News TOP STORIES नयी दिल्ली राष्ट्रीय

आम कश्मीरी कर रहा सवाल- Mufti सईद और Azad किस हैसियत से लड़ते रहे हैं अन्य राज्यों से चुनाव?


जम्मू, । जम्मू-कश्मीर में रहने वाले अन्य राज्यों के नागरिकों को वोट का अधिकार दिए जाने को कश्मीर की जनसांंख्यिकी चरित्र को बदलने और जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र के ताबूत में आखिरी कील बताना, सिर्फ केंद्र काे ब्लैकमेल करने और आम कश्मीरियों को मूर्ख बनाने की 75 साल पुरानी शोषणवादी सियासी परपंरा का हिस्सा है। यह कोई अन्य नहीं बल्कि कश्मीर आम कश्मीरी कहता है और फिर पूछता है कि महबूबा मुफ्ती को यह बताना चाहिए कि उसके पिता स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद किस हैसियत से उत्तर प्रदेश से सांसद चुने गए थे। सवाल सिर्फ मुफ्ती सईद तक सीमित नहीं रहता बल्कि कांग्रेस भी इस मुद्दे पर बैकफुट पर आ जाती है, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद एक बार नहीं, दो बार महाराष्ट्र के वाशिम से दो बार सांसद चुने गए हैं।

राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता सलीम रेशी ने कहा कि यह जो बाहरी लोगों को वोट देने के अधिकार पर बवाल हो रहा है, बेमतलब है। उन्होंने कहा कि आपको याद होगा कि यहां अटल बिहारी वाजपेयी को कुछ वर्ष पहले तक लोग कश्मीर से संसदीय चुनाव लड़ने की पेशकश करते थे। उनमें से आज यहां प्रदेश में रहने वाले अन्य राज्यों के नागरिकों के मतदाता बनने पर सवाल उठा रहे हैं, विरोध कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त 2019 से पहले भी जाे अन्य राज्यों के नागरिक अस्थायी तौर पर या स्थायी तौर पर रहते थे, संसदीय चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करते रहे हैं। अगर वह भाजपा के साथ देने वाले होते या भाजपा के साथ होते तो फिर यहां से पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस या कांग्रेस के उम्मीदवार संसद में सांसद बनकर नहीं बैठते। फर्क सिर्फ इतना ही कि अब यह लोग चाहें तो विधानसभा में भी वोट डाल सकते हैं। काेई बड़ा बदलाव नहीं आएगा।

मुफ्ती मोहम्मद सईद देश के पहले मुस्लिम गृहमंत्री थे

सरकारी अध्यापक फारूक शाह ने कहा कि मुफ्ती मोहम्मद सईद देश के पहले मुस्लिम गृहमंत्री थे। वह कहां से थे? यहीं कश्मीर के रहने वाले थे, वह पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती के पिता हैं। आज वह इस दुनिया में नहीं हैं, अगर होते तो शायद ही अन्य राज्यों के नागरिकों को यहां वोट के अधिकार का विरोध करते। महबूबा मुफ्ती को शायद याद न हो, लेकिन सच्चाई यही है कि मुफ्ती सईद 1989 में मुजफ्फरनगर से जनता दल के टिकट पर लोसभा चुनाव जीत तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के मंत्रिमंडल मे बतौर गृहमंत्री शामिल हुए थे। वह किस हैसियत से वहां चुनाव लड़े थे, एक भारतीय नागरिक की हैसियत से। अगर अन्य राज्यों के यहां रहने वाले नागरिक भारतीय नहीं है, बांग्लादेश या म्यंमार से आए हैं तो फिर एतराज जायज है। गुलाम नबी आजाद भी दो बार महाराष्ट्र से ही लाेसभा चुनाव जीते हैं।

