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राजनीति में भाषा का संयम बेहद जरूरी, सभ्य तरीके से भी की जा सकती है आलोचना


  • राजनेताओं को संयम और मर्यादा का पालन करने की आवश्यकता है सही शब्दों का इस्तेमाल करके भी आप किसी की आलोचना कर सकते हैं अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार अमर्यादित नहीं है

राजनीति में संयम और मर्यादा के पालन की आवश्यकता कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी. जो राजनेता जितने बड़े पद पर है, उस पर संयम और मर्यादा बरतने की जिमेदारी भी उतनी ही ज्यादा है. किसी भी तर्क से अपने असंयमित व्यवहार का बचाव करने की कोशिश का मतलब मर्यादाहीनता को बढ़ावा देना है. दुर्भाग्य से हमारे नेता यह समझना ही नहीं चाहते कि सभ्य तरीके से भी विरोधी की आलोचना की जा सकती है .

जबान का फिसल जाना या फिर कभी भावावेश में कुछ अप्रिय और अनावश्यक कहा जाना सामान्य बात है. किसी से भी यह गलती हो सकती है और हार्दिक खेद व्यक्त करके व्यक्ति आसानी से इस गलती को सुधार सकता है. यह भी कह सकता है कि भविष्य में अधिक सावधानी बरतेगा. पर अक्सर ऐसा होता नहीं है. अक्सर आदमी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं होता. अक्सर जबान का फिसलना या भावावेश में मुंह से कुछ निकल जाना सोच-समझकर की गई ‘गलती’ होती है.