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कथावाचक देवकी नंदन ठाकुर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की दो-टूक


नई दिल्ली। हिन्दुओं को अल्पसंख्यक दर्जे की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यकों की पहचान राज्यवार होनी चाहिए और पूर्व फैसले में सुप्रीम कोर्ट यह व्यवस्था तय कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यकों की जिलावार पहचान का आदेश नहीं दिया जा सकता जैसा की याचिकाकर्ता मांग कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से यह भी कहा कि ऐसे ठोस उदाहरण बताइए जहां हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने के बावजूद उन्हें मांगने पर अल्पसंख्यक दर्जा नहीं दिया गया।

हालांकि बाद में कोर्ट ने भागवत कथा वाचक देवकी नंदन ठाकुर की याचिका को भी हिन्दुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग वाली अश्वनी कुमार उपाध्याय की पहले से लंबित मुख्य याचिका के साथ संलग्न करने का आदेश दिया। ये टिप्पणियां और आदेश न्यायमूर्ति यूयू ललित की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान दिये।

मथुरा के रहने वाले भागवत कथा वाचक देवकी नंदन ठाकुर ने हिन्दुओं को अल्पसंख्यक दर्जा दिये जाने की मांग के बारे में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका में मांग है कि कोर्ट राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2 (सी) को असंवैधानिक और शून्य घोषित करे क्योंकि यह धारा संविधान के अनुच्छेद 14,15,21,29 और 30 का उल्लंघन करती है।

मालूम हो कि संविधान के ये अनुच्छेद बराबरी और धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की बात करते हैं। दूसरी मांग है कि भारत सरकार की 23 अक्टूबर 1993 की अधिसचूना असंवैधानिक घोषित की जाए जिसमें कुछ वर्गों को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया है और तीसरी मांग में कहा गया है कि सरकार को आदेश दिया जाए कि वह अल्पसंख्यकों की जिलावार पहचान करने की गाइड लाइन तय करे ताकि जो वर्ग धार्मिक और भाषाई रूप से अल्पसंख्यक हैं उन्हें अल्पसंख्यकों के लाभ मिलना सुनिश्चित हो।

सोमवार को मामला जैसे ही सुनवाई पर आया जस्टिस ललित ने कहा कि उन्होंने पिछली बार ही कहा था कि ऐसे ठोस उदाहरण दीजिए जिनमें अल्पसंख्यक होने के बावजूद हिंदुओं को मांगने पर अल्पसंख्यक दर्जा नहीं दिया गया। पीठ ने कहा कि पिछली सुनवाई पर वरिष्ठ वकील अरविन्द दत्तार पेश हुए थे और उन्होंने ऐसे उदाहरण पेश करने के लिए समय मांगा था।

पीठ में शामिल जस्टिस एस. रविन्दर भट ने कहा कि अल्पसंख्यकों की पहचान राज्यवार की जानी चाहिए यह बात सुप्रीम कोर्ट पहले ही अपने फैसले में तय कर चुका है। कोर्ट ने कहा कि एक केरल का मामला था जिसमें केरल ने ब्लाक और तालुका स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान किये जाने की मांग की थी और कोर्ट ने कहा था कि नहीं अल्पसंख्यकों की पहचान राज्यवार होनी चाहिए।

कोर्ट में मौजूद वकील अश्वनी उपाध्याय ने कहा कि 2002 में टीएमए पाई के मामले में भी कोर्ट कह चुका है कि अल्पसंख्यकों की पहचान राज्यवार होनी चाहिए। जस्टिस ललित ने अपनी बात दोहराते हुए कहा कि अगर आप कोई ठोस उदाहरण देते हैं जहां हिन्दुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने से मना किया गया है तो कोर्ट उस पर विचार कर सकता है लेकिन आप एक जनरल आदेश चाहते हैं जो कोर्ट नहीं दे सकता।

जस्टिस भट ने ठाकुर की याचिका में की गई मांग को उद्धत करते हुए कहा कि आपने याचिका में जिलेवार अल्पसंख्यकों की पहचान करने की मांग की है, ये कानून के खिलाफ है। कोर्ट इसका आदेश नहीं दे सकता। कोर्ट की टिप्पणियों पर वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि अल्पसंख्यक दर्जे से संबंधित एक अन्य याचिका पहले से कोर्ट में लंबित है।

जिस पर कोर्ट से नोटिस जारी हो चुका है और सरकार अपना जवाब भी दाखिल कर चुकी ही ऐसे में इस याचिका को भी उसी के साथ संलग्न कर दिया जाए। इस पर कोर्ट ने देवकी नंदन ठाकुर की याचिका भी पहले से लंबित मुख्य याचिका के साथ संलग्न करते हुए मामले को सितंबर के पहले सप्ताह में सुनवाई के लिए लगाने का आदेश दिया।

देवकी नंदन की याचिका में जिन राज्यों में हिन्दू अल्संख्यक हैं उन्हें अल्पसंख्यक दर्जा दिये जाने की मांग करते हुए कहा गया है कि लद्दाख में हिन्दू एक प्रतिशत हैं, मजोरम में 2.75 प्रतिशत, लक्षद्वीप में 2.77 प्रतिशत, कश्मीर में 4 प्रतिशत, नगालैंड 8.74 प्रतिशत, मेघालय में 11.52 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में 29 प्रतिशत, पंजाब में 38.49 प्रतिशत और मणिपुर में 41.29 प्रतिशत हैं लेकिन केंद्र सरकार ने इन जगहों पर हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया है और इस कारण इन राज्यों में हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने के बावजूद उन्हें संविधान के अनुच्छेद 29-30 में मिलने वाले संरक्षण का लाभ नहीं मिलता है। याचिका में उन राज्यों के उदाहरण भी दिये गए हैं जहां मुसलमान, ईसाई और सिखों के बहुसंख्यक होने के बावजूद उन्हें वहां अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है।