सम्पादकीय

कोरोनाको गम्भीरतासे लें


देशमें विगत एक माहसे कोरोना मामलोंमें आयी भारी वृद्धिको स्वास्थ्य विशेषज्ञ कोविड-१९ की दूसरी लहर मानते हैं लेकिन केन्द्रीय स्वास्थ्यमंत्री डाक्टर हर्षवर्धनका मानना है कि इस वृद्धिका सबसे प्रमुख कारण यह है कि लोग इस महामारीको गम्भीरतासे नहीं ले रहे हैं। लोग कोविड-१९ को हल्केमें ले रहे हैं। स्वास्थ्यमंत्रीने मंगलवारको स्पष्टïत: कहा कि देशमें बहुत लोगोंको लगता है कि कोविड वायरसके खिलाफ वैक्सीन आ गयी है और सब ठीक हो गया है। स्वास्थ्यमंत्रीका कथन काफी हदतक सही है। कोरोना संक्रमण बढ़ानेमें जनताकी लापरवाही बड़ा कारण है। लोगोंको जितनी सावधानी या सतर्कता बरतनी चाहिए उतनी नहीं बरत रहे हैं जिसका दुष्परिणाम सामने है। हर्षवर्धनने यह भी कहा कि रेयर केस हैं कि टीका लगनेके बाद दोबारा संक्रमण हुआ हो लेकिन यदि ऐसा होता है तो इससे जानका खतरा नहीं है। सभी परिस्थितियोंमें कोविडका मुकाबला करनेका तरीका पहलेसे ही तैयार है। टेस्ट, ट्रैक और ट्रीट जरूरी है। कोरोनाके खिलाफ तैयारीके तहत २० लाख वेड बनाये गये हैं। ४३० जिलोंमें सात, १४, २१ या २८ दिनोंमें केस नहीं आया है। एक अप्रैलसे ४५ वर्षके ऊपरके लोगोंको ५० हजार स्थानोंपर वैक्सीन उपलब्ध होगी। वैक्सीन आन्दोलनको समर्थन दिया गया और दिशा-निर्देशोंका अनुपालन किया गया तो कोरोनापर विजय प्राप्त की जा सकेगी। स्वास्थ्यमंत्रीने जो भी बातें कही हैं उसको ध्यानमें रखनेकी जरूरत है। कोरोनापर विजयके लिए आवश्यक है कि लोग इस महामारीको गम्भीरतासे लें और उसके अनुरूप सतर्कता भी बरतें। वैसे कोरोनाका कहर लगातार बढ़ रहा है लेकिन मंगलवारको स्वास्थ्य मंत्रालयने जो ताजे आंकड़े प्रस्तुत किये हैं वह कुछ राहतकारी है। पिछले २४ घण्टोंमें कोरोनाके नये मामलोंमें १७.३६ प्रतिशतकी गिरावट आयी है। इसके बावजूद ५६,२११ नये मामले आये और २७१ लोगोंकी मौत हुई है। साथ ही ३७ हजारसे अधिक लोग ठीक भी हुए हैं। अबतक छह करोड़, ११ लाखसे अधिक लोगोंको कोरोनाका टीका लगाया जा चुका है। सबसे खराब स्थिति महाराष्टï्रकी है। कर्नाटक, पंजाब और तमिलनाडुकी स्थिति भी खराब है। इसलिए सरकारको सख्त कदम उठानेकी जरूरत है। कुछ प्रभावित राज्योंमें सख्ती भी बरती जा रही है लेकिन आम जनता जबतक सावधानी और सतर्कता नहीं बरतेगी तबतक सुधारकी उम्मीद नहीं की जा सकती है।

असुरक्षित अस्पताल

मरीजोंको जीवन देनेवाले अस्पताल खुद कितने बीमार और असुरक्षित हैं इसे कानपुरके एलपीएस इस्टीट्यूट आफ कार्डियोलाजी अस्पतालमें रविवारको सुबह लगी आगके परिप्रेक्ष्यमें देखा जा सकता है। इस घटनामें चार मरीजोंकी मौतने कई गम्भीर सवाल खड़े किये हैं। आग आईसीसीयूके अन्दर स्टोर रूममें लगी थी जहां हादसेके वक्त आईसीसीयूमें १७ रोगी और कार्डियोलाजीमें १४० रोगी थे। शार्ट सर्किटसे आग लगनेकी आशंका है। आईसीसीयू पूरी तरह जलकर राख हो गया। सेण्ट्रल एसी होनेसे तीनों तलपर दमघोंटू धुंआ भर गया जिससे अफरा-तफरी मच गयी। पुलिस और दमकल कर्मचारियोंके साहस और शौर्यकी सराहना की जानी चाहिए, जिन्होंने दमघोंटू धुंआके बीच कर्तव्यनिष्ठïाकी मिसाल पेश करते हुए खिड़कियों और दरवाजेका शीशा तोड़कर बाकी मरीजोंको सुरक्षित बाहर निकाल लिया। शुरुआती जांचमें अस्पतालमें तमाम खामियां और प्रबन्धनकी बड़ी लापरवाही सामने आयी है जो गम्भीर चिन्ताका विषय है। कार्डियोलाजी परिसर और आईसीसीयूमें आग बुझानेके बेकार और कंडम उपकरण लगे थे। इनको चलानेवाला भी कोई नहीं था इसलिए शुरुआती दौरमें आग बुझानेका प्रयास नहीं हुआ। लापरवाहीका आलम यह था कि कार्डियोलाजी बिना फायर एनओसीके चल रहा था। अग्निशमन विभागसे इसकी एनओसी नहीं ली गयी थी। जिस स्टोररूममें आग लगी थी वह कार्डियोलाजीके आईसीयूमें बनी थी जो पूरी तरह गलत है। आईसीयूमें गम्भीर मरीज भर्ती किये जाते हैं। ऐसी स्थितिमें यहां स्टोररूमका बनना और आगसे बचावका समुचित उपाय न होना अस्पताल प्रबन्धनको कटघरेमें खड़ा करता है। अस्पतालोंकी दुव्र्यवस्था और सुरक्षाकी अनदेखी किसी एक अस्पतालतक सीमित नहीं है। अग्निरोधककी यह स्थिति देशके लगभग सभी अस्पतालोंकी है। इसकी नियमित जांचकी प्रक्रिया चलनी चाहिए। मुआवजा और उच्चस्तरीय जांचसे इस तरहसे हादसोंको नहीं रोका जा सकता। अस्पतालकी समय-समयपर आडिट होनी चाहिए और लापरवाही सामने आनेपर कड़ी काररवाई की जानी चाहिए तभी इस तरहकी व्यथित करनेवाली घटनाको रोका जा सकता है।