सम्पादकीय

उत्साह और ऊर्जा 


श्रीश्री रवि शंकर

हर व्यक्ति जन्मसे अनूठा है, सभीमें कुछ विशेष ऐसा है जो हमें औरोंसे अलग करता है। यही विशेषताएं तय करती हैं कि हम कौन है और किस परिस्थितिमें किस तरह व्यवहार करेंगे। ज्यादातर समय हम अपनी उन विशेषताओंके प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं, जो हमें नुकसान पहुंचाती हैं और फिर स्वयंको कमतर आंकने लगते हैं। हालांकि हम यह जानते हैं कि हर कोई अपने आपमें अनूठा है, बस आवश्यकता है तो अपने भीतर सोई हुई आकांक्षाओंको जगानेकी और अपने व्यक्तित्वको निखारने की। यहींपर व्यक्तित्व विकासकी प्रक्रियाएं, तकनीकें मददगार होती हैं। व्यक्तित्व विकासके द्वारा एक जड़ता और अरुचिकी अवस्थामें फंसा व्यक्ति, उत्साही, प्रसन्न और लक्ष्यकी ओर प्रेरित व्यक्तिके रूपमें परिवर्तित हो जाता है। व्यक्तित्व विकासकी प्रक्रियामें व्यक्ति अपने अनूठेपनको बिना किसी हिचकिचाहट और सीमाओंके बंधनके साझा करना सीखता है, खुशी मनाना सीखता है और यह सब और अधिक उत्साह और चैतन्यके साथ होता है। प्रोटोन कभी अपनी सकारात्मकता नहीं खो सकता है और वैसे ही आप भी कभी नहीं! यह बस तनावसे ढक सकता है और तनाव आपकी ऊर्जा खींच लेता है। सकारात्मक रहकर आप कठिनसे कठिन चुनौतियोंको पार कर जाते हैं और साथ ही और अधिक सकारात्मकता और संभावनाओंको अपनी ओर आकर्षित करते हैं। किसी भी कार्यको करनेके लिए जोश एवं उत्साह चाहिए। जब आप पूरे जोशके साथ प्रयास करते हैं तब जीवनमें श्रेष्ठताको स्वत: उपलब्ध होते हैं। जिन्दगी जब आपको रोलर कोस्टरकी सैर कराये तो उसका पूरा आनंद लेना न भूलें। अपनी भावनाओंको परिस्थितियोंपर राज करने न दें, बल्कि उनको काबूमें रखें। यह आपको चुनौतियोंके समय शांत एवं एकाग्र रखेगा। अधिक करुणामय हों। अगली बार जब आप या कोई और गलती करें तो मनमें कोई गांठ न बांधें, जाने दें। इस बातको समझे कि हम सभी विकसित हो रहे हैं और कोई भी पूर्ण नहीं है। यह नजरिया स्वयंको और औरोंको स्वीकारनेमें मदद करता है। जब हम किसीके गुणोंकी प्रशंसा पूर्णताके भावसे करते हैं तो हमारी चेतनाका विस्तार होता है, जो हमारे भीतर उत्साह और ऊर्जाका संचार करता है। वह गुण हमारे भीतर भी विकसित होने लगते है और हम बेहतर मानव बनते हैं।