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अग्निपथ पर भाजपा और जदयू के बीच रार, रायसीना हिल पर प्यार


पटना, । बिहार में भाजपा-जदयू के रिश्तों को लेकर हमेशा असमंजस ही रहता है। कभी रार इतनी बढ़ती है कि लगता है, अब दोस्ती नहीं रहने वाली। वहीं कुछ समय बाद भाजपा शीर्ष नेतृत्व के प्रयासों से हालात सामान्य हो जाते हैं। हालिया प्रकरण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना अग्निपथ को लेकर है जिसमें जदयू ने अग्निपथ के औचित्य को लेकर सवाल खड़े कर दिए थे। इसको लेकर भाजपा और जदयू के बीच खटास बढ़ गई। इसी बीच राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुमरू को एनडीए द्वारा प्रत्याशी बनाए जाने पर प्रधानमंत्री मोदी का फोन नीतीश को गया तो तुरंत समर्थन देकर नीतीश ने स्थानीय खटर-पटर को शांत कर दिया।

सरकार गठन के बाद से ही भाजपा और जदयू के संबंध सामान्य नहीं रहे। कुछ दिन की शांति के बाद कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है कि फिर दोनों दलों के बीच वाकयुद्ध शुरू हो जाता है। लगने लगता है कि शायद बेमेल विवाह हो गया है और अब संबंध टूटने में देर नहीं। विपक्ष में खाली बैठे दल अपने भविष्य को लेकर आशान्वित होने लगते हैं, लेकिन कुछ दिनों बाद उनके लिए नतीजा वही ढाक के तीन पात। अभी अग्निपथ योजना को लेकर दोनों दलों के बीच विरोध खुलकर सामने आ गया। अग्निपथ का विरोध सबसे ज्यादा बिहार में ही हुआ। ट्रेनें जलाई गईं, स्टेशन फूंके गए, वाहनों पर कहर टूटा और भाजपा कार्यालय व भाजपा नेताओं के घर निशाना बने। प्रशासन मूकदर्शक सा बना रहा। इधर भाजपा के साथ सत्ता में साथी जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह इसके विरोध में खड़े हो गए। उसके बाद जदयू के बाकी नेता भी उनके सुर में सुर मिलाने लगे। भाजपा की स्थिति असहज हो गई। चूंकि शीर्ष स्तर से उन पर कोई बयान न जारी करने का दबाव था, इसलिए कोई बोल भी नहीं सकता था। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी बिहार के हालात से परेशान था। फिर स्थानीय भाजपा भी पलटवार करते हुए अग्निपथ की खूबियां गिनाते हुए विधि व्यवस्था पर सवाल उठाने लगी।

भाजपा की तरफ से मोर्चा संभाला प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि पुलिस गैर जिम्मेदार बनी रही, अगर प्रशासन चाहता तो उपद्रव पर नियंत्रण पाया जा सकता था। विरोध में उतरे ललन सिंह ने संजय जायसवाल के बारे में कहा कि वह मानसिक संतुलन खो बैठे हैं। नीतीश गुड गवर्नेस के लिए जाने जाते हैं। मामला बढ़ता देख मुख्यमंत्री आवास ने इसे तूल न देने की पहल की। इसी बीच राष्ट्रपति के लिए एनडीए उम्मीदवार की घोषणा ने इस पर पानी डालने का काम किया। द्रौपदी मुमरू को समर्थन के लिए मोदी ने नीतीश कुमार को स्वयं फोन कर समर्थन मांगा। बिहार में जदयू के पास 22,653 वोट हैं। उसे मिलाकर बिहार में एनडीए के 55,955 वोट बनते हैं, जो एनडीए प्रत्याशी के लिए महत्वपूर्ण हैं। मोदी का फोन आने पर नीतीश कुमार ने तुरंत समर्थन की घोषणा कर दी। मामले का पटाक्षेप समझा गया और समर्थन को लेकर अलग-अलग अटकलें लगने लगीं। यह माना गया कि नीतीश कुमार को महिलाओं का समर्थन प्राप्त है, इसलिए महिला आदिवासी प्रत्याशी का विरोध वह नहीं कर सकते थे। इसके विपरीत कुछ लोगों का कहना है कि नीतीश के लिए यह सब मायने नहीं रखता। पिछले राष्ट्रपति चुनाव में महागठबंधन में रहने के बावजूद उन्होंने बिहार की दलित महिला प्रत्याशी मीरा कुमार को समर्थन न देकर एनडीए उम्मीदवार राम नाथ कोविन्द को दिया था। इसलिए इस बार द्रौपदी मुमरू का समर्थन बताता है कि फिलहाल वे राजग नहीं छोड़ने वाले।