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यह महिला का अधिकार कि उसे गर्भावस्था जारी रखना है या नहीं, मेडिकल बोर्ड इसका फैसला न करें- बॉम्बे हाईकोर्ट


मुम्बई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक विवाहित महिला को उसकी गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति दे दी है। दरअसल, हाईकोर्ट ने कहा कि एक महिला को यह चुनने का अधिकार है कि उसे अपनी गर्भावस्था जारी रखनी है या नहीं और यह फैसला सिर्फ उसका ही होगा। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के गर्भ में पल रहे बच्चे को गंभीर समस्याएं हैं तो महिला अपनी मर्जी से इसका फैसला कर सकती है।

जस्टिस गौतम पटेल और एस जी डिगे की पीठ ने 20 जनवरी के अपने फैसले में मेडिकल बोर्ड के विचार को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। दरअसल, मोडिकल बोर्ड की तरफ से कहा गया था कि भले ही भ्रूण में गंभीर असामान्यताएं हैं लेकिन इसे खत्म नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि गर्भावस्था लगभग अपने अंतिम चरण में है।

“गर्भावस्था की अवधि कोई मायने नहीं रखती”

महिला को सोनोग्राफी के दौरान पता चला कि भ्रूण में गंभीर असामान्यताएं थीं और वह शारीरिक तथा मानसिक अक्षमताओं के साथ पैदा होगा। इसके बाद ही महिला ने गर्भपात कराने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अदालत ने अपने आदेश में कहा, ” भ्रूण में असामान्यता दिख रही हैं तो गर्भावस्था की अवधि कोई मायने नहीं रखती। याचिकाकर्ता ने जो फैसला लिया है वो आसान नहीं है लेकिन जरूरी है। यह निर्णय उसका है और उसे अकेले ही करना है। चुनने का अधिकार सिर्फ याचिकाकर्ता महिला का है, मेडिकल बोर्ड का इसमें कोई अधिकार नहीं है।”