आज़मगढ़

फिर दुनियामें चमकेगा जिलेकी मिट्टïीसे बना सोना


हस्तशिल्पिओंके हुनरको सरकारने समझा, मिली १३२.९३ लाख रुपयेकी परियोजना

आजमगढ़। भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय व खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा निजामाबाद की विश्व प्रसिद्ध शिल्पकला ब्लैक पॉटरी को आगे बढ़ाने के लिए स्फूर्ति योजना के तहत मिनी ब्लैक पॉटरी कलस्टर की शुरूआत की गई है। निजामाबाद क्षेत्र के डोडोपुर गांव में इस सामान्य सुविधा केन्द्र को स्थापित किया गया है। इस कलस्टर के क्रियान्वयन का कार्य सामाजिक उत्थान सेवा समिति, नत्थूपुर, रानी की सराय द्वारा किया जा रहा है। इस कलस्टर के माध्यम से 300 शिल्पकारों को आगे बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। 132.93 लाख रुपये परियोजना लागत से निर्मित कलस्टर का शुभारम्भ बीते 22 फरवरी को किया गया।

रोजगार से जुड़े 300 हस्तशिल्पी: आजमगढ़ जिले के लालगंज की भाजपा की पूर्व सांसद श्रीमती नीलम सोनकर वर्ष 2016 से इस परियोजना से क्षेत्र से जोडऩे के लिए प्रयासरत थी। उनके कठिन परिश्रम के कारण क्षेत्र के लगभग 300 लोगों को रोजगार से जोडऩे का एक जरिया सुनिश्चित हो पाया है। इस कलस्टर में मिट्टी के बर्तन के लिए अत्याधुनिक मशीनें लगाई गई है, जिससे मिट्टी को गूंथने से लेकर बर्तन बनाने का कार्य बहुत आसानी से किया जा सकता है। बर्तन को पकाने के लिए अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित मशीन लगायी गयी है।

प्रतिमाह बन रहा 5 लाख बर्तन: हस्तशिल्पियों के हित को देखते हुए अभी इस परियोजना की शुरूआत भर हुई है। शुरूआत के साथ ही वर्तमान समय में इस कलस्टर की उत्पादन क्षमता मासिक लगभग 5 लाख मिट्टी के बर्तन गिलास, कटोरी, प्लेट, मटका व दीपक तैयार करने की है। यहां से बने प्रोडक्ट को बाजार में सस्ते मूल्य पर दुकानों को बेचा जा रहा है। बिक्री के रूपये से ही इस कार्य से जुड़े शिल्पकारों को पारिश्रमिक प्रदान किया जा रहा है। संस्था सामाजिक उत्थान सेवा समिति के संचालकों का कहना है कि उनका उद्देश्य यह है कि इस परियोजना से क्षेत्र के शिल्पकारों को इस सामान्य सुविधा केन्द्र से जोडऩा और इनकी आय वृद्धि करना है। सामान्य सुविधा केन्द्र पर शिल्पकारों को ब्लैकपॉटरी का भी प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे प्रशिक्षित शिल्पकार ब्लैक पॉटरी कलाकृति को बनाएं और बाजार में इसका अच्छा मूल्य प्राप्त कर सकें।

अभी तक बदहाल थे हस्तशिल्पी: शिल्पकला में पूरे विश्व में देश का नाम रोशन करने वाले आजमगढ़ जिले के निजामाबाद के कुंभकारों का परिवार अभी तक काफी बदहाल थी। बदहाली का आलम यह कि लक्ष्मी-गणेश की अद्भूत प्रतिमा बनाने वाले हाथ को सालभर काम नहीं मिल पाता था और विवशता में वे अन्य सभी तरह के काम करते आ रहे हैं। कुछ वर्षो पहले तक निजामाबाद के कुम्हारों के सभी परिवारों का गुजर-बसर मिट्टी से ही हो जाता था। उन्हें सालभर मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां बेचने-बनाने से फुर्सत ही नहीं मिलती थी। इसका एक बड़ा कारण था कि था कि लोग मिट्टी के बर्तनों में ही भोजन पकाने से लेकर तमाम कार्य करते थे। विवाह-शादी से लेकर विभिन्न संस्कारों में भी मिट्टी के बर्तनों-खिलौनों का भरपूर प्रयोग होता था। बढ़ते बाजारीकरण ने इस धंधे पर ग्रहण लगाना शुरू कर दिया। अब सरकार की इस नई परियोजना से इन हस्तशिल्पियों में एक आस सी जगी है। अब देखना यह है कि यह परियोजना इन हस्तशिल्पियों के विकास में कितना समर्थ हो पाती है।

