सम्पादकीय

पश्चिम बंगालमें परिवर्तनकी गंज


तारकेश्वर मिश्र  

वर्तमानमें ममता बनर्जीका किसी भी तरह पराजित नहीं लगतीं, बल्कि आज भी ‘योद्धाÓ की मुद्रामें हैं। हालांकि चुनाव प्रचारके दौरान कई बेतुके और फिजूल सवालोंको मुद्दोंका रंग देनेकी कोशिश की गयी है, खोखले मनोरंजन भी हैं और अतार्किक आरोप चस्पा किये जा रहे हैं, लेकिन रचनात्मक और औपचारिक विकासका रोडमैप गायब है। पहले और दूसरे चरणमें अच्छा मतदान हुआ है। अमित शाहके दो सौ सीटोंके दावेका काउंटर तृणमूल कांग्रेस लीडर ममता बनर्जीके साथ उनके रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी बार-बार करते आ रहे हैं, मजेदार बात तो यह है कि दोनोंके पास अपने-अपने लॉजिक हैं और दोनों ही दमदार भी हैं। चुनावी घोषणा-पत्रोंमें कुछ भी वादे परोसे गये हों! पूरा बंगाल तपा-उबला और उत्तेजित है, लेकिन नंदीग्रामकी तपिश भिन्न और जला देनेवाली है। नंदीग्रामने ही ममता बनर्जीको मुख्य मंत्रीके पदतक पहुंचा दिया था। इस बार वह खुद इसी ‘हॉट सीटÓ से उम्मीदवार हैं और कभी उनके अंतरंग भरोसेमंद रहे, लेकिन अब भाजपा उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी उन्हें चुनौती दे रहे हैं। मुख्य मंत्री ममता बनर्जीने बहुत बड़ा जोखिम उठाया है, क्योंकि नंदीग्रामका इलाका अधिकारी परिवारका गढ़ रहा है और शुभेंदु नंदीग्राम आन्दोलनके नायकोंमें रहे हैं। फिलहाल जोखिम उठाना ही ममताकी सियासत रही है। नंदीग्राममें अमित शाह और मिथुन चक्रवर्तीके ताकतवर और जन-सैलाबी रोड शो भी देखे हैं तो ममताका ‘ह्वïील चेयरÓ पर रोड शो भी कमतर नहीं आंका जा सकता, क्योंकि जन-सैलाब उधर भी था और हौसलोंकी कमी भी महसूस नहीं हुई। दोनों शक्ति-प्रदर्शनोंके बाद रणक्षेत्रकी लकीरें खिंच गयी हैं और अब मतदानकी निर्णायक घड़ी है। हम यह दावा नहीं कर सकते कि ममता तीसरी बार मुख्य मंत्री बन सकेंगी अथवा भाजपा एक और महत्वपूर्ण राज्य जीत कर अपने वर्चस्वका विस्तार करेगी! ल्ेकिन चुनावी विश्लेषण करने और जमीनी यथार्थका आकलन करनेवाले विद्वानोंका इतना जरूर मानना है कि बंगालमें ‘परिवर्तनÓ का चुनाव बनता जा रहा है। गांव-गांवमें ‘परिवर्तनÓ की गूंज सुनाई दे रही है।

