सम्पादकीय

तीसरी लहरकी कल्पना बेकार


डा. गोपाल चौरसिया  

सूक्ष्मदर्शी यंत्रसे देखनेपर यह शरीर अति सुन्दर विविध प्रकारके कोशिकाओंके समूह जिसे हम उतक कहते हैं, से बना है। इसकी मूल इकाई कोशिका है। शरीर क्रियाका मूल आधार डीएनए एवं आरएनए। डीएनए नाइट्रोजिनस सब यूनिटका बड़ा कण है। यह न्यूक्लियसमें स्थित क्रोमोसोममें पाया जाता है। आरएनए कोशिकाके न्यूक्लियस और साइटोप्लाज्म दोनोंमें पाया जानेवाला सब यूनिट है। वायरसकी खोज १८९२ में वैज्ञानिक आईवनोवस्कीने की। यह इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोपसे दिखाई देनेवाला अति सूक्ष्म कण, स्पाइक प्रोटीनके हल्के खोलमें वायुमण्डलमें भ्रमण करता है। वायरस लिविंग एवं नान लिविंग आर्गेनिजमके बीच एक कड़ी है, प्राणी कोशिकामें प्रवेश करते ही एक्टिव हो जाता है। डीएनएको निर्देश देता है कि मेरी फोटो कापी करो। अत: वायरसकी संख्या बढ़ती जाती है और रोगोंके लक्षण प्रकट होने लगते हैं।

भारतमें प्रति वर्ष छह ऋतुएं (शिशिर, बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त) होती हैं। ऋतुओंके संधिकालमें मौसममें भारी उलटफेरसे वायरसका प्रकोप होता है। इस श्रेणीमें एक श्रृंखलाके वायरस आते हैं।

एक श्रृंखलावाले वायरससे होनेवाले प्रमुख रोग- कामन कोल्ड (सर्दी हरारत), कोराइजा (बहुव्यापक सर्दी) इनफ्लुएंजा, फ्लू, मम्ïस (गोलो माता) मीजल्स (खसरा) चिकन पॉक्स (गालो माता) आदि।

डबल श्रृंखलावाले वायरससे होनेवाले रोग- (१) शीतला और हरपीज जोस्टर (२) कृत्रिम वायरस

वैज्ञानिक द्वारा किसी निश्चित अभिप्रायसे प्रयोगशालामें निर्मित वायरसको कृत्रिम वायरस कहते हैं।

कोरोनाका परिचय

विदेशी प्रयोगशालामें कृतघ्र दुराचारियों द्वारा उत्पन्न घातक नोबेल कोरोना वायरस सार्स कोव-२ चमगाइड द्वारा प्राकृतिक रूपसे विकसित हुआ, जिसपर प्रयोगशालामें स्पाइक चिपकाकर उसे अत्यधिक संक्रामक और घातक बना दिया जिसकी चर्चा आज विश्वमें है।

जानलेवा बनानेका प्रयोजन

(१) जैविक हथियारसे पूरे विश्वमें अप्रत्यक्ष युद्ध छेडऩा।

(२) प्राणियोंके मौतसे आतंक फैलाना।

(३) विकासशील देशोंके विकासको रोकना।

(४) कोरोनाके उपचारके लिए वैक्सीन, दवाएं, चिकित्साके उपकरण बनाकर विश्व बाजारमें नये व्यापारका सृजन करना।

वायरस वृद्धिमें प्रमुख तीन कारण-

(१) स्वास्थ्य शिक्षाका आभाव (२) हठधर्मिता (३) कोरोनाका जाप

स्वास्थ्य शिक्षाका अभाव- अज्ञानता सभी विपत्तियोंकी जड़ है। जब स्वास्थ्य वायरसका ज्ञान न हो तो रोकथाम कठिन हो जाता है।

हठधर्मिता- कुछ लोगोंको अच्छी बातें समझमें नहीं आती वह अपनेको बुद्धिमान और दूसरोंको मूर्ख समझते हैं, नाक, मुंह खोलकर घूमना मास्क नहीं लगाना, इधर-उधर थूकना, गन्दगी फैलाना इनकी जन्मजात आदत है। यह स्वयं संक्रमित हो संक्रमण फैला रहे हैं। यह कर्म इनसानियतके खिलाफ है। कृपया मास्क पहने, सुरक्षित रहें।

कोरोना नामका अखण्ड जाप- यह कर्म कोरोनाको बढ़ानेमें किस प्रकार सहायता कर रहा है। नामसे बड़ी शक्ति है। इसकी महिमा अनन्त। राम न सकहिं नाम गुन गाई।

आज दिन-रात समाचारके सभी चैनल, नगरके कुछ खास चौराहोंपर कोरोनाके प्रचारमें कोरोनाके नामका अनन्त जाप माइक द्वारा किया जा रहा है। इसके नामकी ध्वनिसे लोगोंके मन-मस्तिष्कपर नकारात्मक प्रभावको उत्पन्न कर इम्यून पावरको क्षति पहुंचा है।

कोरोनाका नाम, आकाश, वायु, शरीरको दूषित कर रह है कैसे?