वर्ष भर लगा रहता है पर्यटकों का आवागमन: निजामाबाद कस्बे की यह कला जहां विश्व में अपना स्थान रखती है वहीं यहां के बने काली मिट्टी के बर्तन देश के साथ ही विदेशों के संग्राहलयों की शोभा बढ़ा रहे है। यहां के बने बर्तनों की पूरे विश्व में मांग है। साल के 12 महीने यहां देशी-विदेशी पर्यटकों का आना-जाना होता रहता है। इस कस्बे के हुसेनाबाद मुहल्ला निवासी सोहित प्रजापति ने पूूरे देश को अपनी कला का लोहा मनवाया है। ब्लैक पाटरी से जुड़े परिवार में पैदा हुए सोहित प्रजापति को वर्ष 2019 में राष्टï्रपति द्वारा पुरस्कृत किया गया। हस्तशिल्प की दुनिया में जहां सोहित के पिता रामाशीष राज्य पुरस्कार हासिल कर चुके हैं वहीं पर्याप्त संशाधनों के अभाव के बावजूद सोहित प्रजापति ने पिता के साथ अपने पुस्तैनी धंधे में मन लगाया और लगन से हस्तकलाकृतियों में रूचि रखते हुए अपनी कला के चलते हस्तकला की दुनिया में निजामाबाद का नाम रोशन किया।

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सम्राट आलमगीरके शासनकालमें हुआ था निजामाबादके पाटरी कलाका उद्भव

आजमगढ़ जिले के निजामाबाद कस्बे में पाटरी कला का उद्भव मुगल सम्राट आलमगीर के शासनकाल में हुआ था। कहा जाता है कि उस समय यहीं के रहने वाले काजी अब्दुल फरह गुजरात प्रांत के मुख्य न्यायाधीश थे। उन्होंने वहां पर इस कला से प्रभावित होकर वहां के कलाकारों को निजामाबाद कस्बे में लाकर बसाया। इसका जिक्र वरिष्ठ आईपीएस अफसर शैलेन्द्र सागर की कहानी माटी में भी मिलता है। साथ ही यह कहना भी गलत नहीं होगा कि यहां के कुम्हारों के हाथ मिट्टी को सोना बना देते हैं। इन जादुई हाथों का ही कमाल रहा है कि यहां के हस्तशिल्पी अन्र्तराष्टï्रीय फलक पर ख्याति अर्जित किये हैं।

सम्मानित हो चुके हैं कई हस्तशिल्पी

निजामाबाद के हस्तशिल्प कला से जुड़े अनेक विभूतियों को प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर समय-समय पर सम्मान व पुरस्कार भी मिला है। यहां के एक दम्पत्ति को भी यह सम्मान मिल चुका है। यह दम्पत्ति राजेन्द्र प्रसाद प्रजापति व कल्पा देवी हैं। यह दिवंगत दम्पत्ति अपने जीवन में ऐसी कलाकृतियां बनाते रहे हैं मानो वह बोल पड़ेंगी। निजामाबाद कस्बे के हस्तशिल्पी राजेन्द्र प्रसाद प्रजापति को 1971 में राज्य दक्षता एवार्ड एवं 1987 में राष्ट्रीय पुरस्कार तत्कालीन राष्ट्रपति आर0 वेंकटरमन द्वारा दिया गया था। उनकी धर्मपत्नी स्व. कल्पा देवी को भी 1981 में स्टेट एवार्ड तथा 1987 में राष्टï्रपति पुरस्कार मिला। उनके पुत्र रामजतन प्रजापति को 1987 में राज्य दक्षता पुरस्कार, 1993-94 में राज्य पुरस्कार मोतीलाल बोरा द्वारा तथा 2004 में नेशनल मेरिट एवार्ड पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम द्वारा दिया गया। शिवरतन प्रजापति को 2001 में राज्य पुरस्कार एवं शिवजतन प्रजापति को राज्य पुरस्कार मुख्यमंत्री द्वारा दिया गया। इसके अलावा इसी कस्बे के रहने वाले हस्तशिल्पी स्व. रामलाल प्रजापति को 1989 में राज्य दक्षता पुरस्कार तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा दिया गया। कल्पा देवी को तत्कालीन मुख्यमंत्री रामनरेश यादव ने 1977-78 में उत्कृष्ट कला के लिये स्टेट एवार्ड से नवाजा था।