सम्पादकीय

कर्मकी महत्ता


बीके शिवानी

हम जो कर्म करते हैं, वह हमें नहीं दिखता, भाग्य दिखता है। हम सोचते हैं कि जो भी होता है, भगवानकी मर्जीसे होता है। ठीक भी है। इसलिए हम रोज उनसे कहते हैं- हे, भगवान मेरी समस्या ठीक कर दो। क्या भगवान हमारी समस्या ठीक कर सकते हैं। मान लो हमारे जीवनकी समस्या है कि मुझे यह टेबल उठानी है। तो क्या मैं परमात्मासे कहूं कि हे परमात्मा, टेबल उठा दो। उठेगी टेबल। नहीं। हम तो रोज उनसे यही सब कहते हैं, तबीयत ठीक कर दो, बच्चेको पास करा दो, बच्चीकी शादी करा दो, मेरा ट्रांसफर रुकवा दो। हमें यह पता है कि भगवानसे हमें क्या मिल सकता है और क्या नहीं। परमात्मा हमारे कर्म नहीं करेंगे। वे हमें सही कर्म करनेकी शक्ति देंगे, ज्ञान देंगे। जैसे एक बच्चेको होमवर्क करना है तो मम्मी-पापा उसका होमवर्क नहीं कर सकते। लेकिन उसको होमवर्क करना सिखा सकते हैं। तो जब भी हम परमात्माको याद करें या पूजा करें तो ये नहीं कहें कि मेरा यह काम कर दो, बल्कि कहें कि मुझे यह काम करनेकी शक्ति दें। जैसा कर्म होता है, वैसा ही फल मिलता है। यदि ये स्पष्ट हो गया तो कभी भी हमारी अंगुलीन ऊपरकी ओर जायगी और न किसी औरकी ओर। यदि हम अच्छा व्यवहार कर रहे हैं फिर भी कोई मेरे साथ गलत कर रहा है तो उसका कारण कौन है। यदि कोई मुझे धोखा दे रहा है तो कारण कौन। मेरी सेहत ऊपर-नीचे हो रही है तो इसका कारण कौन। मेरा मन खुश नहीं है तो इसका कारण कौन है। इससे भी महत्वपूर्ण है कि इसका निवारण कौन करेगा। हमें जीवनमें इस लाइनको पकड़कर रखना है, जैसा कर्म वैसा फल। जो कुछ हम सोचते हैं, बोलते हैं, करते हैं, वह है हमारा कर्म। जो हमारे साथ होता है, जीवनमें जो परिस्थितियां आती हैं, लोग हमारे साथ जो व्यवहार करते हैं, वह है हमारा भाग्य। मैं इनसे कैसे बात करूं, ये है हमारा कर्म। ये हमसे कैसे बात करें, वह है मेरा भाग्य। जैसा कर्म होता है, वैसा भाग्य बनता है। अब हमें सतयुग बनाना है। हमारे मनमें यह सवाल नहीं उठेगा चाहिए कि मेरे साथ ही बार-बार ऐसा क्यों होता है। हमें परमपितासे तुच्छ चीजोंके लिए हाथ नहीं उठाना चाहिए। इससे पहले तो हमारा मन ठीक रहेगा। दूसरा हमारी सेहत ठीक रहेगी, उस ऊर्जाका कुप्रभाव हमारे मनपर नहीं पड़ेगा। चौथा, हमसे जुड़े लोगोंकी भी सेहत ठीक रहेगी। सबको लाभ होगा। इसीसे सतयुग आयगा।