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पंचायत चुनाव: ढाई दशक में पहली बार- प्रतापगढ़ में टूटा राजा भैया का सियासी एकाधिकार,


उत्तर प्रदेश में ढाई दशक से प्रतापगढ़ जिले की सियासत को अपने हिसाब से चला रहे कुंडा के निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का सियासी वर्चस्व इस बार पंचायत चुनाव में टूटता नजर आ रहा है. राजा भैया पहली बार जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में अपने किसी भी समर्थक को अपने ही क्षेत्र में निर्विरोध नहीं जिता सके. जबकि इससे पहले उनके दर्जन भर करीबी नेताओं के खिलाफ चुनाव लड़ने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता था और अगर कोई नामांकन कर भी देता था तो बाद में अपना पर्चा वापस ले लेता था. हालांकि, इस बार प्रतापगढ़ के सियासी हालत पूरी तरह से बदले हुए नजर आ रहे हैं. सपा से लेकर बीजेपी तक ने राजा भैया के समर्थकों के खिलाफ चुनावी मैदान अपने प्रत्याशी उतारकर मुकाबले को रोचक बना दिया है.

प्रतापगढ़ में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की वोटिंग दूसरे चरण में 19 अपैल को है. इस बार प्रतापगढ़ जिला पंचायत अध्यक्ष पद की सीट सामान्य वर्ग की महिला के लिए आरक्षित है. 1995 से लेकर अभी तक जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर राजा भैया की मर्जी का शख्स ही विराजमान होता है, महज एक बार को छोड़कर. इसके पीछे वजह यह है कि जिला पंचायत सदस्य की कुल 57 सीटों में से 17 सीटें राजा भैया के सियासी प्रभाव वाले कुंडा और बाबागंज विधानसभा क्षेत्र की हैं. यहां से अपने समर्थक नेताओं को वो निर्विरोध जिताकर लाते थे.

2016 के पंचायत चुनाव में कुंडा और बाबागंज विधानसभा क्षेत्र की 17 जिला पंचायत सीटों में से 13 सीटों पर राजा भइया के समर्थक निर्विरोध निर्वाचित हुए थे, जो यूपी में अपने आप में एक रिकॉर्ड था. इससे पहले भी नतीजे ऐसे ही रहा करा थे, जिसके चलते जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में राजा भइया समर्थित प्रत्याशी को एक तरफा जीत हासिल होती रही है. हालांकि, इस बार कुंडा और बाबागंज इलाके की दर्जनों जिला पंचायत सदस्य सीटों पर सपा और बीजेपी प्रत्याशी उनके समर्थकों को बेहद अच्छी टक्कर देते नजर आ रहे हैं.

रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया ने नब्बे के दशक में सियासत में कदम रखा और 1993 में पहली बार निर्दलीय विधायक चुने गए. इसके बाद से सपा और बीजेपी के सहयोग से मंत्री बनते रहे, लेकिन साल 2018 में अखिलेश यादव के साथ उनके रिश्ते बिगड़ गए. इसके बाद राजा भइया ने जनसत्ता दल नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी बना ली. लोकसभा चुनाव के बाद वह जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में अपने करीबी नेताओं को जनसत्ता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा रहे हैं, लेकिन इस बार अपने किसी भी करीबी को निर्विरोध निर्वाचित कराने में सफल नहीं रहे.

अखिलेश यादव के साथ राजा भइया के रिश्ते बिगड़ने के साथ प्रतापगढ़ की सियासत भी बदल रही है. राजा भइया के कुंडा और बाबागंज क्षेत्र में यादव समुदाय का बोलबाला है. ऐसे में राजा भइया ने यादव, पासी और ठाकुर वोटरों के सहारे सियासी दबदबा कायम रखा था, लेकिन बसपा छोड़कर सपा में आए पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज और राजा के कभी करीबी रहे गुलशन यादव और छविनाथ यादव उनके धुर विरोधी हो गए हैं. ऐसे ही बीजेपी ने भी राजा भइया के विरोधी शिव प्रकाश मिश्र सेनानी और पूर्व सांसद रत्ना सिंह को अपने खेमे में मिला रखा है.