आकाश-सभी अवकाशको आकाश कहते हैं।

वायु- वायुका ज्ञान हमें स्पर्शसे होताहै। स्पर्शवती वायु:।

वायुका गुण स्पर्श नाम है। वायरसका संक्रमण स्पर्शसे होता है।

स्पष्टïीकरण-ध्वनिके बिना नामका उच्चारण नहीं हो सकता। यदि आकाश न हो तो शब्द ध्वनि नहीं हो सकती। जैसे बांसुरीके भीतर आकाश होनेके कारण ही उससे शब्द निकलते हैं। नामके उच्चारणसे उस व्यक्तिकी दृष्टिï आपकी ओर तुरन्त हो जाती है। यदि बार-बार नाम ले तो जो ध्वनि आकाशमें गूंजती है उसकी प्रतिध्वनिकी तरंगे भी आकाशमें गूंजती है पुन: उसकी प्रतिध्वनिकी तरंगे भी आकाशमें गूंजती रहेंगी और वायुके माध्यमसे आपको स्पर्श करती रहेंगी।

वैज्ञानिक तथ्य- नामकी संरचना शब्दसे होती है। शब्दको ध्वनि कहते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिïसे शब्दका नाम कभी नहीं होता, उसकी तरंगे आकाशमें गूंजती रहती हैं। जैसे ऋषियोंकी वाणी आज भी आकाशमें विद्यमान है, सुनायी इसलिए नहीं देती, क्योंकि यह ध्वनि तरंगे रेडियो फिक्वेंसीमें होती हैं। इसी प्रकार कोरोना शब्द भी अखण्ड जाप होनेसे ब्रह्मïाण्डके वायुमें विद्यमान होकर हमारे शरीरको स्पर्श कर रही है।

वैज्ञानिक तथ्य- वायरस सूक्ष्मसे सूक्ष्म कण है। इसे अणु-परमाणु कह सकते हैं। परमाणुकी संरचनामें इलेक्ट्रान, प्रोटान और न्यूट्रान होता है। परमाणुके बाहरी कोशमें इलेक्ट्रान रियेकशनमें सक्रिय भूमिकामें होता है। स्पर्शके प्रभावको अर्थही नहीं माना जा सकता है।

वायरसका रोकथाम कैसे करें और क्यों? मास्क लगाना जरूरी

वायरससे बचनेका सर्वोत्तम उपाय मास्क है। मास्क नाक मुख दोनोंको ढक लेता है जिससे विषाणु श्वसन संस्थानमें नहीं पहुंच पाते। सुरक्षाकी दृष्टिïसे यह कवचका काम करता है। श्वास नलिका द्वारा वायरस प्राणी कोशिका प्रविष्टï होकर उपद्रव करने लगता है जैसे नाक बंद होना, गलेमें दर्द, खासकर कुछ भी निगलनेमें कठिनाई, सीनेमें जकडऩ, दर्द सांस नली सिकुड़ जोनेसे सांस लेनेमें तकलीफ और फेफड़े पत्थर जैसा कठोर हो जाता है। चिकित्साकी भाषामें इसे फाइब्रोसिसक कहते हैं स्वासारोधके कारण हार्ट फेल होकर रोगीकी मौत हो जाती है। बच्चे अनाथ होकर होने लगते हैं। पूरे परिवारमें अन्धकार और शोकके सिवाय कुछ भी नहीं बचता। अत: जीवन रक्षाके लिए मास्क लगाना सरल उपाय है।

संक्रमित रोगीके नाक, मुख द्वारा सांससे निकले हुए ड्रापलेटका रेंज दो गजके भीतर रहता है, जिससे रोग संक्रमण हमारे शरीरतक नहीं पहुंच पाता अत: दो गजकी दूरी बहुत है जरूरी। स्वच्छता स्वास्थ्यकी कुंजी है। हाथके बिना कोई भी कार्य नहीं हो सकता। स्वाभाविकत रूपसे हाथका स्पर्श प्राय: होता है। अत: संक्रमणसे सुरक्षित रहनेके लिए साबुन पानीसे नियमित हाथ होना चाहिए। सैनिटाइजर कोरोनाके खोपड़ीको फोड़ देता है, अर्थात्ï वायरसके स्पाइक प्रोटीनको नष्टï कर देता है। अत: वायरसको नष्टï करनेवाला रसायन है। इसका मूल घटक आइसोप्रोपेनाल, एथेनाल, एलोवेरा आदि है। दसे पीडि़त रोगीके बलगम, थूकसे ड्रापलेट द्वारा संक्रमण फैलनेका खतरा बना रहनेके कारण इधर-उधर थूकना किसीकी जान ले सकता है।

दूसरे प्रदेशसे आये संक्रमणसे संदिग्ध व्यक्तिको किसी निश्चित स्थानपर १४ दिनोंतक अलग रखना क्करंटाइन होता हे। इसका विशेष प्रयोजन संक्रमणको फैलनेसे बचाव करना है।

होम आइसोलेशनका अर्थ अपने घरमें अलग व्यवस्था देना। यह तब किया जाता है जब अपने घर परिवारमें ही कोई व्यक्ति संक्रमित हो। होम आइसोलेशनसे परिवारके दूसरे लोगोंकी संक्रमणसे सुरक्षा रहती है।

सोशल डिस्टेंसिंगका अच्छा उदाहरण है। इससे संक्रमित लोगोंके सम्पर्कका खतरा नहीं होता है। हम पूर्णत: सुरक्षित हो जाते हैं। अत: अत्यन्त आवश्यक है आवश्यक होनेपर ही अपने घरसे बाहर निकले।