डा. संजय कुमार दुबे
हम बापूका ७३वां शहदत दिवसके रूपमें भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए महान वैज्ञानिक आइंस्टीनके उस विचारको याद करते हैं, जिसमें उन्होंने गांधीजीके बारेमें कहा था कि आनेवाली नस्लें शायद ही यकीन कर पायें कि हाड़-मांससे बना कोई ऐसा व्यक्ति भी इस धरतीपर चलता-फिरता था। अपने सकारात्मक विचारोंसे पूरी दुनियाको प्रभावित कर सत्य और अहिंसाके मार्गपर चलनेपर प्रेरित करनेवाले गांधीजी सभीका समग्र विकास करनेमें यकीन रखते थे। महान विद्वान टालस्टास, रस्किन और थोरोसे प्रभावित गांधीजी अहिंसाके सबसे बड़े प्रवर्तक थे। उन्हें बापू पहली बार सुभाषचन्द्र बोसने कहा था। गांधीजी सभी परिस्थितियोंमें सत्य और अहिंसाका पालन करनेके लिए सभीको प्रेरित किया और सादगी जीवनचर्यासे अपना पूरा जीवन साबरमती आश्रममें गुजारा।
अहिंसा परमो धर्म: के सिद्धान्तको अपना कर समूचे विश्वको सत्य और अहिंसाके मार्गपर चलनेके लिए प्रेरित किया। सविनय अवज्ञा, दलित आन्दोलन, चम्पारण सत्याग्रह तथा भारत छोड़ो आन्दोलन आदिके माध्यमसे भारतको अंग्रेजोंसे मुक्त कराया। गांधीजी हमेशा कहते थे कि कमजोर व्यक्ति कभी माफी नहीं मांगते, श्रम करना तो ताकतवर व्यक्तिकी विशेषता है। एक राजनीतिक चिन्तकके रूपमें गांधीजीके विचारोंकी जड़ें नैतिकता और आध्यात्मिकतामें ही थी। गांधीजीका विचार था कि हमें सत्य और अहिंसाको मात्र व्यक्तिगत आचरणका विषय नहीं बनाना चाहिए, बल्कि समूहों, समाजों, राष्टï्रोंके व्यवहारकी वस्तु भी बननी चाहिए। मेरा एकमात्र यही इच्छा है कि चूंकि अहिंसा आत्माका गुण है इसलिए सभीको उसका पालन करना चाहिए। अहिंसा एक ऐसी ज्योति है जिसके द्वारा सत्यका दर्शन किया जा सकता है, क्योंकि अहिंसाके बिना सत्यकी खोज करना और प्राप्त करना असम्भव है। गांधी विश्व शान्तिके हिमायती तथा मानवताके सच्च भक्त थे। विश्व इतिहासमें आज कोई ऐसा पुरुष नहीं, जिसने कणसे लेकर परमात्मातक एक भावसे आचार और विचार किया हो। गांधीजी देशकी आजादीके लिए कई बार जेल गये। अपने महान और उत्कृष्टï व्यक्तित्व रूपी आदर्श और महान जीवनकी विरासतके जरिये वह पूरी दुनियाको प्रेरित कर रहे हैं और भारतको वैश्विक पहचान भी दिखायी। आज विश्वमें चल रहे अदृश्य युद्धको जड़से समाप्त करनेके लिए गांधी विचारधाराको अपनाकर ही सफलता पायी जा सकती है।
महात्मा गांधीकी पुण्यतिथिपर आज हम उन्हें याद कर रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण प्रश्न यही है कि गांधीजीके विचारोंकी प्रासंगिकता आज वर्तमान समयमें कितनी है। क्योंकि ऐसा लगने लगा है कि हम गांधीजीको और उनके विचारोंको विस्मृत करते जा रहे हैं। साथ ही समूचे विश्वके सामने ज्वलन्त समस्याओंके समाधानमें भी उनके सिद्धान्तोंका प्रयोग कम होता जा रहा है। यही वजह है कि आज पूरा विश्व तृतीय विश्वयुद्धके कगारपर खड़ा है। वास्तवमें क्या गांधीजीने भावी भारत और भावी विश्वकी यही तस्वीर बनायी थी। निश्चित तौरपर आज हमें अन्धानुकरणके संकीर्ण मार्गसे थोड़ा हटकर इस दिशामें गहन विचार करनेकी आवश्यकता है, क्योंकि राष्टï्रीय और अन्तरराष्टï्रीय स्तरपर बढ़ती हुई बेरोजगारी, आतंकवाद, जाति एवं धर्मके बीच गतिरोध, जाति एवं नस्लकी वैमनस्यता, आर्थिक विषमताओंसे उभरती आर्थिक नूतन प्रवृत्तियों एवं अस्थिरतामें गांधीजीके राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक विचारधारा आज वर्तमान समयमें काफी ज्यादा प्रासंगिक हो सकती है।
निश्चित तौरपर हम कह सकते हैं कि आधुनिक युगमें गांधी दर्शन हमारी जीवनशैलीसे धीरे-धीरे दूर होता जा रहा है। यही वजह है कि सर्वत्र झूठ, धोखाधड़ी, हिंसा, अन्याय, अत्याचार, स्वार्थ और पूर्वाग्रहसे ग्रसित परिस्थितियां देखनेको मिलती है। जहां विदेशी गांधीवादको अपनानेपर बल दे रहे हैं वहीं, भारतमें गांधीवाद धीरे-धीरे अपना प्रभाव खोता जा रहा है। यकीनन भारतमें गांधीवादकी प्रासंगिकतापर एक प्रश्नचिह्नï लग चुका है जो निश्चित ही चिन्तनीय प्रश्न है। इस बातसे यकीनन इनकार नहीं किया जा सकता कि आजके आधुनिक युगमें जहां चारों तरफ कट्टïरवाद, आतंकवाद तथा असहिष्णुताका बोलबाला है। ऐसेमें गांधीजीके विचार, सिद्धान्त पूर्वकी तुलनामें आज अत्यधिक प्रासंगिक है। विश्व शान्ति और विश्वयुद्ध, आध्यात्म और भौतिकवाद, लोकतन्त्र एवं अधिनायकवादके मध्य पूरे विश्वमें चल रहे अदृश्य युद्धको जड़से समाप्त करनेके लिए गांधीवादी विचारधाराको अपनाकर ही सफलता पायी जा सकती है। महात्मा गांधीके विचार, सिद्धान्त आज विश्वके लिए प्रेरणास्रोत है। उन्होंने साबित किया कि दृढ़ संकल्प, अदम्य साहसके सहारे दुनियामें कुछ भी सम्भव है।