सम्पादकीय

भक्तिका अर्थ


बाबा हरदेव

आप जब अलग-अलग तरह के विचारों और भावनाओं से गुजरते हैं, तो आपकी सांस की बनावट अलग-अलग तरह की होती है। जब क्रोधित होते हैं तो अलग तरीके से सांस लेते हैं। शांत होनेपर दूसरे तरीके से सांस लेते हैं। बहुत खुश होते हैं तो दूसरे तरीकेसे सांस लेते हैं। अगर आप दुखी होते हैं तो आप दूसरे तरीके से सांस लेते हैं। आप जिस तरीके से सोचते हैं, उसी तरीके से सांस लेते हैं। शांभवी में सांस की एक बहुत सरल प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इसका संबंध सांस से नहीं है। सांस सिर्फ एक माध्यम हैए वह सिर्फ  एक आरंभ है। जो घटता हैए वह सांस से संबंधित नहीं है। प्राणायाम वह विज्ञान है, जहां सजग होकर एक खास तरीकेसे सांस लेने परए आपके सोचनेए, महसूस करने, समझने और जीवन का अनुभव करने का तरीका बदला जा सकता है। अगर मैं आपसे अपनी सांस पर नजर रखने को कहूं, जो इन दिनों लोगों द्वारा की जाने वाली सबसे सामान्य क्रिया है, तो आपको लगेगा कि आप सांस पर ध्यान दे रहे हैं, लेकिन असलमें ऐसा नहीं होता। अगर मैं आपकी सांसको बाहर निकाल लूं, तो आप और आपका शरीर अलग-अलग हो जाएंगे क्योंकि जीव और शरीर कूरमा नाड़ीसे बंधे हैं। यह उसी तरह है कि अगर कोई आपके हाथका स्पर्श करे तो आपको लगता है कि आप उस व्यक्तिके स्पर्श को जानते हैं, लेकिन असलमें आप सिर्फ  अपने शरीरके अंदर उत्पन्न संवेदनोंको जानते हैं, आप नहीं जानते कि दूसरा व्यक्ति कैसा महसूस करता है। सांस ईश्वर के हाथ की तरह है। आप उसे महसूस नहीं करते। जब कोई अपनी इच्छा से पूरी तरह शरीर को छोड़ता है तो हम उसे महासमाधि कहते हैं। इसे आम तौर पर मुक्ति या मोक्षके रूपमें जाना जाता है। यह ऐसी चीज है, जिसकी चाह हर योगी को है और यह ऐसी चीज है जिसके लिए हर मनुष्य प्रयास कर रहा है, चाहे जानबूझकर या अनजाने में। आप समभाव के एक असाधारण अनुभव पर पहुंच गए हैं, जहां शरीर के अंदर क्या है और बाहर क्या हैए उसमें कोई अंतर नहीं है। खेल खत्म हो चुका है। वे किसी न किसी रूप में अपना विस्तार करना चाहते हैं और यह परम विस्तार है।