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भाजपा का दांव उसी पर पड़ रहा भारी, कई राज्यों में संकट


  1. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बीते कुछ सालों में उन राज्यों में भी सरकार बनाने में कामयाब रही है जहां उसे विधानसभा चुनाव परिणाम में कम सीटें मिली है। गोवा और त्रिपुरा उसका उदाहरण है, जहां बहुमत से कम सीटें आने के बावजूद भी पार्टी सत्ता में पहुंच गई। भाजपा तोड़-जोड़ की राजनीति और अपने पाले में सत्ता की बागडोर करने में भी माहिर मानी जाती है। बीते साल 2020 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की अगुवाई वाली कमलनाथ की सरकार को गिराकर भाजपा ने शिवराज की अगुवाई में अपनी सरकार बना ली। ये पूरा खेल कांग्रेस के बागी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया था। सिंधिया ने पाला बदलने के साथ हीं कांग्रेस की सरकार गिरा दी और अपने साथ कई नेताओं- विधायकों को भाजपा खेमे में कर लिया था।

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लेकिन, अब राजनीतिक गलियारों की स्थिति भाजपा के लिए भारी पड़ती दिखाई दे रही है। तोड़-जोड़ की राजनीति में माहिर भाजपा के लिए अब उसी का दांव उसी पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। कई राज्यों में जहां पार्टी सत्ता और विपक्ष, दोनों में है, समान कलह निकल कर सामने आ रहे हैं। शुरूआत बंगाल चुनाव हारने के साथ हुई है। हालांकि, इससे पहले राजस्थान में भाजपा के भीतर वसुंधरा राजे को लेकर चल रही खींचातानी किसी से छुपी नहीं है।

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की अगुवाई में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ऐतिहासिक जीत मिली है जबकि भाजपा को मुंह की खानी पडी है। दो सौ पार का दावा करने वाली भाजपा दो अंक में ही रह गई। अब पार्टी के भीतर से कलह के सुर निकल कर सामने आ रहे हैं। पहले भाजपा कार्यकर्ताओं के गली-गली घुमकर जनता से माफी मांगने की बात सामने आई। ये कार्यकर्ता टीएमसी से बगावत कर चुनाव पूर्व भाजपा में शामिल हुए थे। लेकिन, अब ये असंतुष्ट नजर आ रहे हैं। इनका कहना है कि उन्होंने भाजपा यानी भगवा को समझने में गलती कर दी। इसके साथ हीं बीते दिनों टीएमसी के बागी नेता मुकुल राय चुनाव पूर्व भाजपा में शामिल हुए थे। लेकिन, चुनाव में भाजपा को मिली हार के बाद फिर से उन्होंने ममता का दामन थाम लिया है। पार्टी में शामिल होने के बाद राय ने भाजपा पर आरोप लगाया कि इनके नेता किसी की सुनते नहीं है।

अब ताजा वाकया सुवेंदु अधिकारी को लेकर है। दरअसल, सोमवार को बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी गवर्नर जगदीप धनखड़ से मिलने पहुंचे। लेकिन, उनके साथ 74 में से सिर्फ 50 विधायक ही राजभवन पहुंचे। अब बाकी के विधायकों को लेकर सियासी कयास चढ़ा हुआ है। ये बातें तब सामने आई है जब, भाजपा नेता मुकुल राय, उनके बेटे सुभ्रांशु राय और राजीव बनर्जी समेत कई नेता बगावत कर फिर से टीएमसी में शामिल हो गए हैं। बंगाल भाजपा में पार्टी दो खेमे में बंटी हुई है। एक पुरानी भाजपा है और दूसरी जो चुनाव पूर्व टीएमसी से बगावत कर भाजपा में शामिल हुई थी। कुल मिलाकर यहां भी भाजपा के लिए मुसीबत कम नहीं हो रही है।

इसकी हवा अब कई राज्यों में पहुंच चुकी है। झारखंड में भी पार्टी के भीतर कलह की बाते हैं। नेताओं का कहना है कि उन्हें वो सम्मान नहीं मिल रहा है। उनकी बातों को सुना नहीं जा रहा है। वहीं, अब महाराष्ट्र के भीतर भी राजनीतिक बवाल एनसीपी नेता और उद्धव ठाकरे सरकार में मंत्री नवाब मलिक के बयान के बाद बढ़ गया है। नवाब मलिक ने दावा किया है कि जो नेता कांग्रेस और एनसीपी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे वो अब फिर से अपनी पुरानी पार्टी में लौटना चाहते हैं। ये सभी नेता एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के संपर्क में हैं।

राजस्थान में भी लगातार भाजपा संकट में है। उपचुनाव में भाजपा को बड़ी जीत नहीं मिली है। एक सीट से हीं संतोष करना पड़ा है। ये चुनाव पूनिया के नेतृत्व में लड़ा गया था। पार्टी भले हीं भीतरी कलह को पाटने में लगी हुई है और “एकला मत चलो” की नसीहत पार्टी को दे रही है। पार्टी लगातार एकजुटता का दावा कर रही है। लेकिन, जिस तरह से हाल ही प्रदेश पार्टी मुख्यालय के बाहर लगे होर्डिंग से वसुंधरा राजे की तस्वीर गायब है। इससे भी पार्टी के भीतर पनपते कलह दिखाई दे रहे हैं। हालांकि, पार्टी लगातार इन बातों का खंडन करती रही है और “ऑल इज वेल” का फॉर्मूला बताती रही है।

इसके साथ हीं कर्नाटक में भी भाजपा सरकार के भीतर असंतोष की ज्वाला भड़कती दिखाई दे रही है। लगातार राज्य में सियासी नाटक जारी है। येदियुरप्पा सरकार में विधायकों की नाराजगी का पार्टी को सामना करना पड़ रहा है। जिसके बाद लगातार खबरे आ रही है कि भाजपा बड़ा बदलाव कर सकती है। वहीं, अपने बयान में सीएम बीएस येदियुरप्पा ने कहा था कि यदि पार्टी इस्तीफा मांगती है तो वो दे देंगे।