सम्पादकीय

महामारीका अंत निकट


सहाय
देशभरमें चलाये जा रहे कोरोना टीकाकरणके लिए पूर्वाभ्यासका संकेत हैं कि इसी माह देशमें अग्रिम मोरचेपर तैनात लोगोंके लिए वैक्सीन उपलब्ध हो जायेगा। प्रधान मंत्री मोदीने देशवासियोंको बधाई दी है। फिलहाल ब्रिटेन, जर्मनी, रूस, चीनसे लेकर इसरायल, बहरीन, सऊदी अरब सरीखे देशोंमें टीकाकरणकी प्रक्रिया जारी है। इसरायलने थोड़ेसे वक्तमें ही अपनी १२ फीसदी आबादीको कोरोना टीका लगा दिया है। अब सीरम इंस्टीट्यूटके ‘कोविशील्डÓ और भारत बायोटेक-आईसीएमआरके ‘कोवैक्सीनÓ के जरिये उन ‘योद्धाओंÓ में टीकाकरणकी शुरुआत की जा सकेगी, जो बीते कई महीनोंसे कोरोना संक्रमित मरीजोंके लगातार संपर्कमें रहे हैं और उनका इलाज करते रहे हैं। ऐसे स्वास्थ्यकर्मियों और अग्रिम मोर्चेके योद्धाओंकी संख्या तीन करोड़के करीब है। देशके ७५ लाख हेल्थ वर्करका डेटा राज्योंने केंद्रको उपलब्ध कराया है। करीब ८३ करोड़ सीरिंजका ऑर्डर दिया जा चुका है और ३५ करोड़ सीरिंजके लिए निविदाएं आमंत्रित की गयी हैं। बीते सालके आखिरी दिन देशके कंट्रोलर जनरलने संकेत दिया था कि नया साल खुशनुमा होगा क्योंकि हमारे हाथमें कुछ उत्साहवर्धक होगा, जिसकी घोषणा नये सालके पहले दिन कर दी गयी। दरअसल, सरकारकी कोशिश है कि अगले करीब छह महीनेके समयमें करीब ३० करोड़ लोगोंको वैक्सीनकी डोज दे दी जाये।
भारत दुनियामें सर्वाधिक संक्रमणवाला दूसरा देश है। एक करोड़ लोगोंका संक्रमणके बाद ठीक होना हमारी उपलब्धि है। कोरोना संकटने आम लोगोंको बताया कि दुनियामें सर्वाधिक वैक्सीन बनानेवाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया स्वदेशी कम्पनी है। यह हमारी ताकत भी है कि संकटके दौरान ही कम्पनीने रिस्क लेते हुए पांच करोड़ वैक्सीन तैयार कर ली है। कम्पनीने निर्णय किया है कि उसकी पहली प्राथमिकता भारतकी जरूरतोंको पूरा करना होगा। उसके बाद ही दक्षिण एशिया और अफ्रीकी देशोंको वैक्सीनकी आपूर्ति की जायेगी। महत्वपूर्ण यह भी है कि यह वैक्सीन आम आदमीके बजटमें आनेवाली सबसे सस्ती वैक्सीन है। इसे भारतमें संभव तापमानमें रखा जा सकता है। जबकि फाइजरकी वैक्सीनको माइनस सत्तर डिग्री सेल्सियसपर रखना अनिवार्य है जो भारत जैसे विकासशील देशमें एक चुनौती है। सस्ती होनेके कारण ही सरकारकी इस वैक्सीनसे बड़ी उम्मीदें जुड़ी थीं, ताकि कमजोर वर्गतक इसे बड़े आर्थिक दबावके बिना पहुंचाया जा सके। भले ही भारतकी आबादी और विविधताके मद्देनजर कोरोनाका टीकाकरण भी एक गंभीर चुनौती होगा, क्योंकि देशमें सवाल उठानेवाले और आशंकाएं जतानेवाले मूढ़ लोगोंकी संख्या भी कम नहीं है। भारतमें चेचक, पोलियो, रुबेला, खसरा, काली खांसी, टेटनेस, हेपेटाइटिस-बी आदि १२ बीमारियोंके टीकाकरण औसतन हर साल किये जाते हैं। विरोध पोलियो और चेचक सरीखे टीकोंका भी किया गया था, जिन्होंने एक पूरी पीढ़ीको विकलांग होने और अंतत: मौतसे बचाया था। कोरोना वायरस महामारीकी घातक, जानलेवा मार हम झेल चुके हैं। देशमें एक करोड़से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं और करीब १.५० लाख मौतें भी हुई हैं। बेशक अब संक्रमणका आंकड़ा सिकुड़ चुका है और कोरोना वायरसको मात देकर स्वस्थ होनेवालोंकी संख्या भी ९९ लाखको पार कर चुकी है।
