आकाश
शास्त्रोंमें कहा गया है कि भगवान विष्णुकी पूजा बिना तुलसी पत्तेके अधूरी मानी जाती है। इसके अलावा हनुमानजीकी पूजामें भी तुलसीका पत्ता चढ़ाया जाता है। तुलसीकी सेवा भाव करनेसे घरमें सुख-समृद्धि बनी रहती है। हिंदू धर्ममें तुलसीका पौधा पवित्र, पूजनीय और लाभकारी माना गया है। शास्त्रोंके अलावा आयुर्वेदमें भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। ज्यादातर लोगोंके घरमें तुलसीका पौधा लगा हुआ होता है। तुलसीका पौधा हमारे लिए धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व रखता है। मान्यता है कि तुलसीका पौधा लगानेसे घरमें सुख-समृद्धि आती है। इसका इस्तेमाल कई बीमारियोंसे छुटकारा दिलानेके लिए किया जाता है। हिंदू धर्ममें तुलसीके पौधेकी पूजा देवीके रूपमें की जाती है। पौराणिक ग्रंथोंके अनुसार वृंदा पुत्री तुलसी शंखचूड़ नामक असुरकी पतिव्रता पत्नी थी। इसीके प्रतापसे वह अजेय हुआ तुलसी असुर पति शंखचूड़ देवताओंके लिए भारी मुसीबत बन गया था। ऐसी स्थितिमें भगवान विष्णुने तुलसीके पतिका वध करनेका निश्चय कर लिया। परंतु पतिव्रता तुलसीके तेज एवं बलके रहते शंखचूड़का वध करना इतना सरल भी नहीं था, इसलिए भगवान विष्णुने लोकहितमें सबसे पहले छलपूर्वक सती तुलसीका सतित्व भंग किया। लेकिन भेद खुल जानेके बाद तुलसीके श्रापसे विष्णुको शालिग्राम बनना पड़ा तथा तुलसीको शरीर त्यागनेके बाद तुलसीके वृक्षका रूप इसलिए धारण करना पड़ा कि वह हमेशाके लिए लक्ष्मीकी भांति ही भगवान विष्णुकी प्रिय रह सके। इसलिए तुलसीको भगवान विष्णुकी भार्या माना गया है। धार्मिक दृष्टिकोणसे आज भी तुलसीको लोग मां लक्ष्मी मान कर पूजते हैं। यही कारण है कि शालिग्रामकी पूजा उस वक्ततक अधूरी ही रहती है, जबतक उसपर तुलसी पत्र नहीं चढ़ते। इसी कड़ीमें हिमाचल प्रदेशमें ही नहीं, अपितु देशके कोने-कोनेमें तुलसी रूपी पौधेकी पूजा पद्धति अनंतकालसे चली आ रही है। तुलसीके पौधेको सुंदरसे गमले अथवा उसके लिए मंदिररूपी स्थान बनाकर उसको स्थापित किया जाता है। प्रात: एवं संध्या बेलामें दीप प्रज्वलित एवं धूप-अगरबत्ती कर इसकी पूरी श्रद्धा, शिद्दत एवं आस्थाके साथ पूजा की जाती है। इसके इर्द-गिर्द स्थानको साफ-सुथरा रखा जाता है।