हुआ साफ दिखाई दे रहा है। जिस तरहसे हमारे बुजुर्गों एवं पूर्वजोंने पूर्वमें विज्ञान और वैज्ञानिक अनुसंधानोंके सोपानोंपर विजय प्राप्त होते इतनी कल्पना नहीं की थी, उसी तरहसे वर्तमानमें भावी पीढ़ीने भी विज्ञानकी वजहसे ऐसे दुष्परिणाम देखनेको मिलेंगे, ऐसी स्वप्नमें भी कल्पना नहीं की होगी, जिन हालातसे पूरा विश्व आज प्रभावित हुआ है। अब प्रश्न उठता है कि क्या विज्ञान और विज्ञानके द्वारा दिये हुए आविष्कारोंको ठुकरा दें या फिर हम वहां लौट जायं जहां आदिमानव गुफाओंमें रहकर गुजारा करता था। वस्तुत: ऐसा करना न तो आवश्यक है और न ही व्यावहारिक। इन सब बीमारियोंका इलाज भी मनुष्यके पास ही है।

हम अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, इंग्लैंड जैसे देशोंकी वैज्ञानिक उपलब्धियों, उनके रहन-सहन, उनकी जीवन प्रत्याशा, उनके जीवन सूचकांकका अनुसरण किये बिना अपने देशकी पारिस्थितिकी भूमंडलीकरण पर्यावरणके हालातको देखते हुए जिससे हवा और पानीपर अत्यधिक विपरीत असर न पड़े, जैसे आविष्कारोंको खोजनेकी इजाजत राष्ट्रीय वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्रोंको होनी चाहिए, अन्यथा इस विश्वव्यापी आधुनिक चकाचौंध प्रतियोगितामें मानव जाति ही खत्म हो जायगी। आज जहां पर्यावरणके असंतुलनसे ओजोन परतमें छेद होनेकी बात अंतरराष्ट्रीय स्तरपर हो रही है जिससे ग्रीनहाउस खतरेमें पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है, वहीं दूसरी ओर इन सब बातोंकी परवाह किये बिना ऐसे कई प्रकारके रॉकेट, प्रक्षेपास्त्र, आकाशभेदी मिसाइल, आणविक शस्त्रोंका परीक्षण ५जी जैसी इंटरनेट परीक्षणोंमें रात-दिन जुटे हुए हैं। इन सबके प्रयोगोंसे अनेक वनस्पति प्रजातियां भी खत्म हो गयी हैं। जलवायु भी पूरी तरह प्रभावित हुआ है। आज ऐसी भयानक बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं जिनका शोधकर्ताओंको नामकरण करनेमें कठिन परेशानियोंका सामना करना पड़ रहा है।

परिणामस्वरूप मानव जातिका इलाज न  होनेकी वजहसे जिंदगीसे हाथ धोना पड़ रहा है। आज संपूर्ण मानव जाति खतरेमें है। वजह जानते हुए भी इसके नियंत्रणके लिए समय रहते कोई ठोस नीति निर्धारित नहीं की जा रही है, जो कि चिंतनीय विषय है। प्रकृति भगवान द्वारा दिया गया बहुत बड़ा उपहार है। इसको संजोये और सुरक्षित रखना हम सबका और विशेषकर सरकारका विशेष दायित्व होता है। आज वायुमंडलके चारों तरफ इतने विषाक्त, जहरीले एवं जानलेवा पदार्थ उत्पन्न हुए हैं जिससे मनुष्य जातिको कई प्रकारकी बीमारियोंका शिकार होना पड़ रहा है और बीमारियोंके समाधानमें शरीरमें एंटीबायोटिक दवाइयोंका भी कोई असर नहीं हो रहा है। अंतत: सुझाव यह दिया जाता है कि नित्य योग करें। भारतकी ७० फीसदी आबादी यदि गांवमें बसती है तो गांवका नौजवान शहरोंके नौजवानोंसे ताकतवर माने जाते हैं और उनकी शारीरिक कसरतें भी नित्य होती रहती हैं जिससे उनमें प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होती है और योग भी स्वत: ही हो जाता है। बावजूद इसके ग्रामीण क्षेत्रोंमें भी चाहे कोरोना वायरस बीमारीका प्रभाव हो या किसी अन्य रोगोंका अत्यधिक मात्रामें लोग प्रभावित हो रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि कहीं न कहीं अत्यधिक रेडिएशन और सीमासे अधिक कल-कारखाने, फैक्टरियोंके होनेसे ५जी इंटरनेट जैसे प्रयोगोंसे हमारा जीवन प्रभावित हुआ है। इसके लिए सरकारों एवं जिम्मेदाराना लोगोंको चाहिए कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचोंपर विशेषकर विश्व स्वास्थ्य संघटनके माध्यमसे इस विषयको गंभीरतापूर्वक रखकर मानव जातिकी रक्षा हेतु उचित समाधान निकाला जाय। यदि सरकार, अनुसंधानकर्ता, स्वास्थ्य विभाग और समाजका हर पढ़ा-लिखा बुद्धिजीवी वर्ग पर्यावरण और प्रकृतिके संरक्षणकी ओर सजग हो जाय तो नि:संदेह मानव जातिको इस महाप्रलयसे अब भी बचाया जा सकता है, अन्यथा इसके घातक परिणामोंको भुगतनेके लिए भी तैयार रहना पड़ेगा।