ममताको सत्ता-विरोधी लहरकी चुनौतियां भी झेलनी पड़ रही हैं, लेकिन यह भी सच है कि अब भी एक व्यापक जनाधार और समर्थक-वर्ग उनके पक्षमें सार्वजनिक रूपसे मुखर है, लिहाजा निर्णायक क्षणोंतक ‘परिवर्तनÓ की दिशा और दशा क्या रहेगी, यह दावा करना भी अपरिपक्वता होगा। बेशक ‘परिवर्तनÓ का नारा भाजपाने बुलंद किया है और बूथ-बूथतक उसकी चुनावी मशीनरी सक्रिय और सावधान है, लेकिन हमें ‘परिवर्तनÓ का जनादेश जरूर देखना चाहिए। बंगालमें संसाधनोंका संकट है। औद्योगीकरण नगण्य है, लिहाजा निवेश कहांसे और क्यों आयगा? बेरोजगारी चरमपर है, लिहाजा युवा असंतोष बढ़ता जा रहा है। लोगोंको जमीन कैसे मुहैया करायें, यह भी संकटका सवाल है। गरीबी है और बेचौनी है, नतीजतन राजनीतिक हिंसा और हत्या बेहद आसान प्रक्रिया बन गयी है। यदि चुनावके बाद पार्टियोंकी सरकार बनती है, तो संसाधन कहांसे आयंगे, इसका कोई निश्चित रोडमैप न तो ममताने और न ही भाजपाने दिया है। इसके स्थानपर धार्मिक प्रतीकोंका जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ममताको अपना पारिवारिक गौत्र ‘शांडिल्यÓ बताना पड़ा है। वह मंचपर ‘चंडी पाठÓ से अपने संबोधनकी शुरुआत करती हैं। ममता ‘कलमाÓ भी पढ़ती रही हैं। किसीको इन धार्मिक प्रतीकोंपर आपत्ति नहीं होनी चाहिए, लेकिन जब भाजपाके शिविरसे ‘जय श्रीरामÓ के नारे गूंजते हैं, तो ममता क्यों चिढ़ती रही हैं? तब भाजपा ‘सांप्रदायिकÓ कैसे हो जाती है? इसीके साथ ऐसे बयान भी सामने आये हैं कि यदि ३० फीसदी आबादी एकजुट हो जाय तो चार-चार पाकिस्तान बनाये जा सकते हैं। तो फिर यह ७० फीसदीवाले कहां जायंगे? हमारा क्या कर लेंगे? क्या लोकतंत्रमें इन्हीं हुंकारोंपर वोट मांगे जाने चाहिए और मतदान भी इसी तर्जपर किये जायं? यह स्थिति सवालिया और चिंताजनक है। क्या बंगालकी जनता ऐसी दोफाड़ और सांप्रदायिक सोचमें ‘परिवर्तनÓ के लिए वोट कर सकेगी? राजनीतिकी परिभाषा वर्तमान दौरमें दम तोड़ती नजर आती है। राजनेता अपनी कुर्सी मोहमें अनर्गल बयानबाजीके तरकशसे तीर निकालकर एक-दूसरेको प्रहार करनेमें अपनी शान समझते है। पश्चिम बंगालकी राजनीतिमें ऐसा ही घमासान बयानबाजीकी हदें पार करता नजर आता है। ममता बनर्जीने भाजपाको अशांत और राक्षसोंकी पार्टी करार दिया। इस तरहकी पूर्वाग्रहसे ग्रसित मानसिकता जनता जनार्दनके बीच क्या सिद्ध करना चाहती है?

भाजपा और तृणमूल कांग्रेस दोनों ही पक्ष एक-दूसरेके खिलाफ सारे तिकड़म आजमा रहे हैं। भाजपा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीके नेतृत्वमें डबल इंजनकी सरकार लाकर ‘सोनार बंगलाÓ बनानेके दावे कर रही है तो तृणमूल कांग्रेसका दावा है कि बंगालके लोग किसी बाहरीको नहीं, बल्कि अपनी बेटीको ही फिरसे सत्ता सौंपेंगे। हालांकि, प्रशांत किशोर बंगाली ताजा चुनावी जंगमें भविष्यकी राष्टï्रीय राजनीतिकी झलक भी महसूस करने लगे हैं, क्योंकि उनकी नजरमें बीजेपी हारकर भी कुछ नहीं गंवानेवाली, जबकि ममता बनर्जीकी हार विरोधीकी आवाजकी हार होगी और धीरे-धीरे विपक्षकी राजनीति पूरी तरह खत्म हो जायगी। नंदीग्राम और पश्चिमी मेदनीपुरमें अमित शाहके रोड शोमें अत्यधिक भीड़ थी। प्रचंड गर्मीमें लोग सुबहसे ही इंतजार कर रहे थे। नंदीग्राममें उत्साहित भीड़में जय श्रीराम और मोदी-शाहके जयकारे लग रहे थे। अमित शाहने कहा कि जनसैलाब यह बताता है कि शुभेन्दु अपर बहुमतसे चुनाव जीत रहे हैं। स्वराष्टï्रमंत्रीने कहा कि पूरे बंगालमें पवर्तनकी प्रचंड हवा बह रही है। नंदीग्रामकी जनतासे कहा कि परिवर्तन लानेका एक सहज रास्ता है ममता दीदीको हरा देना। भीडऩे तालियोंकी गडग़ड़ाहटसे अमित शाहको आश्वस्त किया। एक चैनलसे साक्षात्कारमें कहा कि हर जगह अपार भीड़ परिवर्तनकी ओर इंगित कर रही है। एक प्रश्नके उत्तरमें कहा कि बड़े शहर हों, छोटे शहर हों, कस्बा हो या गांव सब जगह एक ही हवा है ममताकी सरकारको सत्तासे बाहर करने की। उन्होंने कहा कि मोदीके प्रति प्रचंड जन-समर्थनने परिवर्तनकी हवाको तेज कर दिया है। अमित भाई शाहने कहा कि भाजपा दो सौसे अधिक सीटें जीतेगी।