सम्पादकीय

ब्रह्मज्ञानका महत्व


बाबा हरदेव
दुनियामें जितने भी नाम हैं, वह सभी नाम किन्हीं चीजोंके हैं। केवल नामोंका जिक्र करनेसे हमारा काम नहीं चलता। यदि नामोंका जिक्र करनेसे काम चलता होता तो फिर कौन झोंपड़ीमें रहेगा। एक गरीब भी एक महलका जिक्र करता रहे, एक संगमरमरके मकानका जिक्र करता रहे तो क्या उसको वही सुख साधन प्राप्त हो जायंगे। नहीं केवल नामोंसे काम नहीं चलता, दुनियामें हमारे तमाम काम जो हो रहे हैं, वह वस्तुओंसे हो रहे हैं, नामोंसे नहीं। भाव यह है कि परमात्माके केवल नामके जिक्रसे काम चलनेवाला नहीं, इस नामकी वस्तुको जानना आवश्यक है।
एक वस्तु बूझहि ता होवहि पाक। बिनुं बुझे सदा नापाक॥
अत: इनसानको यह जानना पड़ेगा कि जिसे राम, कृष्ण कहते हैं वह क्या है। इसे जानकर जब इससे इनसानका नाता जुड़ता है, सिर्फ वह अपना जीवन सफल कर पाता है। तभी उसके मनमें विशालता आती है, उसका चौरासी लाख योनियोंमें आवागमनका चक्कर खत्म होता है। यह वस्तु प्राप्त करनेका अवसर केवल मानवको है। वस्तु प्राप्त करनेके लिए भी साधन होना जरूरी है। अध्यापक सिखाता है तो छोटी-छोटी डिजिट सबसे पहले सिखाता है। फिर सैकड़ों, हजारोंतक जोड़, घटा, गुणा, भाग सब कुछ सिखा देता है। बड़ी-बड़ी संख्याएं लिखी जाती हैं, लेकिन कापी, किताबोंमें लिखी बड़ी-बड़ी संख्याओंमेंसे किसीका काम नहीं चलता। हम सभी जानते हैं कि लिखी हुई बड़ी रकमें भी किसीके काम नहीं आतीं, जब कि छोटी-सी रकम दस रुपये भी पास हों तो बड़े काम आ जाते हैं। इसी तरह प्रभुका नाम है। अनेक नाम हैं, परन्तु नामसे कोई काम नहीं होता। परमात्माके अनेक गुण हैं। अनेक गुण होनेके कारण इसके नाम भी अनेक हैं। लेकिन नामीसे जुडऩेकी बजाय नामोंमें उलझते रहनेके कारण आपसमें झगड़ पड़ते हैं। वह दूसरे इनसानोंको बेगाना, पराया मान लेते हैं। हरिके साथ जुडऩेका कार्य सबसे महत्वपूर्ण है। इसके बारेमें कहा गया है कि इनसान सबसे पहले तूने यही जरूरी काम करना है। जो तू दूसरे कामोंको जरूरी समझ रहा है, वे इससे ज्यादा जरूरी है। इनसान भलीभांति देखता है कि किसीके संसारसे उठ जानेपर उसका कोई सांसारिक फर्ज अन निभा नहीं रह जाता। कोई न कोई रिश्तेदार उस फर्जको निभा देता है। लेकिन आत्माका जो परमात्मासे मिलनका काम है वह तो खुद ही करना होगा। यह किसी औरके करनेसे होनेवाला नहीं। यह काम सबसे जरूरी है इसलिए इसे सबसे पहले करना है। आज इनसान मायाके पदार्थोंमें इतना उलझा हुआ है। अभिमान करता है कि मैं बहुत विद्वान हूं, मैंने बहुत पढ़ाई-लिखाई की है। मैंने बहुत फिलासफी पढ़ी है। सोचता है कि शायद इसीसे मेरा पार उतारा हो जायगा। परन्तु यह सिर्फ उसका भ्रम है। एक महापुरुष किसी गांवमें प्रचारपर गये। उपस्थित लोगोंसे पूछा परमात्माको जानते हो। किसीको परमात्माका ज्ञान हासिल करना है।