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पोटाश की कमी दूर करने का फॉर्मूला तैयार, सरकार ने बनाई पूरी रणनीति


नई दिल्ली, । रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ने के बाद वैश्विक स्तर पर फर्टिलाइलजर (खाद) की सप्लाई लाइन बाधित होने लगी है। पेट्रोलियम उत्पादों में भारी तेजी के रुख और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फर्टिलाइजर की जबर्दस्त मांग से कीमतें बढ़ रही हैं। गैस के दाम बढ़ने से फर्टिलाइजर उत्पादन की लागत बढ़ गई है। चीन जैसे बड़े निर्यातक के हाथ रोक लेने से भी बाजार की सप्लाई प्रभावित हुई है।

सप्लाई की मुश्किल चुनौतियों के बीच फर्टिलाइजर की उपलब्धता बनाए रखने की रणनीति तैयार की गई है। चालू फसल वर्ष में भी किसानों और खेती को राहत देने के लिए सब्सिडी बढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है। रूस और बेलारूस से भारत अपनी खपत का 46 प्रतिशत फर्टिलाइजर आयात करता है। युद्ध जल्द नहीं रुका तो आयात संभव नहीं हो सकेगा।

पिछले साल के मुकाबले यूरिया के दाम बहुत बढ़ गए हैं। दरअसल नेचुरल गैस का दाम बढ़ने से यूरिया का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। यूरिया का मूल्य 900 डालर प्रति टन को छूने लगा है। वैश्विक स्तर पर यूरिया कारोबार में चीन की उत्पादित यूरिया की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत तक है। चीन सालाना 50 लाख टन यूरिया का निर्यात करता है। जबकि वैश्विक बाजार में भारत सबसे बड़ा आयातक देश है।

खाद मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि फर्टिलाइजर की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। हमारे पास डीएपी, यूरिया और एनपीके का पर्याप्त कैरीओवर स्टाक है। फर्टिलाइजर का कैरीओवर स्टाक पिछले तीन वर्षों के औसत से अधिक है।

मध्य पूर्व के देशों से आयात की तलाश रहे संभावनाएं

मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक देश में कुल 1.23 करोड़ टन डीएपी की जरूरत होती है। इसमें से 34.34 लाख टन डीएपी का उत्पादन घरेलू कारखानों में किया जाता है। देश में यूरिया की कुल जरूरत 3.50 करोड़ टन होती है, जिसमें से 2.40 करोड़ टन घरेलू उत्पादन से पूरा होने लगा है। दीर्घकालिक नीतियों के तहत भारत मध्य-पूर्व के देशों में फर्टिलाइजर की अपनी जरूरतों को पूरा करने की संभावना तलाश रहा है। ओमान में इफको संयंत्र उत्पादन में लगे हैं। वहीं से घरेलू कारखानों के लिए कच्चे माल की उपलब्धता भी सुनिश्चित की जा रही है।