पटना

पटना: रोजगार मिलता, तो नहीं जाते परदेस


पटना (आससे)। मजबूरी है सर परदेस जाने की। बिहार में कमाने का कोई स्त्रोत नहीं है। क्या करें हमारे पीछे पांच परिवार की जिंदगी का सवाल है। बाहर जाना ही पड़ेगा। पिछले साल से घर पर बैठे है। कई लोगों से कर्ज ले चुका हॅू। अगर बाहर नहीं जायेंगे, तो उनलोगों का कर्ज कैसे चुकाऊॅगा। ये कहना प्रवासी मजदूरों का।

राज्य में कोरोना की रफ्तार कम होते ही फिर एक बार बिहार के प्रवासी मजदूर परदेस रवाना होने लगे है। प्रवासी मजदूरों की पिछले कई दिनों से भीड़ पटना जंक्शन पर देखने को मिली। पटना सहित अन्य जिलों के लोग अपने परिवार के जिंदगी चलाने के लिए दिल्ली, मद्रास, चेन्नई, पंजाब, मुंबई आदि राज्य जाने लगे है। कुछ प्रवासी मजदूर पूरे परिवार के साथ परदेस जा रहे है, तो कुछ अकेले ही। सभी लोग पटना जंक्शन पर टे्रन का इंतजार कर रहे थे। कुछ प्रवासी मजदूरों से आज के रिर्पोटर ने बात-चीत की, पेश है एक रिर्पोट-

बाहर कमाने नहीं जायेंगे, तो घर कैस चलेगा

सुधांशु कुमार बेगूसराय जिले के रहने वाले है। इन्होंने बताया कि मै दिल्ली में कपड़ा कारखाना में काम करता हूॅ। पिछले सात सालों से लगातार इसी कारखाना में काम करता आ रहा हॅू। इन्होंने बताया कि पिछले साल कोरोना काल में काम बंद होने के कारण अपने घर आना पड़ा। लेकिन कुछ महीनों के बाद फिर से दिल्ली में चला गया। लेकिन इस बार भी कोरोना काल में काम बंद होने के कारण अपने घर चले आये।

इन्होंने बताया कि पिछले साल भी मालिक ने सभी स्टाफ को घर जाने को कहा था। काम बंद होने के कारण उन्होंने कहा कि आपसभी घर चले जाइए। इसलिए हमलोग घर चले आये। इस बार भी वहीं बात कहीं। इन्होंने कहा कि हमलोग मजबूरी में बाहर कमाने चले जाते है। क्योंकि बिहार में रोजगार ही नहीं है। जबकि हमारे दो बेटा, एक बेटी और पत्नी और मै। इनलोगों को कहां से पालन-पोषण करेंगे। इसलिए हमें बाहर जाना मजबूरी बन जाता है।

सरकार राज्य में रोजगार विकसित करे तो युवा नहीं जायेंगे बाहर

बबलू कुमार ने कहा कि पहले दिल्ली में काम करता था, लेकिन इस बार कुछ दोस्तों के साथ पंजाब जा रहा हॅू। कोरोना ने दो सालों से कमाई बंद कर दी है। ये पटना जिले के मोकामा के रहने वाले है। इन्होंने बताया कि हम एक साल में एक बार ही गांव आया करता था। सिर्फ छठ पूजा में। लेकिन, इस बार तो दो-दो बार घर चले आये है। गांव में रोजगार नहीं होने के कारण हमलोग ऐसे लोग बाहर जाते है। जबकि सरकार को सोचना चाहिए कि युवाओं के लिए रोगजार विकसित करें। ताकि युवा दूसरे राज्य न जाकर अपने ही राज्य में काम करे। लेकिन, बिहार में बेरोजगारी के बहार है। इसलिए हमलोग जैसे लोग दिल्ली, मुबंई या अन्य राज्य जाने को मजबूर है। इन्होंने बताया कि हमारे गांव से करीब-करीब ८० प्रतिशत युवा बाहर ही कमाने चले जाते है। क्योंकि गांव में रोजगार नहीं है।

घर से नहीं जाने की अनुमति है, फिर से जा रहे है परदेस

दिनेश यादव हाजीपुर के रहने वाले है। ये पिछले तीन सालों से मद्रास में काम कर रहे है। इन्होंने बताया कि पिछले साल मे ही घर चले आये थे। कोरोना  वायरस ने इतना डरा दिया था कि घर चले आये थे। घर के परिवार लोग परदेस नहीं दे रहे है। लेकिन, बिहार में रहकर भी क्या करेंगे? बिहार में न रोजगार है और न ही कमाने की कोई स्त्रोत है। घर में परिवार को काफी समझाने के बाद फिर से मद्रास कमाने जा रहे है। इन्होंने बताया कि मजबूरी है कि हमलोग जैसे इंसान बाहर जा रहे है। घर-परिवार बच्चे को छोड़कर बाहर जाने को मजबूर है। यदि सरकार हमलोगों के लिए कोई रोजगार दे, तो कभी भी हमलोग परिवार को छोड़कर बाहर नहीं जाएंगे। इन्होंने कहा कि घर पर कई लोगों से कर्ज ले चुके है। कब तक घर पर रहेंगे। इसलिए बाहर कमाने जाना मजबूरी है।