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‘चुनावी गणित में नंदीग्राम जीत चुकी है टीएमसी, बीजेपी अब कर रही है माइंडगेम’


कोलकाता। 1 अप्रैल को नंदीग्राम में मतदाताओं ने अपने फैसले को ईवीएम में कैद कर दिया। अब इंतजार 2 मई का है कि विजय किसे मिली बंगाल की बेटी को या भूमिपुत्र को। इन सबके बीच बंगाल की फिजां में यह बात गूंज रही है ममता बनर्जी को किसी और सीट की तलाश है। बीजेपी के नेता खासतौर पर शुभेंदु अधिकारी बता चुके हैं ममता बनर्जी आठवें चरण में वीरभूम से चुनाव लड़ सकती हैं। लेकिन राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने बीजेपी के बयानों को सिर्फ माइंडगेम करार दिया।

जीत चुके हैं नंदीग्राम

टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि जहां तक नंदीग्राम का सवाल है, वहां हम जीत चुके हैं, बीजेपी माइंड गेम के जरिए सिर्फ लोगों में भ्रम फैला रही है। कल रात, मोदी-शाह ने बंगाल में एक समीक्षा बैठक की। वे जानते हैं कि हम उनसे आगे हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में, हम बीजेपी से 3% आगे थे और इस बार यह बढ़कर 6% हो गया है। ‘टूरिस्ट गैंग’, बड़ी बातचीत के बावजूद, इसीलिए दिमाग का खेल है।

टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा ने कहा कि बीजेपी ममता बनर्जी के दूसरी सीट से चुनाव लड़ने की अफवाह फैला रहे थे। जेपी नड्डा ने इस झूठ को फिर से दोहराया। हम उनके सभी दिमाग के खेल से निपटने के लिए तैयार हैं। हम यह भी सुनिश्चित करेंगे कि ईवीएम का आदान-प्रदान नहीं किया जाएगा।

ममता बनर्जी को सुरक्षित सीट की तलाश

बीजेपी प्रमुख जेपी नड्डा ने कहा कि वो उनकी रणनीति है, वह जान जाएगी। लेकिन हमारे पास जानकारी है कि वह इसे (एक और निर्वाचन क्षेत्र) खोज रही है। उसके लोगों ने मुझे यह बताया। उसे पता चल जाएगा, लेकिन यह निश्चित है कि वह नंदीग्राम में हार रही हैं। उन्होंने कहा कि बंगाल की जनता अब सच को समझ चुकी है और सच यही है कि अब जनता को तुष्टीकरण, तोलाबाजी से मुक्ति चाहिए। आखिर कोई शख्स कितने समय तक जनमानस को बेवकूफ बना सकता है।

क्या कहते हैं जानकार

अब सवाल यह है कि बीजेपी की तरफ से इस तरह की बात क्यों कही जा रही है। जानकार कहते हैं कि अगर आप ममता बनर्जी की भावभंगिमा को देखें तो वो बहुत जल्द आपा खो दे रही हैं। जिस तरह से नंदीग्राम में चुनाव से पहले डेरा डाल दिया वो इस बात के संकेत थे कि हालात उनके लिए आसान नहीं हैं। उन्हें कड़ी टक्कर मिल रही है। इसके साथ ही मतदान के दिन जिस तरह से बूथ के अंदर बैठकर राज्यपाल को फोन लगाया वो इस बात के संकेत हैं कि राह उतनी आसान नहीं जितना 2011 और 2016 में थी।