सम्पादकीय

न्यायके लिए जारी संघर्ष


डा. प्रदीप कुमार सिंह

कहा जाता है कि देशकी लोकतांत्रिक व्यवस्थामें कानूनका शासन है एवं कानून अपना कार्य स्वयं करता है। परन्तु महिलाओंके प्रति आपराधिक मामलोंमें कानून द्वारा काररवाईकी प्रतीक्षा नहीं की जाती। इसलिए गैरसत्ताधारी राजनीतिक दलोंके नेताओंके लिए कभी-कभी यह घटनाएं आपदामें अवसरके रूपमें विशेष आकर्षणका केन्द्र बन जाती हैं। देखा गया है कि इन मामलोंमें सरकारपर दबाव बनानेके लिए यह घटक प्रमुख भूमिका निभाते हैं- राजनेता एवं प्रदर्शनकारी भीड़। इनकी प्रभावशाली भूमिकासे ही महिला-आपराधिक घटनाएं हाई-प्रोफाइल बन जाती हैं। जब यह सक्रिय हो जाते हैं तो एक अन्य घटक सोशल मीडिया स्वयं प्रकट हो जाता है। कभी-कभी बुद्धिजीवी वर्ग भी शामिल होकर मोमबत्ती-मार्च या मौन-जुलूस आदिका आयोजन कर सुर्खियां प्राप्त करता है। विरोध-प्रदर्शनके तीन उद्देश्य हो सकते हैं। सरकार एवं प्रशासनपर दबाव बनाकर प्रतिष्ठा प्राप्त करना, पीडि़त परिवारको न्याय दिलाना एवं व्यवस्थामें सुधार करनेके लिए सरकारको प्रेरित करना। इसपर समाज शास्त्रमें विस्तृत वैज्ञानिक शोधकी आवश्यकता है। दिसम्बर २०१२ के निर्भया मामलेको प्रदर्शनकारी भीड़ एवं राजनेताओंने विशेष महत्व दिया। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दोषियोंको मृत्युदंडकी पुष्टि होनेके बाद भी एक न्यूज चैनलने अन्तिम भूमिका निभाते हुए दोषियोंको शीघ्रातिशीघ्र फांसी दिये जानेके लिए मिस-कॉल मुहिम चलायी। साथ ही निर्भयाकी मांको दर्शकोंसे मुहिममें शामिल होने हेतु आग्रह करनेके लिए मंच प्रदान किया। जनवरी २०१८ में जम्मूके कठुआमें आठ वर्षीय बालिकाके अपहरण, गैंगरेप एवं हत्या, नवम्बर २०१९ में हैदराबादके पास २६ वर्षीय महिला पशु-चिकित्सकसे गैंगरेप एवं हत्या और सितम्बर २०२० में हाथरसके पास १९ वर्षीय युवतीसे दरिंदगी एवं हत्या आदि सभी दुखद घटनाएं हाई-प्रोफाइल श्रेणीकी रही हैं। इनमें मीडिया एवं विरोध-प्रदर्शनकारी गैंगने सरकारोंपर बहुत दबाव बनाया। कठुआ मामलेमें तो एक महिला वकीलने पीडि़ताको न्याय दिलानेके लिए मुफ्तमें मुकदमेंकी पैरवी करनेका वचन देकर सुर्खियां बटोरी।

निर्भया मामलेके बाद संसद द्वारा महिला-अपराधोंपर नियंत्रणके लिए सख्त कानून पारित करना, सरकारों द्वारा फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित कर महिला-अपराधोंमें न्यायिक प्रक्रियाको गति देना एवं महिला सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु अन्य महत्वपूर्ण कदम उठाना आदि इसीके परिणाम हैं। फरीदाबाद (हरियाणा) के बल्लभगढ़में बीकॉमकी २१ वर्षीय छात्रा निकिता तोमरकी गत वर्ष २६ अक्तूबरको हत्या हुई थी। शाम लगभग ४ बजे कालेजसे परीक्षा देकर बाहर निकलते समय उसपर कार सवार दो युवकों तौसीफ और रेहानने अपहरण करनेकी कोशिश की। निकिताके विरोध करनेपर तौसीफने उसे गोली मार दी। बताया जाता है कि आरोपी निकितापर विवाह करनेके लिए दबाव डाल रहा था एवं पहले भी अपहरणका प्रयास कर चुका था। अधिकांश मीडिया संस्थानोंने इस लव-जिहादके मामलेको कवरेज देनेमें उत्साह नहीं दिखाया, परन्तु कुछ चैनलोंने साहस दिखाकर इस हृदयविदारक घटनाकी रिपोर्टिंग की और राजनेताओं एवं तथाकथित सेक्यूलरवादियोंकी चुप्पीपर प्रश्न भी उठाये।

