सम्पादकीय

खतरेका संकेत


देशमें कोरोना संक्रमणके दस प्रतिशत दरवाले जिलोंकी संख्यामें वृद्धि तीसरी लहरका खतरा गहरानेका संकेत है, जिसे गम्भीरतासे लेनेकी आवश्यकता है। पहली बार दस प्रतिशत दरवाले जिलोंकी संख्या ४७ से बढ़कर ५४ हो गयी है। इन जिलोंकी संख्यामें और वृद्धिकी आशंका बनी हुई है। ऐसे जिले केरल और पूर्वोत्तरके राज्योंतक सीमित हैं। महाराष्टï्रकी स्थिति भी चिन्ताजनक हो गयी है, क्योंकि नये मामले तेजीसे आ रहे हैं। केरल, नगालैण्ड, मिजोरम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, राजस्थान, सिक्किम, हरियाणा, दमन-दीव, असम और पुडुचेरीमें मामले बढ़ रहे हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालयका कहना है कि इसे कोरोनाकी तीसरी लहर नहीं कहा जा सकता है लेकिन स्थितिपर सजग दृष्टिï रखी जा रही है। नीति आयोगके सदस्य और टीकाकरणपर गठित टास्क फोर्सके प्रमुख डाक्टर वी.के. पालका मानना है कि दस प्रतिशतसे अधिक संक्रमण दरवाले जिलोंकी संख्यामें वृद्धि एक संयोग भी हो सकता है लेकिन नये मामलोंमें लगातार गिरावटवाले जिलोंमें अचानक वृद्धि चिन्ताका कारण अवश्य है। दृसरी ओर देशके कुछ प्रमुख वैज्ञानिकोंका कहना है कि तीसरी लहरने दस्तक दे दी है और यह प्रारम्भिक चरणमें है। वैसे भी देशमें प्रतिदिन आनेवाले नये मामलोंमें तेज गिरावट थम गयी है। पिछले तीन सप्ताहसे प्रतिदिन औसतन ३८ हजार नये मामले सामने आ रहे हैं। तीसरी लहरका खतरा गहरानेके बीच राहतकी बात यह है कि अगले माह अगस्तसे बच्चोंका टीका आ जायगा। केन्द्रीय स्वास्थ्यमंत्री मनसुख भणडावियाने मंगलवारको कहा कि अगस्तसे किशोरोंको टीका लगानेका कार्य शुरू हो सकता है। वैसे यह स्पष्टï नहीं हुआ है कि बच्चोंके लिए कौन-सा टीका लगेगा लेकिन इतना अवश्य कहा कि भारत शीघ्र ही बड़ा टीका उत्पादक देश बनने जा रहा है, क्योंकि अधिक संख्यामें कम्पनियोंको टीका बनानेका लाइसेंस मिलेगा। जो भी हो, तीसरी लहरमें बच्चोंकी सुरक्षा अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनपर संक्रमणका खतरा अधिक है। बुजुर्ग भी खतरेके दायरेमें हैं। यह अच्छी बात है कि देशमें ४४ करोड़से अधिक लोगोंको टीके लगाये जा चुके हैं, जिनमें ७.२ प्रतिशत लोगोंको दोनों खुराक लग चुके हैं। टीकाकरणमें और तेजी लानेकी जरूरत है, क्योंकि इसकी गति कुछ धीमी पड़ गयी है। खतरेकी आशंकाको देखते हुए आम नागरिकोंको काफी सतर्कता और सावधानी बरतनेकी जरूरत है। इसमें ढिलाई या लापरवाही काफी घातक साबित होगी।

अनाथ बच्चोंकी चिन्ता

कोरोना महामारीसे अनाथ हुए बच्चोंके लिए सरकारोंने बड़ी-बड़ी घोषणाएं की हैं, लेकिन अभीतक उन बच्चोंको चिह्निïत न कर पाना बड़ी प्रशासनिक लापरवाहीको दर्शाता है। कोरोना त्रासदीके शिकार कई ऐसे परिवार हैं, जहां बच्चोंके परवरिशपर संकट आ गया है, कई बच्चे ऐसे भी हैं जिनका परिवार ही नहीं बचा है। ऐसेमें उन्हें तत्काल मददकी जरूरत है। इसमें हीलाहवाली अक्षम्य है। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालयको राज्योंके साथ केन्द्र सरकारको भी बार-बार सख्त सन्देश देना पड़ रहा है। सर्वोच्च न्यायालयने पिछले साल मार्चके बाद माता-पिता खोकर अनाथ हुए बच्चोंकी पहचान और देखभालके प्रति चिन्ता जताते हुए कहा है कि ऐसे बच्चोंकी पहचानमें और देरी बर्दाश्त नहीं की जा सकती है। न्यायालयने सभी राज्योंसे अनाथ हुए बच्चोंकी स्थिति रिपोर्ट मांगी है। राज्योंसे यह भी बतानेको कहा गया है कि उन्होंने आईसीपीएस योजनासे अबतक कितने बच्चोंको लाभान्वित किया है। न्यायालयने कहा है कि राष्टï्रीय बाल आयोगकी ३४ योजनाओंका लाभ जरूरतमंद अनाथ बच्चोंतक पहुंचना चाहिए। न्यायालयने एक बार फिर स्पष्टï किया है कि कोरोना महामारीके दौरान अनाथ हुए सभी बच्चोंको पीएम केयर्स फंडके तहत घोषित सभी योजनाओंका लाभ मिलना चाहिए। कोरोनाकालमें अनाथ हुए बच्चोंकी उचित देखभालकी जिम्मेदारी राज्य सरकारोंकी है। इसके लिए जिलावार सूची बनाकर उन बच्चोंकी निगरानी आवश्यक है। उनकी शिक्षा और परवरिशके लिए आवश्यक सुविधाएं सरकारको मुहैया करानी होगी। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोसकी पीठने अनाथ हुए बच्चोंके हितमें बड़ा कदम उठाया है। इससे बच्चोंको चिह्निïत करनेकी काररवाईमें जहां तेजी आयगी, वहीं अनाथ हुए बच्चोंकी परवरिशका रास्ता साफ होगा। राज्य सरकारोंका दायित्व है कि वह जल्दसे जल्द ऐसे बच्चोंकी पहचान कर उन्हें योजनाओंसे लाभान्वित करें।