सम्पादकीय

टीका उत्सव


देशमें कोरोना संक्रमणमें जारी भारी तेजीके बीच प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने कोरोनाके खिलाफ जंगको धार देनेके लिए राष्टï्रीय स्तरपर ‘टीका उत्सवÓ मनानेका आह्वïान किया है जिससे कि ज्यादासे ज्यादा लोगोंका टीकाकरण किया जा सके। इस उत्सवमें युवाओंकी अत्यन्त ही महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। वे अपने क्षेत्रके लोगोंको टीका लगवानेमें हरसम्भव सहयोग करें। गुरुवारको मुख्य मंत्रियोंके साथ बैठकके बाद प्रधान मंत्रीने देशको यह महत्वपूर्ण सन्देश दिया है। कोरोनासे बचावके उपायोंमें टीकाकरण अत्यन्त ही उपयोगी साधन है। इसके लिए ११ से १४ अप्रैलकी अवधि निर्धारित की गयी है। मात्र एक दिनके बाद चार दिवसीय टीका उत्सव शुरू होगा। भारत जैसे विशाल देशके लिए चार दिनोंका टीका उत्सव एक प्रयोगके रूपमें है, इसे और विस्तार देनेकी आवश्यकता है। ११ से १४ अप्रैलकी अवधिको निर्धारित करनेके पीछे एक बड़ा उद्देश्य यह है कि ११ अप्रैलको ज्योतिबा फुले और १४ अप्रैलको बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकरकी जयन्ती है। इन विभूतियोंकी जयन्तीको ‘टीका उत्सवÓ के रूपमें मनानेका निर्णय उचित अवश्य है लेकिन भविष्यमें इसे और आगे बढ़ाया जाना चाहिए। इसके साथ यह भी आवश्यक है कि ‘टीका उत्सवÓ की सफलताके लिए पर्याप्त टीका और अन्य आवश्यक संसाधनोंकी व्यवस्था सुनिश्चित की जाय। इसके प्रबन्धनको प्रभावशाली और व्यावहारिक बनानेकी जरूरत है। अनेक राज्योंमें टीकेकी कमीसे टीकाकरण अभियान कुछ कमजोर हो गया है। इसलिए इसे मजबूत बनाना आवश्यक है। प्रधान मंत्रीने कोरोनासे लडऩेके लिए टेस्ट, ट्रैक और ट्रीटका मूलमंत्र भी दिया है। साथ ही लापरवाह लोगोंको अपने रवैयेमें बदलाव लानेकी नसीहत भी दी है जो पूरी तरह उचित है। कोरोनाका संक्रमण निरन्तर बढ़ रहा है। शुक्रवारको जारी आंकड़ोंके अनुसार पिछले २४ घण्टेमें एक लाख ३१ हजार ९६८ नये मामले दर्ज किये गये और ७८० लोगोंकी मृत्यु हुई। यह दूसरी लहरका सर्वाधिक चिन्ताजनक आंकड़ा है। इसलिए लापरवाही किसी कीमतपर नहीं होनी चाहिए। दवाईके साथ कड़ाईका बड़ा मंत्र कोरोनासे बचावके लिए सर्वाधिक उपयोगी है। अनेक राज्योंने सख्त कदम उठाये हैं। वैसे प्रधान मंत्रीने आश्वस्त किया है कि लाकडाउनकी वापसी नहीं होगी लेकिन सतर्कता और सावधानीमें कमी घातक हो सकती है। हमें लापरवाहीसे बचनेकी जरूरत है।

देशमें बढ़ी गरीबी

कोरोना महामारीने न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था बल्कि लोगोंकी आयपर खासा असर डाला है। महामारीके चलते लाखों उद्योगधंधे चौपट हो गये तो करोड़ोंकी नौकरी चली गयी। कोरोनाके चलते लगाये गये लाकडाउनसे भारतमें आर्थिक गतिविधियां थम गयीं। इससे भारत ४० सालमें सबसे बड़ी आर्थिक मंदीकी चपेटमें आ गया जिससे दक्षिण एशियामें खासकर भारतकी आबादीमें गरीबोंकी संख्यामें सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है और पिछले कई सालकी प्रगतिपर पानी फिर गया। जिसका सीधा असर मध्यम वर्गपर पड़ा है। भारतमें ३.२ करोड़ लोग मध्यम वर्गसे गरीबोंकी श्रेणीमें आ गये। १९९० के दशकके बाद यह पहला मौका है जब मध्यम वर्गकी आबादीमें बड़ी गिरावट दर्ज की गयी है। इस सम्बन्धमें अमेरिकाकी प्यू रिसर्च सेण्टरने जो रिपोर्ट जारी की है वह चौंकानेवाली और सरकारकी चिन्ता बढ़ानेवाली है। रिपोर्टके अनुसार कोरोना महामारीने दुनियाके कई देशोंको फिर गरीबीकी दलदलमें धकेल दिया है। भारतमें बीते साल ७.५ करोड़ लोग गरीब हो गये और देशमें गरीबोंका आंकड़ा ५.९ करोड़से बढ़कर १३.४० करोड़ यानि दो गुनेसे भी ज्यादा हो गया है। चीनकी तुलनामें भारतमें गरीबीमें अधिक इजाफा हुआ है। दुनियाके साथ भारतमें असमानताकी खाईं गहरी हुई। हालमें आयी एक रिपोर्टके अनुसार कोरोना काल अमीरोंकी सम्पत्ति जहां बढ़ी है, वहीं गरीब और गरीब हुए हैं। इसका ग्रामीण क्षेत्रोंमें ज्यादा असर पड़ा है, जहां बहुसंख्यक उपभोक्ता रहते हैं। गांवोंमें रहनेवाले अधिकतर असंघटित क्षेत्रमें काम करनेवाले, जो काम छिन जानेसे गहरे आर्थिक संकटमें फंस गये हैं। लोगोंको रोजगार देनेवाली मनरेगा जैसी योजना उनके कामकी मांगको पूरा नहीं कर सकी जिससे वह आर्थिक संकटसे उबर नहीं सके और कोरोनाकी दूसरी लहरने उनकी चिन्तामें वृद्धि कर दी है। आयमें असमानता लोगोंके आक्रोशका कारण बन रही है। ऐसेमें सरकारको उनके जीवन स्तरको ऊपर लानेके लिए विशेष कार्य योजना बनानी होगी। नौकरियोंका सृजन करना होगा जिससे गरीबीके दंशसे लोगोंको मुक्ति मिल सके।