मतदाताओं को गैर स्थायी निवासी मतदाता अथवा एनपीआर वोटर कहा जाता है

बिलाल बशीर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में रहने वाला कोई भी योग्य नागरिक चाहे वह पंजाब से हो या गुजरात से, बतौर मतदाता खुद को पंजीकृत करा अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकता है। मतदाताओं को गैर स्थायी निवासी मतदाता अथवा एनपीआर वोटर कहा जाता है। पिछले संसदीय चुनावों में जम्मू-कश्मीर में 32 हजार एनपीआर मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। इसके अलावा जन प्रतिनिधितव अधिनियम 1950 और 1951 के मुताबिक, देश का कोई भी नागरिक अगर वह मतदाता के तौर पर पंजीकरण की आयु को प्राप्त कर चुका है तो वह उस प्रदेश में जहां वह रहता है, चाहे वह वहां पर स्थायी तौर पर रह रहा हो या अस्थायी तौर पर, अगर अयोग्य नहीं है तो बतौर मतदाता अपना पंजीकरण करा सकता है। जम्मू-कश्मीर में भी बड़ी संख्या में अन्य राज्यों के नागरिक रोजगार, पढ़ाई के सिलसिले में रह रहे हैं। वह भी संबंधित नियम के मुताबिक, यहां मतदाता बन सकते हैं, लेकिन उन्हें पहले अपने मूल स्थान की मतदाता सूची से अपना नाम कटवाना होगा। काेई भी मतदाता दो जगहों पर अपना पंजीकरण नहीं करा सकता। यह कानून के विरूद्ध है। मुझे नहीं लगता है कि यहां अस्थायी रूप से रह रहे अन्य राज्यों के नागरिक खुद को स्थायी मतदाता के रूप में पंजीकृत कराएंगे। अगर कराएंगे भी तो उनकी संख्या पूरे प्रदेश में 60 नहीं तो 70 हजार होगी।

नेकां, पीडीपी, कांग्रेस लोगों में जानबूझकर भ्रम पैदा कर रहे हैं

एडवोकेट अंकुर शर्मा ने कहा कि सुरक्षाबलों के बतौर मतदाता पंजीकरण को लेकर भी नेकां, पीडीपी, कांग्रेस व इन जैसे दल लोगों में जानबूझकर भ्रम पैदा कर रहे हैं, क्याेंकि जम्मू-कश्मीर शांत इलाका नहीं है, इसे केंद्र सरकार ने उपद्रवग्रस्त क्षेत्र श्रेणी में रखा है। ऐसे क्षेत्रों में तैनात सुरक्षाबल सिर्फ अपने मूल प्रदेश के लिए ही मतदाता के रूप में पंजीकृत रहते हैं। अगर यह शांत इलाका होता तो ही यहां तैनात सुरक्षाकर्मी खुद को बतौर मतदाता पंजीकृत करा पाते। अगर यहां स्थिति शांत होती तो क्या यहां आठ-दस लाख फौज व केंद्रीय अर्धसैनिकबल होते।

मानवाधिकारवादी इमरान मीर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में रहने वाले अन्य राज्यों के नागरिकों काे वोट का अधिकार देने को जो लोग विरोध कर रहे हैं, वह सिर्फ अपनी सियासी दुकान बचाने के लिए कर रहे हैं। आम कश्मीरियों में वह भ्रम पैदा कर रहे हैं। महबूबा मुफ्ती यह बताए कि उसके पिता कहां से चुनाव जीत कर गृहमंत्री बने थे। अगर आज मुजफ्फरनगर का कोई नागरिक यहां कश्मीर में आकर रहता है और मतदाता बनता है तो वह उसे क्यों रोक रही हैं। उन्हें अगर अन्य राज्यों के लोगों से नफरत है तो फिर उन्होंने अपने पिता को क्यों उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने से नहीं रोका था। कश्मीर में अब आटोनामी, सेल्फ रूल और हरे रुमाल की सियासत खत्म हो चुकी है, लोगों को मूर्ख बनाने के लिए अब कोई नया तरीका चाहिए और इसलिए अब अन्य राज्यों के नागरिकों को वोट के अधिकार के मुद्दे पर आम लोगों के बीच भ्रम पैदा किया जा रहा है। केंद्र सरकार को यह संदेश देने का प्रयास किया जा रह है कि यहां हालात बिगड़ जाएंगे, इसलिए सत्ता की चाबी हमें दे दो। मतलब साफ है कि यह आज भी शोषणवादी सियासत में ही यकीन रखते हैं।