सम्पादकीय

संक्रमणमें कमी


कोरोना वायरसकी अनियंत्रित रफ्तारमें कमी आना सुखद और राहतकारी है। यदि कमीका यह सिलसिला आगे भी बना रहता है तो इसे अच्छे संकेतके रूपमें स्वीकार किया जा सकता है। सोमवारको केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालयकी ओरसे जारी ताजे आंकड़ोंके अनुसार पिछले २४ घण्टोंमें कोरोनाके तीन लाख ६८ हजार १४७ नये मामले सामने आये और इसी अवधिमें ३४१७ लोगोंकी मृत्यु हुई। यह आंकड़ा यद्यपि बड़ा अवश्य है लेकिन दो दिन पूर्व पहली मईको चार लाख १९ हजार ९३ नये मामले आये थे और ३५२३ लोगोंकी मृत्यु हुई थी। इस दृष्टिïसे नये मामलोंमें ३३ हजार ८४६ की कमी और मृतकोंकी संख्यामें १०६ अंकोंकी गिरावट कम नहीं है लेकिन इसे यह नहीं मान लेना चाहिए कि गिरावटका दौर शुरू हो गया है। अभी खतरे बहुत हैं और हमें हर स्तरपर कड़े कदम उठाने होंगे। इनमें टीकाकरणमें तेजीके साथ लाकडाउनपर विचार भी शामिल हैं। सर्वोच्च न्यायालयने रविवारको रात्रिमें कोरोना मामलेमें सुनवाई करते हुए केन्द्र और राज्य सरकारोंको सलाह दी है कि वे लाकडाउन लगानेपर विचार कर सकती हैं लेकिन इसके साथ ही कमजोर वर्गोंकी सुरक्षापर विशेष ध्यान देना होगा। लाकडाउनके सामाजिक और आर्थिक प्रभावसे सभी परिचित हैं, खास तौरपर गरीबोंपर इसका सबसे अधिक असर पड़ता है। इसलिए यदि लाकडाउन लगानेकी आवश्यकता है तो उसके पहले गरीबोंकी जरूरतोंको पूरा करनेकी व्यवस्था करें। वैसे विशेषज्ञोंका यह कहना भी विशेष अर्थ रखता है कि पहली लहरके दौरान पूरे देशमें लाकडाउन लगाया था और अब जब स्थिति काफी खराब हो गयी है तब लाकडाउनपर कोई विचार नहीं किया जा रहा है। एम्स दिल्लीके निदेशक डाक्टर रणदीप गुलेरियाने भी दूसरी लहरको हरानेके लिए सख्त लाकडाउनकी वकालत की है। यह सरकारोंपर निर्भर है कि वे इस मामलेपर क्या जरूरी निर्णय लेते हैं। लाकडाउनके दोनों पहलुओंपर विचार करनेकी जरूरत है। गुण-दोषके आधारपर ही निर्णय किया जाना उचित होगा। टीकाकरणमें तेजी, आवश्यक संसाधनोंकी पर्याप्त उपलब्धता और अस्पतालोंको जर्जर व्यवस्थाको मजबूती देना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इससे कोरोनाके मरीज और उनके परिजन अत्यधिक परेशान और असहाय बने हुए हैं। पूरा देश विषम चुनौतियोंका सामना कर रहा है और विश्वके अनेक देश संकटकी घड़ीमें भारतकी सहायताके लिए सक्रिय हैं। सहायता सामग्री निरन्तर आ रही है, उसका वितरण और प्रबन्ध व्यावहारिक और सुगम होना चाहिए जिससे कि पात्र व्यक्तियोंतक वह पहुंच सके।

अनुकरणीय पहल

भारतीय संविधानमें जीनेका अधिकार देशके सभी नागरिकोंका मौलिक अधिकार है। इसके तहत इलाहाबाद हाईकोटकी हाईपावर कमेटीकी जेलोंमें बंद बड़े पैमानेपर सजायाफ्ता एवं विचाराधीन कैदियोंकी रिहाईकी योजना अच्छी पहल है। योजनाके तहत न्यायिक अधिकारियोंको जेलोंमें जाकर कैदियों और बंदियोंको ६० दिनकी पैरोल अथवा अन्तरिम जमानतपर रिहा करनेकी काररवाईका निर्देश दिया गया है। साथ ही महानिदेशक कारागारसे उन कैदियोंका विवरण मांगा गया है जो सजा पूरी करनेके बाद अर्थदण्ड जमा न करनेके कारण जेलोंमें हैं ताकि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणके माध्यमसे जुर्मानेका भुगतान कर उन्हें रिहा किया जा सके। प्रदेश स्तरीय निगरानी टीम जेलोंमें जाकर अधिकारियोंकी काररवाई रिपोर्ट १५ मईतक सर्वोच्च न्यायालयके आदेशपर कोरोना संक्रमणकी निगरानीके लिए बनी कमेटीको सौंपेगी। यह न्यायपालिकाकी अपनी व्यवस्था है जो कोरोनाके खिलाफ लड़ाईका एक हिस्सा है। कोरोना संक्रमणकी दूसरी लहर जिस तरह बेकाबू होती जा रही है वह गम्भीर चिन्ताका विषय है। इससे बचावके लिए कोरोना प्रोटोकालका सख्तीसे पालन करना ही एकमात्र सुरक्षा कवच है। संक्रमणके प्रसारको रोकनेके लिए मास्क और सामाजिक दूरी बहुत जरूरी है। कैदियोंमें सामाजिक दूरी बनाये रखना बड़ी चुनौती है, क्योंकि बंदियोंकी संख्याके सापेक्ष जेलोंकी क्षमता बहुत कम है। ऐसेमें समस्याको स्वत: संज्ञानमें लेते हुए न्यायपालिकाकी योजना उचित और अन्य राज्योंके लिए अनुकरणीय पहल है। भयावह स्थिति और जानलेवा संक्रमणसे स्वयं सुरक्षित रहें और दूसरोंको भी सुरक्षित रखें, इसके लिए कोरोनासे बचावके लिए जारी दिशा-निर्देशोंका पालन सुनिश्चित करनेके लिए जनान्दोलन चलानेकी जरूरत है।