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मुफ्तखोरी के जाल में फंसकर बर्बाद हुए वेनेजुएला और श्रीलंका, भारत के कई राज्‍य इससे लें सीख


समराज चौहान। श्रीलंका में आर्थिक संकट की खबरों ने देश में मुफ्तखोरी के खिलाफ एक नई बहस को जन्म दिया है। श्रीलंका की सरकार ने सभी के लिए करों में कटौती और विभिन्न मुफ्त वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण जैसे कदम उठाए थे। परिणामस्वरूप उसकी अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ से उसके पतन की स्थिति बनी। फिर पहले से ही भारी कर्ज में डूबे देश के पास डिफाल्ट होने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। इस घटनाक्रम के परिप्रेक्ष्य में भारतीय राज्यों द्वारा दिए जा रहे मुफ्त वस्तुओं और सेवाओं के मुद्दे पर एक बहस की शुरुआत हुई है।

समय के साथ मुफ्तखोरी भारतीय राजनीति का अभिन्न अंग बनती जा रही है। चाहे वह चुनावी संघर्ष में मतदाताओं को लुभाने के लिए वादे के रूप में हो या सत्ता में बने रहने के लिए मुफ्त सुविधाओं के रूप में। यही कारण है कि चुनावों के समय लोगों की ओर से ऐसी अपेक्षाएं प्रकट की जाने लगी हैं, जिन्हें मुफ्त के ऐसे वादों से ही पूरा किया जाता है। इसके अलावा जब पड़ोस के या देश के अन्य राज्यों के लोगों को मुफ्त में उपहार या सेवा प्राप्त हो रहे होते हैं तो तुलनात्मक रूप से उनकी अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। यही कारण है कि तमाम राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त बिजली, पानी की आपूर्ति, मासिक भत्ते के साथ-साथ लैपटाप, स्मार्टफोन आदि देने का वादा करते हैं।