सम्पादकीय

प्राणायामकी कलाएं


ओशो

आपके हृदयमें जो अग्नि जल रही है, उसकी एक खास मात्रा इस शरीरको मिल रही है। उस खास मात्रामें ही यह शरीर जीवन्त है। यह अग्नि आपके भीतर है। यह अग्नि ऊर्जा है। इस ऊर्जाका वाहन बन सकता है और इससे बाहर जाया जा सकता है। यह अग्नि जैसे शरीरमें लाती है, ऐसा ही शरीरके भीतर भी ले जा सकती है। यह अग्नि अभी शरीरकी तरफ बह रही है। इस अग्निको शरीरसे आत्माकी तरफ बहानेकी कला सीखनी पड़ती है। नचिकेता अग्निका पहला सूत्र है कि अग्निकी धारा बदलनी है। अभी यह धारा बाहर और नीचेकी तरफ है। यह धारा ऊपर और भीतरकी तरफ होनी चाहिए, दूसरी बात, इस अग्निको प्रज्ज्वलित रखनेके लिए आपको श्वास लेनी पड़ रही है। इससे विज्ञान भी राजी है, क्योंकि आक्सीडायजेशनके बिना आप जी नहीं सकते। एक दीया जलता है। दीया जलकर क्या कर रहा है। अग्नि है क्या। जब एक दीया जल रहा है तो दीया नहीं जल रहा, आसपास हवामें जो आक्सीजन है, वह जल रही है। तूफान आ जाय, आप डर जायं कि कहीं दीया बुझ न जाय तो आप एक बरतन दीयेके ऊपर ढंक दें, बचानेके लिए। हो सकता था तूफान दीयेको न बुझा पाता, लेकिन आपका ढंका हुआ बरतन बहुत जल्दी बुझा देगा। क्योंकि ढंके हुए बरतनके भीतरकी थोड़ी-सी जो आक्सीजन है, उसके जल जानेके बाद दीया नहीं जल सकता। दीया बुझ जायगा। आपको चौबीस घंटे श्वास लेनी पड़ रही है। एक क्षण भी श्वास रुक जाय कि आप समाप्त हुए। क्योंकि श्वास आक्सीजनको भीतर ले जाकर अग्निको प्रज्वलित कर रही है। आपके जीवनमें उतनी ही गति होगी, जितनी गहरी आपकी श्वास होगी। आप उतने ही जीवंत और स्वस्थ होंगे, जितनी गहरी श्वास होगी। जितनी उथली श्वास होगी, आपका जीवन मुर्दा हो जायगा। क्योंकि अग्नि कम जल रही है और हम सब बहुत उथली श्वास ले रहे हैं। कुछ कारण हैं, जिनके कारण हम उथली श्वास ले रहे हैं। और वैज्ञानिक कहते हैं कि जबतक मनुष्यको गहरी श्वास लेना न सिखाया जाय। योग तो बहुत सदियोंसे कह रहा है, तबतक आदमी पूरी तरह जी ही नहीं पाता और जो पूरी तरह जी नहीं पाता, उसके पास इतनी ऊर्जा होती ही नहीं कि भीतरकी तरफ जा सके। इसलिए योगने प्राणायामकी कलाएं खोजीं। प्राणायामकी कलाएं भीतरकी अग्निको ज्यादा प्रज्वलित करनेकी हैं, ताकि अतिरिक्त अग्नि भीतर हो, जिसको हम अंतर्यात्रामें उपयोग कर सकें। आप भी बिना आगके नहीं जी सकते। सारा जीवन आगसे जी रहा है। यह वृक्ष हवासे आक्सीजन ले रहे हैं और जी रहे हैं। पशु-पक्षी आक्सीजन ले रहे हैं और जी रहे हैं। इस आगकी गति और मात्रा उतनी ही होगी, जितनी गहरी आपकी श्वास होगी।