कोरोना वायरसके इस मंजरतक पहुंचनेके बावजूद कोई इन टीकोंको ‘भाजपाईÓ करार दे अथवा नपुंसक होनेतकका दुष्प्रचार करे, तो वह व्यक्ति देशविरोधी है और वैज्ञानिक, चिकित्सकोंके अनथक परिश्रम और मेधाका घोर अपमान कर रहा है। देश-विदेशके प्रख्यात चिकित्सक इन टीकोंको पूरी तरह सुरक्षित और असरकारक मान रहे हैं। प्रख्यात हृदयरोग विशेषज्ञ डा. नरेश त्रेहनका मानना है कि टीके आनन-फाननमें नहीं बने हैं। पूरा शोध और प्रयोग किये गये हैं। अब करोड़ों लोगोंपर टीकाकरण किया जायगा तो टीकेके प्रभाव और सुरक्षाके सवाल भी संबोधित हो जायंगे। किसी दुर्लभ केसमें टीकेके स्थानपर सूजन आ सकती है, दर्द भी हो सकता है, सिरमें चक्कर आ सकते हैं, थोड़ा बुखार भी महसूस हो सकता है। यह प्रभाव हमने और टीकोंके भी देखे हैं, लेकिन यह टीका जो कीमती जिन्दगी बचायगा, उसकी तुलना ‘संजीवनीÓ से ही की जा सकती है। इस टीकेके विकास और उत्पादनमें देश-दुनियाके डाक्टरों, अनुसंधानकर्ताओं और वैज्ञानिकोंने दिन-रात एक कर दिया। उन सबकी मेहनतका नतीजा यह टीका है। इस टीकेको इस सदीके बड़े चमत्कारके तौरपर देखा जायगा। हमारे देशमें टीकेको लेकर विपक्षके कुछ राजनीतिक दलों द्वारा फैलाये जा रहे भ्रमको देशवासियोंको सिरेसे नजरअंदाज करना चाहिए। विपक्ष अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थके लिए जीवन प्रदान करनेवाली वैक्सीनका दुष्प्रचार कर रहा है। बेहतर तो यही हो कि विपक्ष अपनी तुच्छ राजनीतिसे उभरकर देशके साथ चले।
इन सबके बीच यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि संकट अब भी मौजूद है। टीकेकी एक खुराक कोरोना-मुक्त नहीं कर सकती। जबतक देशकी ८०-९० करोड़ आबादीको टीकेकी दोनों खुराकें नहीं दी जातीं, तबतक ‘हार्ड इम्युनिटीÓ का दावा फिजूल है। यदि इम्युनिटी नहीं होगी, तो वायरससे पूरी तरह सुरक्षित नहीं हुआ जा सकता। हालांकि आईसीएमआरने ब्रिटेनसे आ रही कोरोनाकी नयी नस्लको ‘कल्चरÓ कर दिया है। यानी उसे बेअसर कर दिया गया है, लिहाजा उसका संकट भारतको परेशान नहीं कर सकता। वैक्सीनके विकास और उत्पादनके लिए भारतीय वैज्ञानिक, डाक्टर, अनुसंधानकर्ता आदि बधाईके पात्र हैं। अब जल्द ही भारत कोरोना महामारीसे मुक्तिके मार्गपर कदम बढ़ा देगा। वर्ष २०२० में कोरोनाके चलते हमारी अर्थव्यवस्थासे लेकर तमाम मोर्चोंपर जो चुनौतियां और संकट हमारे सामने खड़े हो गये थे, वैक्सीन आनेके बाद वह तमाम परेशानियां खत्म होंगी और देश पुन: प्रगतिकी राहपर सरपट दौडऩे लगेगा।