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एनडीए के मुर्मू दांव ने विपक्ष के प्रयोग को किया डांवाडोल, विपक्षी कुनबे में बिखराव का खतरा


 नई दिल्ली। राष्ट्रपति चुनाव को 2024 के सियासी संग्राम से पूर्व विपक्ष की गोलबंदी का पहला प्रयोग बनाने की विपक्षी दलों की कोशिश शुरू होने से पहले ही साफ तौर पर डांवाडोल नजर आ रही है। बसपा प्रमुख मायावती की राष्ट्रपति पद की एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने की घोषणा विपक्ष के लिए झटका है। दरअसल एनडीए उम्मीदवार की सामाजिक पृष्ठभूमि ने राष्ट्रपति चुनाव में सियासी समीकरण बिठाने के विपक्ष के सारे दांव गड़बड़ा दिए हैं।

विपक्ष के लिए समर्थन जुटाना बड़ी चुनौती

आलम यह हो गया कि राष्ट्रपति पद के अपने उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के लिए बाहर से समर्थन जुटाना विपक्ष के लिए न केवल दुरूह हो गया है बल्कि विपक्षी खेमे के कुनबे में ही फूट पड़ने की चिंता गहरी होने लगी है। विपक्षी खेमे का हिस्सा होते हुए भी यशवंत सिन्हा का समर्थन करने की घोषणा नहीं कर पाने की झामुमो की राजनीतिक दुविधा राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के गड़बड़ाए समीकरण का एक और उदाहरण है।

असमंजस में हेमंत सोरेन

आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली एनडीए प्रत्याशी मुर्मू झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं और ऐसे में झामुमो नेता मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी असमंजस की स्थिति में हैं। जनजातीय राजनीति झामुमो के सियासी अस्तित्व की बुनियाद है और इसीलिए आदिवासी समुदाय से पहली राष्ट्रपति बनने जा रहीं मुर्मू का विरोध करना झामुमो के लिए मुश्किल हो रहा है। इस सियासी दुविधा के चलते ही शनिवार को झामुमो की बैठक में द्रौपदी मुर्मू या यशवंत सिन्हा में किसके साथ रहा जाए यह फैसला नहीं हो पाया।

विपक्षी एकजुटता को चुनौती 

चाहे मुर्मू की सामाजिक पृष्ठभूमि वजह हो मगर झामुमो सिन्हा के खिलाफ जाता है तो यह 2024 में विपक्षी एकजुटता के लिए किसी तरह का सकारात्मक संकेत नहीं होगा। बसपा बेशक अभी तक विपक्षी गोलबंदी के प्रयासों का हिस्सा नहीं रही है मगर उत्तर प्रदेश चुनाव में हुई पार्टी की दुर्गति के बाद से मायावती भाजपा के खिलाफ मुखर हो रही थीं।