न्याय केवल न्यायपालिकामें ही नहीं होता, यह समाजके हर स्तरपर होता है। निकिता तोमर हत्याकांड मामलेमें मीडियाने अपेक्षित रुचि नहीं दिखायी। अधिकांश राजनीतिक दलोंके नेता भी तटस्थ बने रहे। विचारणीय है, जब धर्म एवं अधर्ममें संघर्ष होता है तब जिम्मेदार एवं सक्षम संस्थाओंका तटस्थ रहना उचित नहीं होता। स्वयं श्रीकृष्णने महाभारतके युद्धमें अर्जुनका सारथी बनकर यह शिक्षा दी है। निकिता तोमरका हत्यारा एक राजनीतिक रसूखदार मुस्लिम परिवारका बेटा है। शायद इसीलिए मामलेपर टिप्पणी करना अधिकांश राजनीतिक दलोंको उनके उद्देश्योंके अनुकूल नहीं लगा। देशमें अग्निपरीक्षा बहुत प्रचलित शब्द है। परन्तु लोग नहीं समझते कि अग्निपरीक्षासे प्राय: सभीको गुजरना पड़ता है, विशेषकर सार्वजनिक जीवनमें। जैसे धर्मके रक्षार्थ महाभारतके युद्धमें न चाहते हुए भी अर्जुनको अपने परिजनोंसे युद्ध कर उनका संहार करना पड़ा। एक सामान्य परिवारकी शिक्षित बेटी निकिता तोमरको संस्कृति एवं पारिवारिक मान-सम्मानके रक्षार्थ अपहरणका विरोध करते हुए बलिदान देना पड़ा। यह स्वतंत्र भारतमें बढ़ रही लव-जिहाद रूपी जबर्दस्ती साम्प्रदायिक परिवर्तन एवं आपराधिक प्रवृत्तिका सूचक है। राजनीतिक दलोंसे आशा थी कि वह दलगत स्वार्थसे ऊपर उठकर इस हत्याकांडके विरुद्ध आवाज उठायेंगे एवं देशकी बेटीको न्याय दिलानेके लिए संघर्ष करेंगे, परन्तु ऐसा न हुआ। उन सभी बुद्धिजीवियों एवं प्रसिद्धिप्राप्त हस्तियों, जो प्राय: विभिन्न मुद्दोंपर अपनी राय रखते हैं एवं लोकतंत्रके रक्षार्थ सक्रिय रहते हैं, से आशा थी कि वह व्यक्तिगत स्वार्थ एवं सम्प्रदायवादसे ऊपर उठकर पीडि़त परिवारको न्याय दिलानेके लिए आगे आकर संघर्ष करेंगे, परन्तु ऐसा न हुआ। मामलेमें २६ मार्चको फास्ट ट्रैक कोर्टका फैसला आ गया। कोर्टने मुख्य आरोपी तौसीफ और उसके मित्र रेहानको दोषी मानते हुए उम्रकैदकी सजा सुनायी। तीसरे आरोपी अजरुद्दीनको बरी कर दिया। निकिताके माता-पिता न्यायालयके फैसलेसे संतुष्ट नहीं हैं। वह दोषियोंको मृत्युदंडके पक्षमें हैं। नि:संदेह एक रसूखदार द्वारा लव-जिहादके लिए किसी युवतीकी हत्या सामाजिक दृष्टिमें जघन्य अपराध कही जायेगी। ऐसे अपराधोंपर नियंत्रणके लिए अपराधियोंपर दया नहीं की जा सकती। इसी उद्देश्यसे निकिताके परिजन फास्ट ट्रैक कोर्टके फैसलेके विरुद्ध उच्च न्यायालयमें अपील कर सकते हैं। अर्थात्ï न्यायके लिए संघर्ष जारी रहेगा। निकिताको विधायिकासे भी न्याय मिलना चाहिए। निकिता तोमर देशकी उन सभी बेटियोंका प्रतीक है जो लव-जिहादका शिकार हो रही हैं, अर्थात जिन्हें जबर्दस्ती, अथवा लालच या धोखा देकर सम्प्रदायिक परिवर्तन कराकर विवाह करनेके लिए विवश किया जाता है।

वर्तमान कानून इस आपराधिक प्रवृत्तिको रोकनेमें असफल रहे हैं। निकिता हत्याकांडसे सबक लेकर उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेशकी विधानसभाओंने इन अपराधोंपर नियंत्रण हेतु कानून बनाये हैं। अच्छा होगा कि संसद इस मुद्देपर एक प्रभावशाली कानून बनाये, ताकि पूरे देशमें लव-जिहादकी घटनाओंपर अंकुश लगाया जा सके। देशकी संसद महिलाओंके मान-सम्मान एवं सुरक्षाके प्रति अत्यंत संवेदनशील है। आशा है संसद इसपर अवश्य विचार करेगी। निकिताको शासन-प्रशासनसे भी न्याय मिलना चाहिए। निकिताने संस्कृति एवं पारिवारिक मान-सम्मानके रक्षार्थ अपहरणका विरोध करते हुए बलिदान देकर अन्य बेटियोंके लिए उदाहरण प्रस्तुत किया है। आशा है शासन-प्रशासनके सहयोग सफलता अवश्य मिलेगी।